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किसानों को संताने लगी धान की रोपाई के लिए मजदूरों की चिता

अभी तक भले ही जिले में धान की रोपाई का काम शुरू नहीं हुआ है। लेकिन किसानों को धान लगाने की चिता अभी से सताने लगी है। किसानों को चिता है कि उन्हें मजदूर मिलेगा भी या नहीं और कैसे उनकी धान की रोपाई होगी। इस बार इसका प्रमुख कारण कोरोना महामारी के कारण प्रवासी मजदूरों का न पहुंचना हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Jun 2020 09:27 AM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 09:27 AM (IST)
किसानों को संताने लगी धान की रोपाई के लिए मजदूरों की चिता

सोनू थुआ, कैथल:

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अभी तक भले ही जिले में धान की रोपाई का काम शुरू नहीं हुआ है। लेकिन किसानों को धान लगाने की चिता अभी से सताने लगी है। किसानों को चिता है कि उन्हें मजदूर मिलेगा भी या नहीं और कैसे उनकी धान की रोपाई होगी। इस बार इसका प्रमुख कारण कोरोना महामारी के कारण प्रवासी मजदूरों का न पहुंचना हैं।

बता दें कि इस बार कोरोना वायरस बीमारी से प्रवासी मजदूरों का काम धंधा बंद हो गया था। परिवार का पालन पोषण नहीं हो रहा था। इसके चलते प्रवासी मजदूर अपने घर वापिस चले गए हैं। यदि कुछ बचे है वे फैक्ट्रियों व दुकानदारों के पास काम कर रहे हैं। जिनसे जरूरत पूरी नहीं हो सकती है। दूसरा गांव के लोगों ने मजदूरी को बढ़ा दिया गया हैं। पहले ही किसान को लागत के हिसाब से कम मूल्य मिल रहा है तो मजदूरी बढ़ने से किसानों की आय में ओर कमी आएगी। धान की फसल की रोपाई से पहले ही किसानों के पसीने छूटने लगे हैं।

छह हजार रुपये की कर रहे डिमांड

किसान बलविद्र सिंह ने बताया कि है कि हर साल धान की रोपाई करवाने का मूल्य काफी बढ़ रहा है। पिछले साल करीब तीन पांच हजार रुपये प्रति एकड़ धान की रोपाई करवाने के एवज में दिए गए थे। लेकिन इस साल धान की रोपाई की एवज में छह हजार रुपये के मजदूर डिमांड कर रहे हैं। इसके चलते किसानों को परेशानी सता रही है कि यदि प्रवासी मजदूर नहीं आए तो उनकी हालत क्या रहेगी, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं।

बिना रोपाई के रह सकती धान की फसल

किसान जरनैल सिंह ने बताया कि मजदूरों की कमी के कारण इस बार उनकी धान की फसल बिना रोपाई के रह सकती है और उनकी आमदनी पर ब्रेक भी लग सकती है। गांव में कम मजदूर मिलने पर किसानों को चाहे काफी खर्च करना पड़े, मजबूरी में वह पूरा मूल्य देकर ही धान की रोपाई करवाते हैं। पहले ग्रामीण क्षेत्र से लोग धान की रोपाई में काफी सहायता कर देते थे। परंतु अब मनरेगा में अच्छी आमदनी मिल जाने पर कोई भी मजदूर धान लगाना नहीं चाहता।

कैथल को धान के हब के नाम से जाना जाता हैं। जहां का चावल दूसरे राज्य में पहुंचता हैं। एक लाख 70 हजार के करीब हेक्टेयर में धान की रोपाई होती हैं। लेकिन इस बार कोरोना में मजदूरों की समस्या भारी पड़ सकती हैं। किसान अभी से गांव के मजदूरों के पास धान रोपाई के लिए पहुंच रहे है लेकिन मजदूरी में किसानों ने बढ़ोतरी कर दी है। इससे चिता सता रही है कि फसल की रोपाई होगी भी या नहीं।

समस्या का हल करवाने का प्रयास किया जा रहा

कृषि उपनिदेशक कर्मचंद ने बताया कि सरकार के साथ मिलकर मजदूरों की समस्या हल करवाने का प्रयास किया जा रहा हैं। मनरेगा मजदूरों से भी प्रशासन की बातचीत चल रही हैं उनके द्वारा भी धान रोपाई का कार्य करवाया जाएगा। किसानों की परेशानी को दूर करने के लिए प्रशासन दिन रात जुटा हुआ है।


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