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    कैसे बचे अरावली: अवैध खनन से पाताल में चला गया अरावली क्षेत्र का जल स्तर, 1990 से पहले 15 मीटर पर मिल जाता था पानी

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 05:36 AM (IST)

    अवैध खनन से अरावली पहाड़ी का जल स्तर काफी गिर गया है। 1990 से पहले 15 से 20 मीटर पर पानी मिल जाता था, लेकिन अब भूमिगत जल स्तर का नामोनिशान नहीं है। अर ...और पढ़ें

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    पानी की कमी की वजह से इस तरह कई इलाकों में नजर आता है अरावली पहाड़ी क्षेत्र। जागरण

    आदित्य राज, गुरुग्राम। अवैध खनन से अरावली पहाड़ी की खूबसूरती ही नहीं गायब हुई बल्कि भूमिगत जल स्तर पाताल तक चला गया। 1990 से पहले तक 15 से 20 मीटर पर ही पानी मिल जाता था। अब अधिकतर इलाकों में भूमिगत जल स्तर का नामोनिशान नहीं।

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    पहाड़ों के ऊपर हमेशा पानी रहने की वजह से कई इलाकों में सालों भर लोग उत्तराखंड के वादियों की तरह झरने का आनंद लेते थे। अब नूंह इलाके में एक-दो झरने दिखखई देते हैं। वह भी दम तोड़ने की कगार पर हैं। यहां तक अरावली के इलाके में बने प्राकृतिक तालाबों में भी सालों भर पानी नहीं रहता।

    इस वजह से भी वन्यजीव गर्मी के दिनों में अपनी प्यास बुझाने के लिए रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि अरावली की खूबसूरती तो दोबारा लौटाई नहीं जा सकती लेकिन वर्षा के पानी का संरक्षण किया जा सकता है। पहाड़ों के ऊपर होने वाली वर्षा का पानी सीधे नीचे बहकर नहीं बर्बाद हो जाता है।

    Aravalli (1)

    2000 से 2004 के बीच हुआ अंधाधुंध अवैध खनन

    यदि अवैध खनन की वजह से बनी सभी खाई तक पानी पहुंचने के लिए रास्ते बना दिए जाएं तो न केवल जल संरक्षण होगा बल्कि हरियाली भी बढ़ेगी और वन्यजीवों को प्यास बुझाने के लिए भटकना भी नहीं पड़ेगा। अरावली पहाड़ी क्षेत्र 1990 तक लगभग सुरक्षित था। इसके बाद गैर वानिकी कार्य शुरू हुए। वर्ष 2000 से लेकर 2004 के बीच हुए अंधाधुंध अवैध खनन ने अरावली पहाड़ी क्षेत्र की खूबसूरती बिगाड़ कर रख दी।

    पहाड़ों के ऊपर जितने भी प्राकृतिक तालाब थे, उनमें से अधिक खत्म हो गए। तलहटी में बने तालाबों तक पानी के आने के रास्ते खत्म हो गए। क्षेत्र में हर तरफ खाई ही खाई दिखाई देती है। सभी खाई में वर्षा के दौरान ही पानी रहता है। गर्मी के दिनों में सभी सूख जाते हैं। इस वजह से वन्यजीव भटकते हुए रिहायशी इलाकों में पहुंचते हैं। रिहायशी इलाकों में पहुंचने के दौरान वे हाईवे या अन्य सड़क पार करते हैं।

    कुछ सालों के दौरान 15 से अधिक वन्यजीवों की मौत सड़कों को पार करने के दौरान वाहनों की चपेट में आने से हो चुकी है। केवल मानेसर घाटी में ही दिल्ली-जयपुर हाईवे पर पांच तेंदुए की मौत हो चुकी है। दो महीने पहले गुरुग्राम-फरीदाबाद रोड पर मांगर के नजदीक एक तेंदुए की मौत हुई। पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि सभी खाई में वर्षा का पानी पहुंचा दिया जाए तो इससे न केवल भूमिगत जल स्तर बढ़ेगा बल्कि वन्यजीवों के लिए पानी की कमी नहीं रहेगी।

    उत्तराखंड की वादियों की तरह झरने का आनंद

    अवैध खनन से पहले अरावली पहाड़ी क्षेत्र में भी लोग उत्तराखंड की वादियों की तरह झरने का आनंद लिया करते थे। अब नूंह इलाके के कोटला एवं झिर में झरने का आनंद लोग पाते हैं। इन इलाकों में खनन माफिया सक्रिय नहीं हो पाए, इस वजह से अरावली की खूबसूरती काफी हद तक बरकरार है।

    घामड़ोज, भोंडसी, रायसीना, नल्हड़, दमदमा, खोड़ बसई के झरने इतिहास बनकर रह गए हैं। अभी भी काफी वर्षा के दौरान लोग घामड़ोज के झरने का आनंद लेते हैं। अवैध खनन की वजह से हरियाली खत्म गई। पहाड़ों के ऊपर वर्षा का पानी हमेशा ही जमा रहता था।

    पानी का रिसाव धीरे-धीरे नीचे होता रहता था। इससे आसपास हरियाली भी रहती थी और भूमिगत जल स्तर भी बना रहता था। प्राकृतिक तालाबों के खत्म होने का नतीजा यह है कि नांगल चौधरी इलाके में एक हजार फीट तक भी पानी नहीं मिलता है। भोंडसी इलाके में कई जगह 400 फीट पर भी पानी नहीं मिलता है।

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    अवैध खनन सहित अन्य गैर वानिकी कार्यों से सबसे अधिक नुकसान हरियाली एवं प्राकृतिक तालाबों को हुआ है। अब प्राकृतिक तालाबों को ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन जहां पर भी पानी जमा हो सकता है, वहां तक रास्ता बनाकर वर्षा का पानी पहुंचाया जाए। इससे स्थिति काफी हद तक ठीक हो सकती है। अवैध खनन के ऊपर पूरी तरह रोक लगानी होगी। रोक के बाद भी समय-समय पर शिकायतें आती रहती हैं।


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    - प्रो. केके यादव, अध्यक्ष, कृष्णा अरावली फाउंडेशन व सेवानिवृत मुख्य नगर योजनाकार

    अरावली पहाड़ी क्षेत्र में वर्षा जल के संरक्षण को लेकर चेक डैम बनाने के ऊपर जोर दिया जा रहा है। पिछले कुछ सालों के दौरान इसके ऊपर काफी काम किया गया है। यही वजह है कि कई इलाकों में हरियाली बढ़ी है। जहां तक खाई तक पानी पहुंचाने का सवाल है तो इसके ऊपर भी जोर दिया जा रहा है। अवैध खनन पर रोक है। नूंह के कुछ इलाके से कभी-कभी शिकायत आती है। उसे देखते हुए वहां पर भी निगरानी बढ़ाई गई है।


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    - डॉ. सुभाष यादव, वन संरक्षक