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    Chhaava Review: शेर की तरह दहाड़ लगाकर Pushpa 2 के रिकॉर्ड को चकनाचूर कर देगा छावा? यहां पर पढ़ें पूरा रिव्यू

    Updated: Fri, 14 Feb 2025 09:47 AM (IST)

    विक्की कौशल की छावा (Chhaava Movie) का फैंस को एक लंबे समय से इंतजार था। लक्ष्मण उतेरकर के निर्देशन में बनी इस मूवी में विक्की छत्रपति शिवाजी महाराज ...और पढ़ें

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    कैसी है विक्की कौशल-रश्मिका मंदाना की फिल्म छावा, पढ़ें रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics

    प्रियंका सिंह, मुंबई। हाथी घोड़े, तोप, तलवारें फौज तो तेरी सारी है, पर जंजीर में जकड़ा राजा मेरा अब भी सब पे भारी है...। फिल्म में कवि कलश की कही ये लाइनें वह दृश्य सामने ले आती है कि क्या खौफ रहा होगा, जब मुगल शासक औरंगजेब की सल्तनत में बंदी बनकर खड़े रहने के बावजूद छत्रपति संभाजी महाराज ने मुगलों की नींव हिला दी थी। निर्देशक लक्ष्मण उतेकर निर्देशित फिल्म छावा उसी शूरवीर मराठा योद्धा की कहानी को पर्दे पर लेकर आती है। फिल्म लेखक शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास छावा पर आधारित है।

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    छावा की कहानी खड़े कर देगी रोंगटे? 

    कहानी शुरू होती है, औरंगजेब (अक्षय खन्ना) को मिलने वाली उस खबर के साथ जिसमें पता चलता है कि मराठा साम्राज्य के संस्थापक और योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई है। औरंगजेब को लगता है कि दक्कन में अब उसका सामना करने वाला कोई नहीं बचा है।

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    लेकिन उसी दौरान मुगलों के गढ़ बुरहानपुर में छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी महाराज (विक्की कौशल) अपनी सेना के साथ हमला कर देते हैं। अपने पिता की ही तरह पराक्रमी योद्धा संभाजी राजे को लोग छावा यानी शेर का बच्चा भी कहकर बुलाते हैं। औरंगजेब इस हमले से तिलमिला जाता है। वह नौ वर्षों तक छावा को घेरने के कई प्रयास करता है, जिसमें उसे मराठा योद्धा धूल चटा देते हैं।

    Photo Credit- Imdb

    मराठा समाज के वीर योद्धाओं का जूनुन दिखाने में हुए सफल

    मिमी, लुका छुपी, जरा हटके जरा बचके फिल्मों के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर की छावा पहली ऐतिहासिक फिल्म है। अपने लेखकों के साथ मिलकर किताब को स्क्रीनप्ले में परिवर्तित करने के साथ ही लक्ष्मण की अपनी रिसर्च भी मजबूत है।

    वह मराठा साम्राज्य के वीर योद्धाओं का हिंदू स्वराज्य के प्रति जुनून और समर्पण को दर्शाने में सफल हुए हैं। लेकिन मध्यातंर से पहले कुछ पात्रों से परिचित कराने में चूक गए हैं। शिवाजी महाराज की दूसरी पत्नी सोयराबाई भोसले के प्रकरण को भी उन्होंने जल्दबाजी में निपटाया है। हालांकि क्लाइमेक्स दमदार है, जिसमें असीम दर्द है, तो वहीं गर्व का अहसास भी है भारत की धरती पर ऐसे वीर सपूत पैदा हुए हैं।

    संवादों में मराठी भाषा का उपयोग न होना थोड़ा दिल तोड़ता है

    एआर रहमान का संगीत, इरशाद कामिल के लिखे गीत कर्णप्रिय हैं, लेकिन ढोल-ताशे अगर होते, तो महाराष्ट्र की मिट्टी से जुड़ना और आसान हो जाता। संवादों में मराठी भाषा का पुट न होना भी अखरता है।

    हर कठिन परिस्थिति में बाल संभाजी महाराज को शिवाजी महाराज की आवाज से मार्गदर्शन मिलने वाले दृश्य दिल को छूते हैं। औरंगजेब की सल्तनत में लहुलुहान होकर बेड़ियों में जकड़े संभाजी महाराज और कवि कलश के बीच कविताओं की प्रतियोगिता याद रह जाती है।

    एक सीन में औरंगजेब छत्रपति संभाजी महाराज से कहता है कि हमसे हाथ मिला लो, बस तुम्हें अपना धर्म बदलना होगा, इस पर संभाजी महाराज कहते हैं कि हमसे हाथ मिला लो, मराठाओं की तरफ आ जाओ, जिंदगी बदल जाएगी और धर्म भी बदलना नहीं पड़ेगा... छत्रपति शिवाजी महाराज को शेर कहते हैं और उस शेर के बच्चे को छावा... ऋषि विरमानी के लिखे ये संवाद तालियां और सीटियां बटोरते हैं। जीतकर भी हार जाने वाले औरंगजेब का कहना की काश हमारी एक औलाद भी संभाजी जैसी होती, अहसास कराता है कि कैसे इस योद्धा ने मुगलों को नाकों चने चबवाए थे।

    सिनेमैटोग्राफर सौरभ गोस्वामी की सराहना बनती है, जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध और मुगल सेना का संभाजी महाराज को धोखे से घेरने वाले दृश्यों को बड़ी ही बारिकी से फिल्माया है।

    छत्रपति संभाजी महाराज के किरदार के साथ विक्की ने किया न्याय

    विक्की कौशल ने कहा था कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि वह छत्रपति संभाजी महाराज कैसे बन सकते हैं। उस चुनौती को वह पूरी जिम्मेदारी के साथ पूरा करते हैं। कुशल योद्धा की तरह दुश्मनों को खदेड़ने से लेकर मराठाओं में स्वराज्य के प्रति अभिमान बढ़ाकर जोश भरने और क्लाइमेक्स में लहुलुहान, बेड़ियों में जकड़े होने, आंखें, जीभ और नाखून निकालने के बावजूद सर ऊंचा करके मुगलों के सामने खड़े रहने वाले वीर मराठा योद्धा संभाजी महाराज के हर एक पल को विक्की ने जिया है।

    Photo Credit- Imdb

    बेड़ियों में जकड़कर जब उन्हें खींचा जाता है, तो वाकई में लगता है, जैसे किसी शेर को पकड़ लिया है, जिसे नियंत्रण में लाना नामुमकिन है। रश्मिका मंदाना संभाजी महाराज की पत्नी येसूबाई की भूमिका में जमती हैं। इस बार उनके संवादों में दक्षिण भारतीय भाषा का असर कम दिखता है। कम संवादों में औरंगजेब के रोल में अक्षय खन्ना साबित करते हैं कि वह हर तरह का रोल करने का मादा रखते हैं। कवि कलश की भूमिका में विनीत कुमार सिंह कवि से योद्धा बनने के सफर को जीते हैं। हालांकि आशुतोष राणा, डायना पेंटी और दिव्या दत्ता जैसे कलाकारों का सही प्रयोग लक्ष्मण नहीं कर पाए हैं। उनका पात्र अधूरा सा लगता है।

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