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    एक काला पानी की सजा यहां भी, पीढि़यां माफ नहीं करेंगी Panipat News

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Tue, 25 Jun 2019 08:35 PM (IST)

    सरकार और प्रशासन की अनदेखी से पानीपत में रह रहे लोगों को दिनों दिन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। रसायनयुक्‍त पानी अब जहर बनता जा रहा है।

    एक काला पानी की सजा यहां भी, पीढि़यां माफ नहीं करेंगी Panipat News

    पानीपत, जेएनएन। काला पानी। यह सुनते ही आजादी से पहले स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली कैद के बारे में पता चल जाता है। पर अब काले पानी की सजा क्या पानीपत की आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी। हालात तो यही लग रहे हैं। रसायनयुक्त पानी हमारी जमीन को प्रदूषित कर रहा है। यमुना अब काले पानी की संगम बन चुकी है। स्वास्थ्य विभाग जब-जब पानी के सैंपल लेता है, तब-तब ये फेल ही निकलते हैं। जागरण की टीम ने शहरभर से जो सैंपल भरे, उसमें भी ये निकलकर आया कि पानी खराब होता जा रहा है। विभाग ने मई 2019 में ऑर्थोटोलिडाइन टेस्ट के लिए कुल 2621 नमूने लिए। 900 फेल हो गए। 

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    2621 नमूने लिए, इनमें से 900 फेल, घातक बैक्टीरिया मिला
    स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मई में शहर के विभिन्न वार्डों सहित अहर, सींक, नौल्था, इसराना, मांडी, मतलौडा, रेरकलां, कवि, समालखा, आटा, चुलकाना, पट्टी कल्याणा, नारायणा, बापौली, ऊझा, उग्राखेड़ी, सिवाह, काबड़ी, ददलाना, खोतपुरा आदि से 2621 नमूने लिए। रिपोर्ट से पता चला कि पेयजल में क्लोरीन की मात्रा कम है। इसी कड़ी में बैक्टेटिओजिकल टेस्ट के लिए 77 जगह से नमूने लिए गए। इनमें से 54 पास हुए और 23 फेल हो गए। पानी में घातक बैक्टीरिया भरपूर मात्रा में मिला। पानी के सेवन से पीलिया, डायरिया, टायफाइड जैसी बीमारियां होने का डर रहता है। मार्च और अप्रैल में लिए गए नमूनों की भी यही स्थिति है।

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    जनस्वास्थ्य विभाग को भेजी रिपोर्ट, दो बार सैंपल लिए जाते हैं
    जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. कर्मवीर चोपड़ा ने बताया कि जांच रिपोर्ट जनस्वास्थ्य अभियान्त्रिकी विभाग को भेजी जाती है, ताकि शुद्ध पेयजल आपूर्ति हो सके। अगले माह फिर उन्हीं स्थानों से नमूने लिए जाते हैं, जिससे सुधार का पता चले। क्लोरीन की मात्रा कम होने पर 20 लीटर पानी में क्लोरीन की एक टेबलेट डालें। करीब आधे घंटे बाद उस पानी का सेवन करें।

    सिर के बाल : सेलिनियम की वजह से सिर के बाल जल्द सफेद होने और कम उम्र में झड़ने शुरू हो जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना कि विगत दस वर्षों के अंतराल में त्वचा में संक्रमण की समस्या भी ज्यादा देखी गई है। 
    दांत : फ्लोराइड बढ़ने से दांत कमजोर होकर हिलने और टूटने लगते हैं। पीले हो जाते हैं। यहां तक की खुद ब खुद गिरने भी लगते हैं। अर्जुन नगर में यह ज्यादा मिला।
    ह्रदय : कैडमियम से हृदय रोग की आशंका बढ़ जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक अब 30-35 वर्ष की आयु में भी हार्ट अटैक होने लगा है।
    मस्तिष्क : मर्करी के कारण मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को क्षति पहुंचती है। वर्तमान में काफी मरीज सामने आ रहे हैं। 
    मल-मूत्र : पेयजल लाइन क्षतिग्रस्त होने पर पानी में मानव और पशुओं का मल-मूत्र घुलने लगता है। इससे टायफाइड, पीलिया, डायरिया और हेपेटाइटिस रोग होते हैं।
    आंखें : पानी में घुले किसी भी प्रकार के रसायन आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं नहाते समय पानी आंखों में चला जाता है। कंजेक्टीबाइटिक का डर।
    पेट :  लेड के कारण पेट में संक्रमण का खतरा रहता है। डॉक्टरों का कहना है पेट और आंतों की बीमारियों के लिए दूषित जल का सेवन बड़ा कारण है। 
    आंतें : क्रोमियम से आंतों सहित दूसरे तरह के कैंसर की आशंका रहती है। पानीपत में कैंसर के मरीज बढ़ने का कारण डाई यूनिटों से निकला रंग-रसायन युक्त पानी हो सकता है।  
    लीवर : पीने के पानी के प्रति एक लीटर में 0.01 मिलीग्राम आर्सेनिक की मौजूदगी को सुरक्षित मानक माना है। पानी में इससे कहीं अधिक मात्रा में आर्सेनिक है। कैंसर, लीवर फाइब्रोसिस, उच्च रक्तचाप रोगी बढ़े हैं। एक दशक में हालात बिगड़े हैं।

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    आर्सेनिक सबसे अधिक घातक, हो सकता है कैंसर
    भूजल में आर्सेनिक का घुला होना सबसे ज्यादा घातक है। कैंसर, लीवर फाइब्रोसिस, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का खतरा रहता है। वहीं, पानी में बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) ज्यादा होने से जलीय जीवों पर खतरा बढ़ता है। पानी में 30 मिलीग्राम प्रति लीटर बीओडी, 250 मिलीग्राम प्रति लीटर सीओडी की लिमिट है। औद्योगिक यूनिट को पांच सौ एमजीएल तक बीओडी तक छूट है। 

    दलदल होते जा रहे पार्क
    आज आपको रूबरू कराते हैं एक ऐसे सच से, जिससे देख और पढ़कर हैरान रह जाएंगे। वैसे तो हरियाली के लिए योजनाएं बनती नहीं। अगर बनती हैं तो पौधे नहीं लगते। पर यहां सब काम हुए पर इंतजाम इतने बदतर रहे कि पेड़ के पेड़ ठूंठ बनकर रह गए। इतना ही नहीं, पार्कों की जगह देखकर कहीं से नहीं लगता कि यहां कभी घास भी रही होगी। जमीन दलदल बन चुकी है।

    ये सब हुआ सेक्टर 29 के रंगीन रसायनयुक्त पानी की वजह से 
    उद्यमियों को सीवर कनेक्शन, नालों तक की सुविधा नहीं मिली तो उन्होंने कारोबार चलाने के लिए दूसरा रास्ता अपनाया। ये रास्ता था, केमिकल वाले पानी को सड़क पर बहाने का। एक जगह तो सीधे पार्क में ही अपने सीवर का कनेक्शन जोड़ दिया। जागरण टीम ने जब वहां पड़ताल की तो आसपास के उद्यमियों ने इसके लिए सरकारी व्यवस्था को दोषी ठहराया। सवाल पूछा कि क्यों उन्हें ही दोषी साबित किया जा रहा है। क्यों नहीं नलों और सीवर पाइप लाइन से उनकी यूनिट का पानी सीईटीपी तक जाता। 

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    दैनिक जागरण ने दूषित पानी से प्रभावित सेक्टर-29 पार्ट-2 की ग्रीन बेल्ट का मौका देखा। ग्रीन बेल्ट में जहां-जहां पर फैक्ट्रियों से निकलने वाला जहरीला पानी भरा है, वहीं-वहीं पेड़ पूरी तरह से सूख गए हैं।

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    लोगों की सांसों में घुल रहा जहर 
    केमिकल युक्त पानी के लगातार संपर्क में रहने से बड़े-बड़े पेड़ सूख गए हैं। ऐसे में जहरीला पानी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष, दोनों रूपों में लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा हमला कर रहा है। प्रत्यक्ष रूप से पेड़ों को सूखाकर और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर। विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह से हरियाली खत्म होने से स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है।

    सेक्टरों में ग्रीन बेल्ट पर कब्जा होने लगा है
    कई सेक्टरों में तो पूरी ग्रीन बेल्ट पर कब्जा कर लिया गया है। सेक्टर-12 में ग्रीन बेल्ट पर कब्जा किया गया है। एक जगह ग्रीन बेल्ट पर उद्यमियों ने साइकिल स्टैंड बना लिया है। सेक्टर-18 में ग्रीन बेल्ट पर कब्जों का मामला तो गत दिनों सुर्खियों में रहा है। आरडब्ल्यूए ने इस मामले को उच्चाधिकारियों तक पहुंचाया था। उनका आरोप है कि अधिकारी खुद खड़े होकर ग्रीन बेल्ट पर कब्जा करवा रहे हैं। 

    एसटीपी से निकले साफ पानी से हो सकती है रंगाई
    शहर के सीवर से निकलने वाले गंदे पानी को साफ करने के लिए 45 एमएलडी (साढ़े चार करोड़ लीटर) के दो सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए गए हैं। सिवाह में लगा 35 एमएलडी पुराना एसटीपी अपग्रेड किया गया। दोनों से ही 14-14 एमएलडी पानी साफ किया जा रहा है। अगर यहां से पाइप लाइन बिछाकर डाई सेक्टर को पानी दिया जाए तो रंगाई उद्योग की बड़ी समस्या का हल हो जाएगा। इसके साथ ही, यमुना भी दूषित नहीं होगी। उद्यमियों का कहना है कि वे इसके लिए मुख्यमंत्री मनोहरलाल व उद्योग मंत्री विपुल गोयल से मिलेंगे।

    खेती सहित उद्योगों में काम आ सकता है पानी 
    एसटीपी से ट्रीट किया हुआ पानी खेती सहित उद्योगों में काम आ सकता है।  रंगाई उद्योगों ने साफ किए हुए पानी को अपने उद्योगों की लिए मांग भी की है। यदि ये पानी रंगाई उद्योगों मिलता है तो भूजल से निकलने वाले पानी की बचत हो सकती है।

    एनजीटी की लगी थी फटकार 
    एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने भी हाल ही में पूरे शहर के पानी को एसटीपी पर नहीं पहुंचाने के लिए नगर निगम, हशविप्रा को फटकार लगाई है। 120 किलोमीटर में बह रहे नालों को सीवर से जोड़ने के निर्देश दिए गए हैं। एसटीपी में पानी नहीं पहुंच पा रहा है। 

    नमामि गंगे के तहत बना सीवर ट्रीटमेंट प्लांट
    60 करोड़ की लागत से नमामि गंगे के तहत सिवाह तथा जाटल रोड पर 45 एमएलडी क्षमता के दो एसटीपी लगाए गए। 35 व दस एमएलडी क्षमता के दो एसटीपी को अपग्रेड किया गया।

    एसटीपी में केमिकल का प्रयोग नहीं होता 
    एसटीपी में पानी की साफ करने के लिए केमिकल का प्रयोग नहीं होता। इसीलिए इसे  उपयोग लायक बनाया जा सकता है।

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    गंदा पानी इतना होता है साफ 
    पानी की स्थिति  साफ करने से पहले  साफ करने के बाद 

    • बीओडी          200-250        10 एमजीएल से कम
    • सीओडी         600-700         3.5 एमजीएल
    • टीएसएस        300-500         20 से कम 
    • टीडीएस         1600-1700       825-840

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