TMMTMTTM Review: विदेशी लोकेशन के चक्कर में मेकर्स भूल गए कहानी, कार्तिक-अनन्या की केमिस्ट्री जीरो
Tu Meri Main Tera Main Tera Tu Meri Review: कार्तिक आर्यन और अनन्या पांडे की फिल्म 'तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी' सिनेमाघरों में क्रिसमस के मौके ...और पढ़ें

तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी रिव्यू/ फोटो- Jagran Review
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। मैं 2025 के कल्चर में नाइनटीज की हुकअप (जोड़ने वाली) स्टोरी चाहती हूं। उस दौर की प्रेम कहानियों के सात पड़ाव होते हैं-अनजाने से मुलाकात, फिर तकरार, धीरे-धीरे प्यार, बिछड़ने का डर, परिवार का विरोध, माता-पिता को मनाने की जद्दोजहद और अंततः मिलना या बिछड़ना। यह संवाद फिल्म की नायिका रूमी (अनन्या पांडेय) बोलती है और यहीं से दर्शकों को यह संकेत मिल जाता है कि यह कहानी भी इन्हीं पड़ावों से गुजरेगी, लेकिन यह प्रेम कहानी किसी भी पड़ाव पर प्रभावित नहीं कर पाती।
करण जौहर के प्रोडक्शन में बनी यह फिल्म बाहर से पूरी तरह चमकदार पैकेज लगती है। खूबसूरत विदेशी लोकेशन, शादी-ब्याह के भव्य सीन, पुराने हिट गानों के रीक्रिएटेड वर्जन और चमकदार कास्ट्यूम, लेकिन जब बात दिल को छूने वाले रोमांस और किरदारों से जुड़ाव की आती है, तो फिल्म बार-बार फिसल जाती है। प्रेम कहानी होते हुए भी इसमें प्रेम का अहसास कहीं ठहरता नहीं।
कितनी रोमांटिक है फिल्म की कहानी?
कहानी की शुरुआत दिल्ली में एक आलीशान शादी से होती है, जिसकी वेडिंग प्लानर पिंकी (नीना गुप्ता) होती है। उनका बेटा रेहान (कार्तिक आर्यन) हेलीकॉप्टर से दूल्हे को लाता है और यहीं से उसकी एंट्री एक चार्मिंग किरदार के रूप में होती है। रेहान क्रोएशिया की यात्रा पर निकलता है, जहां एयरपोर्ट पर उसकी मुलाकात लेखिका रूमी वर्धन से होती है, जो लव इन आगरा नामक किताब की लेखिका है।
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पहली मुलाकात में दोनों के बीच नोकझोंक होती है, जो रोमांटिक फिल्मों का जाना-पहचाना फॉर्मूला है। क्रोएशिया के आठ दिनों की यात्रा में यह तकरार धीरे-धीरे प्यार में बदल जाती है। इस बीच नींद की बीमारी में चलने वाले उनके पिता रिटायर्ड कर्नल अमर वर्धन सिंह (जैकी श्रॉफ) का एक्सीडेंट हो जाता है।
रूमी को पता चलता है उसकी बहन जिया (चांदनी भाभड़ा) कनाडा में रहने वाले युवक से प्यार करती है और शादी करके उसके साथ कनाडा बसने की तैयारी में है। यह पता चलने पर रूमी रेहान से रिश्ता तोड़ लेती है और कहती है कि अगर दोनों बहनें भारत के बाहर सैटल हो गई तो पिता का ध्यान कौन रखेगा।
फिर कहानी दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के नायक राज (शाह रुख खान) की तर्ज पर आगे बढ़ती है, जहां अमेरिका में रहने वाला रेहान आगरा पहुंचकर रूमी के पिता को मनाने की कोशिशों में लग जाता है। अंततः अमर अमेरिका जाने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन रूमी का अंतर्मन उसे पिता के साथ रहने का फैसला लेने पर मजबूर कर देता है। उसे लगता है कि क्यों हर बार माता-पिता ही बच्चों की खुशी के लिए त्याग करें?
फिल्म से ज्यादा एड प्रमोशन का करवाती है एहसास
समीर विद्वांस निर्देशित फिल्म का पहला हिस्सा पूरी तरह क्रोएशिया की खूबसूरत लोकेशन्स, कैफे, बीच और टूरिस्ट स्पॉट्स में घूमता रहता है। यहां तक कि एयरलाइंस और कास्मेटिक ब्रांड्स की ब्रांडिंग भी खुलकर नजर आती है, जो कहानी से ज्यादा प्रमोशन का एहसास कराती है। करण श्रीकांत शर्मा की लिखी कहानी का ज्यादा फोकस रेहान और रूमी है बाकी किरदारों को उभरने का मौका ही नहीं मिला है। न ही उनके पात्रों को समुचित तरीके से गढ़ा गया है।
यह कहानी को और कमजोर बनाते हैं। मध्यांतर के बाद कहानी आगरा आती है। कर्नल अमर अपने घर से बेइंतहा प्रेम करते हैं। यही वजह है कि देश नहीं छोड़ना चाहते। रूमी रेहान से साफ कह चुकी होती है कि यह शादी तब तक नहीं हो सकती जब तक पिता मर न जाए। शादी के बाद लड़की ही घर क्यों छोड़े। लड़का भी आकर रह सकता है। यह संदेश विचार के स्तर पर मजबूत है, लेकिन फिल्म में इसे जिस तरह से पेश किया गया है, वह बोझिल लगता है। आधुनिक सोच वाली रूमी का किरदार आगरा जैसे पारंपरिक माहौल में पूरी तरह स्थापित नहीं हो पाता।
प्रभावित नहीं करती दोनों के बीच की केमिस्ट्री
अभिनय की बात करें तो रोमांटिक कॉमेडी में कार्तिक आर्यन का ट्रैक रिकार्ड अच्छा रहा है और यहां भी वे कमजोर स्क्रिप्ट को संभालने की कोशिश करते नजर आते हैं, लेकिन लचर स्क्रीनप्ले उनके प्रयासों को सीमित कर देता है। अनन्या पांडेय की स्टाइलिंग और लुक पर काफी मेहनत की गई है, लेकिन भावनात्मक दृश्यों में वे बिल्कुल असर नहीं छोड़ पातीं। दोनों के बीच केमिस्ट्री भी प्रभावी नहीं बन पाई है। नीना गुप्ता और जैकी श्रॉफ जैसे मंझे कलाकार अपने अनुभव से किरदारों में जान डालने की कोशिश करते हैं, लेकिन स्क्रिप्ट उन्हें ज्यादा मौके नहीं देती।
तकनीकी पक्ष में अनिल मेहता की सिनेमैटोग्राफी क्रोएशिया की खूबसूरती को शानदार ढंग से कैद करती है। विशाल-शेखर का संगीत औसत है, हालांकि तैनू ज्यादा मोहब्बत जैसा गाना याद रह जाता है। एडिटिंग में भी कसावट की कमी है। एडिटर मनन अश्विन मेहता इसे बीस मिनट छोटा कर सकते थे। कुल मिलाकर, तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी एक ऐसी रोमांटिक फिल्म है, जिसमें प्यार, टकराव, संदेश और भव्यता सब कुछ मौजूद है, लेकिन आत्मा नहीं। यह फिल्म देखी जा सकती है, लेकिन महसूस नहीं की जा सकती।

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