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    Jaane Jaan Review: रोमांच में चूकी करीना कपूर की 'जाने जां', जयदीप-विजय वर्मा की अदाकारी भी नहीं आयी काम

    By Manoj VashisthEdited By: Manoj Vashisth
    Updated: Thu, 21 Sep 2023 01:48 PM (IST)

    Jaane Jaan Movie Review करीना कपूर खान ने फिल्म से ओटीटी डेब्यू किया है। इस फिल्म में उनका किरदार एक सिंगल मदर का है जो बेटी के साथ पहाड़ी इलाके में रहती है। एक मर्डर होने के बाद वो पुलिस जांच के दायरे में आ जाती है। इस मर्डर मिस्ट्री का निर्देशन सुजॉय घोष ने किया है। फिल्म में जयदीप अहलावत और विजय वर्मा भी हैं।

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    जाने जां नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गयी है। फोटो- नेटफ्लिक्स

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अलग-अलग जॉनर को थ्रिलर से जोड़कर बनाने के लिए फिल्‍ममेकर सुजॉय घोष विख्‍यात हैं। नेटफ्लिक्स पर रिलीज उनके द्वारा निर्देशित फिल्‍म जाने जां वर्ष 2005 में आई कीगो हिगाशिनो द्वारा लिखित मशहूर जापानी किताब ‘द डिवोशन आफ सस्पेक्ट एक्स’ पर आधारित है।

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    इस फिल्‍म से करीना कपूर खान ने डिजिटल प्‍लेटफॉर्म पर पदार्पण किया गया है। हालांकि, यह मर्डर मिस्ट्री रोमांचक नहीं बन पाई है।

    क्या है जाने जां फिल्म की कहानी?

    कलिंगपोंग में मिसेज माया डिसूजा (करीना कपूर) अपनी किशोर बेटी तारा (नायशा खन्‍ना) के साथ रहती है। माया टिफिन नामक रेस्‍त्रां संचालित करती है। मां बेटी अपने जीवन में सुखी हैं। माया का पड़ोसी नरेन (जयदीप अहलावत) गणित का शिक्षक है।

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    वह माया को पसंद करता है, लेकिन कहने की हिम्‍मत नहीं रखता। एक दिन अचानक से माया का पति और मुंबई पुलिस में सब इंस्‍पेक्‍टर अजित म्‍हात्रे (सौरभ सचदेवा) उसे खोजते हुए वहां पहुंच जाता है। वहां से माया के अतीत की परतें खुलती हैं। वह पोल डांसर हुआ करती थी। माया से मिलने अजित उसके घर जाता है। वहां पर आपसी कहासुनी में अजित का मर्डर हो जाता है।

    उधर, लापता अजित की खोज में मुंबई पुलिस का अधिकारी करण (विजय वर्मा) कलिंगपोंग आता है। वह मामले की जांच में जुटता है। अजित की जली हुई बॉडी पुलिस को मिलती है। शक की सुई एकमात्र माया की तरफ घूमती है। वहां से पुलिस और हत्‍यारे की खोज का सिलसिला आरंभ होता है।

    कैसे हैं स्क्रीनप्ले, अभिनय और संवाद?

    फिल्‍म का सबसे दिलचस्‍प पहलू है जयदीप अहलावत का किरदार। उन्‍होंने पात्र की मनोदशा से लेकर रंगरूप को लेकर स्‍वयं में छिपी हीन भावना को बहुत संजीदगी से व्‍यक्‍त किया है। अपने हर दृश्‍य से वह प्रभावित करते हैं। जाने जां कई मौकों पर रोमांचक लगती है, लेकिन जब आप किसी खास मोड़ की उम्मीद करते हैं, तो निराशा हाथ लगती है।

    मुख्य किरदारों और उनकी कहानियों के कई शेड्स हैं, लेकिन सभी आधे-अधूरे रह गए हैं। कलिंगपोंग का वातावरण कहानी के अनुकूल है। अपराध, पीड़ित, संदिग्ध, सुराग, जांच तक इसमें रहस्य थ्रिलर के लिए आवश्यक सभी तत्व मौजूद हैं, लेकिन लेखन स्‍तर पर कमजोर होने की वजह से किरदारों के प्रति लगाव या घृणा नहीं होती।

    उदाहरण के लिए करण और नरेन को हम उम्र और सहपाठी बताया गया है, लेकिन उनके अतीत की बहुत सतही जानकारी दी गई है। आपसी मुलाकात में नरेन एक बार भी करण से उसकी जिंदगी के बारे में नहीं पूछता, जबकि दोनों बहुत समय बाद मिल रहे होते हैं।

    नरेन कलिंगपोंग में क्‍यों बसा? उसकी जिंदगी में अकेलापन क्‍यों हैं? इन जानकारियों का अभाव खटकता है। अजित म्‍हात्रे का किरदार भी अधपका है। पुलिस में होने के बावजूद उसने अपने बीवी को पोल डांसर क्‍यों बनाया? यह समझ से परे है। मर्डर होने के बाद पुलिस होटल में मौजूद कंघी के बाल से डीएनए मैच कराती है।उसकी बेटी से क्‍यों नहीं? अजित का शव वास्‍तव में कहां गया?

    अजित और माया के अतीत की भी आधी-अधूरी जानकारी है। फिल्‍म में संवाद है कि गणित भी लॉजिक है, लेकिन वो लॉजिक कहानी को दिलचस्‍प नहीं बना पाए हैं। कहानी, बदला जैसी यादगार थ्रिलर फिल्‍में देने वाले सुजॉय घोष यहां पर चूक गए हैं। उन्‍हें फिल्म के लिए करीना कपूर, जयदीप अहलावत और विजय वर्मा को लिया है, लेकिन कमजोर कहानी की वजह से उनकी अदायगी भी फिल्‍म को संभाल नहीं पाई है।

    कैसा रहा करीना का ओटीटी डेब्यू?

    कहानी करीना कपूर के पात्र के आसपास रची गई है। उनका किरदार डर के साए में जीता है, उस भूमिका में वह कहीं-कहीं फिसलती नजर आती हैं। फिल्‍म में विजय वर्मा का किरदार रोमांटिक ज्‍यादा है। उसे बताया बुद्धिमान है, लेकिन जांच करते हुए वह साधारण अधिकारी ही लगता है।

    जयदीप अपने आधे-अधूरे और बदसूरत चरित्र के साथ साबित करते हैं कि वह मंझे कलाकार क्‍यों कहलाते हैं। सौरभ सचदेवा की प्रतिभा का समुचित उपयोग सुजॉय नहीं कर पाए। कलिंगपोंग के कुछ मनमोहक दृश्यों के साथ वहां की जीवनशैली की छोटी सी झलक देने की कोशिश सिनेमेटोग्राफी के जरिए हुई है। फिल्‍म में कई पुराने गाने हैं, जो समां बांधने में मददगार होते हैं। हालांकि, यह फिल्‍म पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों की मुश्किलों की कोई झलक नहीं देती।

    अवधि: दो घंटा 19 मिनट

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