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Lok Sabha Election 2024: शिबू सोरेन को क्यों कहा जाता करिश्माई नेता? दिशोम गुरु की मिली उपाधि; संघर्ष से सियासत तक पहुंचे

Lok Sabha Election 2024 जो कष्टों को हर ले उस इंसान में ईश्वर नजर आने लगता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन क्षेत्रीय जनता के लिए ऐसे ही जीते-जागते अवतार हैं। मतदाता उनमें मुक्तिदाता की छवि देखते हैं। शिबू सोरेन के जीवन में कई उतार-चढ़ाव भी आए हैं। दुमका से आठ बार सांसद रहे गुरुजी पर प्रदीप सिंह का आलेख...

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Sun, 19 May 2024 08:19 AM (IST)
Lok Sabha Election 2024: शिबू सोरेन को क्यों कहा जाता करिश्माई नेता?  दिशोम गुरु की मिली उपाधि; संघर्ष से सियासत तक पहुंचे
लोकसभा चुनाव 2024: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सर्वेसर्वा शिबू सोरेन। (फाइल फोटो)

प्रायः ऐसा कम ही होता है कि आम लोग अपने प्रतिनिधि में ईश्वर की छवि देखते हों। जीते जी किंवदंती बन चुके झारखंड के सत्तारूढ़ क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सर्वेसर्वा शिबू सोरेन की लोकप्रियता कुछ ऐसी ही है।

उनके समर्थक उनकी एक छवि पाने के लिए हर वर्ष दो फरवरी को झारखंड की उपराजधानी दुमका में देर रात तक जमे रहते हैं। शिबू सोरेन जब अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हैं तो उनके समर्थक जोश से भर जाते हैं। लंबी बाल-दाढ़ी वाले इस करिश्माई नेता की उम्र 80 वर्ष हो चुकी है।

लोग मानते हैं दिशोम गुरु

स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे शिबू सोरेन अब सांकेतिक तौर पर ही सार्वजनिक सभाओं में नजर आते हैं। उनकी मौजूदगी मोर्चा के पोस्टर और बैनर पर ही ज्यादा दिखती है। इस बार वे चुनाव भी नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन समर्थकों की जुबान पर सिर्फ उनका ही नाम है। यहां के लोगों के लिए शिबू सोरेन बाबा और दिशोम गुरु हैं।

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दुमका से सरूआ गांव की बुजुर्ग महिला रंथी मुर्मु कहती हैं, ‘हमारी जमीन महाजनों ने छीन ली थी। गुरुजी (शिबू सोरेन) ने महाजनों से लड़कर उसे वापस दिलाया। हम उनमें भगवान की छवि देखते हैं।’ ऐसा कहते हुए रंथी की आंखों में एक चमक दौड़ जाती है।

कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष

शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर महाजनों की सूदखोरी और नशापान के खिलाफ संघर्ष से आरंभ हुआ। उन्होंने धनबाद से सटे टुंडी इलाके को अपना केंद्र बनाया और यही से काम आरंभ किया। पाठशाला में वे लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक भी करते। वर्ष 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन ने भाग्य आजमाया, लेकिन उनके हाथ असफलता लगी।

जब बाबूलाल मरांडी ने हराया

पहली सफलता उन्हें वर्ष 1980 में मिली। इसके बाद वे वर्ष 1986, 1989, 1991 और 1996 में विजयी रहे। पहली बार 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने शिकस्त दी थी। इसके बाद के चुनाव में शिबू सोरेन ने अपनी पत्नी रूपी सोरेन को चुनाव लड़ाया।

उन्हें भी बाबूलाल मरांडी ने हराया। वर्ष 2004, 2009 और 2014 में वे फिर से दुमका संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतने में सफल रहे। इस प्रकार कुल मिलाकर आठ बार उन्हें दुमका के मतदाताओं ने सिर-माथे पर बिठाया है।

परिवार के बिखराव का सामना करना पड़ रहा

बीच की अवधि में शिबू सोरेन दो बार राज्यसभा के भी सदस्य रहे और इसके साथ ही वर्ष 1984 में वे जामा विधानसभा से एक बार विधायक भी रहे। फिलहाल इस सीट पर उनकी बड़ी बहू सीता सोरेन का आधिपत्य है।

यह भी उल्लेखनीय है कि सीता सोरेन भारतीय जनता पार्टी में जा चुकी हैं और शिबू सोरेन की परंपरागत सीट दुमका से उनके उत्तराधिकार का दावा ठोंक रही हैं। दुखद है कि उम्र के इस पड़ाव पर कद्दावर नेता शिबू सोरेन को अपने परिवार में ही बिखराव का सामना करना पड़ रहा है।

आंदोलनकारी की छाप

बाबा और दिशोम गुरु का सफर तय करने को शिबू सोरेन ने लंबा तप किया है। शिबू सोरेन का परिवार तत्कालीन हजारीबाग जिला (अब रामगढ़) के गोला स्थित नेमरा गांव में रहता था। पिता सोबरन सोरेन महाजनों के खिलाफ संघर्ष करते थे। उनकी हत्या भी इसी वजह से हो गई।

शिबू सोरेन ने कई उग्र आंदोलनों का नेतृत्व किया, इसमें एक चिरूडीह हत्याकांड भी शामिल है। यह क्षेत्र में सक्रिय महाजनों के विरुद्ध आंदोलन था। इस दौरान भीड़ ने कई लोगों की हत्या कर दी थी।

शिबू सोरेन पर भी इन हत्याओं का आरोप लगा था, मगर बाद में वे अदालत से बरी भी हो गए। उनके ऊपर अपने पीए शशिनाथ झा की हत्या का भी आरोप लगा था। हालांकि अदालत मे यह प्रमाणित नहीं हो पाया। संसद रिश्वत कांड से वे राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आए।

आते रहे उतार-चढ़ाव

करिश्माई नेता शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव से भरपूर है। वे अलग-अलग अवधि में तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। राज्यसभा और लोकसभा चुनावों में भी शामिल होते रहे। वर्ष 2009 में ऐसा भी हुआ जब वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए विधानसभा का चुनाव हार गए।

दरअसल, मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा की सदस्यता होना आवश्यक था। वे तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में खड़े हुए थे, लेकिन आदिवासियों की प्रभावशाली उपजाति मुंडा के इस क्षेत्र में उन्हें लोगों ने स्वीकार नहीं किया। इसके बाद शिबू सोरेन राजनीति के मैदान में उतरे एक नए खिलाड़ी गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर से चुनाव हार गए। शिबू सोरेन 1980, 1986, 1989, 1991, 1996, 2004, 2009 और 2014 में दुमका लोकसभा सीट से चुनाव जीता।

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