ईडी का एक्शन: यूनिवर्सल बिल्डवेल की 153 करोड़ की संपत्ति अटैच, 1000 करोड़ के घोटाले की जांच जारी
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) गुरुग्राम जोनल ऑफिस ने मेसर्स यूनिवर्सल बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड और समूह कंपनियों की 153.16 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच की है। यह कार्रवाई धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत की गई है। कंपनी के प्रमोटरों पर रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पूरा न करने और निवेशकों को धोखा देने का आरोप है। आरोप है कि प्रमोटरों ने 1000 करोड़ रुपये से अधिक जुटाए लेकिन निजी लाभ पर खर्च किया।

गौरव सिंगला, नया गुरुग्राम। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) गुरुग्राम जोनल आफिस ने मेसर्स यूनिवर्सल बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड और इसके समूह कंपनियों के पूर्व प्रमोटरों एवं उनके प्रमुख सहयोगियों की कुल 153.16 करोड़ रुपये मूल्य की अचल और चल संपत्तियां अस्थायी रूप से अटैच कर दी हैं। इसमें राजस्थान के बेहरोर, कोटपूतली में 29.45 एकड़ भूमि, गुरुग्राम सेक्टर-49 के यूनिवर्सल ट्रेड टॉवर में कई यूनिट और 3.16 करोड़ रुपये का फिक्स्ड डिपाजिट शामिल हैं। यह कार्रवाई धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 के तहत की गई है।
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ईडी ने 19 सितंबर को विशेष पीएमएलए कोर्ट गुरुग्राम में आरोपितों के विरुद्ध अभियोजन शिकायत भी दर्ज की है। ईडी ने यह जांच दिल्ली एनसीआर में दर्ज 30 से अधिक एफआइआर के आधार पर शुरू की थी। ये एफआईआर यूनिवर्सल बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड और इसके प्रमोटरों—रमण पुरी, विक्रम पुरी और वरुण पुरी— के विरुद्ध समय पर रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पूरा न करने और निवेशकों व आवंटियों को धोखा देने के लिए दर्ज की गई थीं। 22 जुलाई 2025 को इन तीनों प्रमोटरों और पूर्व निदेशकों को पीएमएलए के तहत गिरफ्तार किया गया और वे न्यायिक हिरासत में हैं।
कंपनी को बाद में कारपोरेट इनसाल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (सीआईआरपी) में लिया गया। इसके तहत आवंटियों और अन्य वित्तीय लेनदारों को शामिल करते हुए एक रेज़ोल्यूशन प्लान मंजूर किया गया। एनसीएलटी के आदेशानुसार कुछ संपत्तियां आवंटियों को ट्रांसफर की गईं जबकि बाकी संपत्तियों को बेचकर वित्तीय वसूली की जानी थी।
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हालांकि, आवंटियों को 15 साल से अधिक समय से प्रतीक्षा करनी पड़ रही है और प्रस्तावित रेजोल्यूशन के तहत उन्हें अतिरिक्त धनराशि का भुगतान करना पड़ रहा है। अधिकांश आवंटियों ने 2010 से पहले निवेश किया था लेकिन प्रमोटरों की कथित देरी और निर्माण रोकने की कार्रवाई के कारण उन्हें अभी तक फ्लैट या अन्य संपत्तियों का कब्जा नहीं मिल पाया है।
जांच के दौरान यह भी सामने आया है कि कंपनी के प्रमोटरों ने गुरुग्राम और फरीदाबाद में आठ अलग-अलग प्रोजेक्ट्स में 12 साल में 1000 करोड़ रुपये से अधिक जुटाए लेकिन केवल कुछ हिस्से का उपयोग विकास में किया और शेष धनराशि निजी लाभ के लिए हेरफेर कर ली। इसके तहत धोखाधड़ी, गलत अभिलेख, फर्जीवाड़ा और अपराधपूर्ण लाभ शामिल हैं। ईडी के अनुसार अभी मामले की जांच अभी जारी है।
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