Hrishikesh Mukherjee Movies: ऋषिकेश मुखर्जी की ये सात फिल्में मानी जाती हैं क्लासिक, ओटीटी पर हैं मौजूद
Hrishikesh Mukherjee Death Anniversary ऋषिकेश मुखर्जी ने अपना करियर कैमरामैन और फिल्म एडिटर के तौर पर शुरू किया था। उन्होंने बिमल रॉय को असिस्ट किया और इसके बाद स्वतंत्र निर्देशक के रूप में करियर शुरू किया। राज कपूर की अनाड़ी से ऋषिकेश को बड़ी पहचान मिली। उनकी फिल्मों का ह्यूमर रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली घटनाओं से निकलता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। ऋषिकेश मुखर्जी का सिनेमा छोटी-छोटी बातों में खुशियों की तलाश करने के लिए जाना जाता है। रोजमर्रा की उठापटक में गुदगुदाने वाले लम्हे उनकी फिल्मों में नजर आते रहे हैं। हिंदी सिनेमा में हीमैन छवि के लिए विख्यात धर्मेंद्र से कॉमेडी करवाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। अमिताभ बच्चन को आनंद के जरिए सिनेमा में स्थिरता देने वाले फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी ही थे।
उन्होंने जिन फिल्मों का निर्देशन किया, वो आज भी कई दशकों बाद प्रासंगिक हैं और उनमें हास्य का भाव पुराना नहीं लगता। 27 अगस्त, 2006 को 83 साल की उम्र में अलविदा कहने वाले ऋषिकेश मुखर्जी को उनकी फिल्मों के जरिए आज भी महसूस किया जा सकता है।
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बावर्ची
1972 में आयी बावर्ची में ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना को बावर्ची बनाया था। यह एक ऐसे परिवार की कहानी थी, जिसके सदस्यों में कोई तालमेल नहीं थी। राजेश खन्ना का किरदार घर में बावर्ची का काम करता है, मगर अपनी सूझबूझ से वो परिवार के अलग-थलग रहने वाले सदस्यों को एक-दूसरे के करीब लाता है।
फिल्म में राजेश खन्ना के अलावा जया बच्चन, असरानी, हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, एके हंगल, दुर्गा खोटे, मनीषा, काली बनर्जी, उषा किरण और राजू श्रेष्ठ अहम किरदारों में नजर आये। इस फिल्म को एमएक्स प्लेयर पर देख सकते हैं।
चुपके चुपके
चुपके चुपके हिंदी सिनेमा की क्लासिक कॉमेडी फिल्म मानी जाती है। धर्मेंद्र की यह पहली कॉमेडी फिल्म मानी जाती है। 1975 में आयी चुपके चुपके बंगाली फिल्म छद्मबेशी (Chhadmabeshi) की रीमेक थी। फिल्म में धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, शर्मिला टैगोर, जया बच्चन, ओम प्रकाश, उषा किरण, डेविड अब्राहम, असरानी और केष्टो मुखर्जी ने शानदार किरदार निभाये थे। ये फिल्म प्राइम वीडियो पर मौजूद है।
गोलमाल
गोलमाल भी हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्म मानी जाती है। ऋषिकेश मुखर्जी ने यह फिल्में उस वक्त बनायीं, जब सिनेमा में एक्शन का जोर था। बड़े-बड़े सितारों के बीच 1979 में आयी गोलमाल ने अपनी अलग पहचान बनायी। गोलमाल, अमोल पालेकर और उत्पल दत्त के बीच कॉमिक सींस के लिए जानी जाती है।
अमोल के किरदार रामप्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद आज भी गुदगुदा जाते हैं। फिल्म में बिंदिया गोस्वामी, देवेन वर्मा, शोभा खोटे ने भी अहम किरदार प्ले किये थे। इस मूवी को प्राइम वीडियो पर देखा जा सकता है।
खूबसूरत
1980 में आयी खूबसूरत में राकेश रोशन और रेखा ने मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं, जबकि दीना पाठक और अशोक कुमार सहयोगी किरदारों में थे। परिवार में अनुशासन जब संबंधों को साधने के बजाये घुटन बढ़ाने लगे तो क्या हो सकता है, यही इस फिल्म का सार है। यह फिल्म बाद में तेलुगु, तमिल और मलयालम भाषाओं में भी रीमेक हुई। यह फिल्म सोनीलिव पर देखी जा सकती है।
नरम गरम
1980 में ऋषिकेश मुखर्जी एक बार फिर अमोल पालेकर और उत्पल दत्त को साथ लेकर आये और नरम गरम बनायी। प्यार को बचाने के लिए नायक जो रास्ते अपनाता है, उससे फिल्म में हास्य पैदा किया गया। शत्रुघ्न सिन्हा और स्वरूप संपत ने फिल्म में अहम किरदार निभाये। यह फिल्म भी सोनीलिव पर देखी जा सकती है।
किसी से ना कहना
किसी से ना कहना, ऋषिकेश मुखर्जी की एक और यादगार पेशकश है। 1983 रिलीज हुई रोमांटिक कॉमेडी फिल्म में फारूख शेख, दीप्ति नवल और उत्पल दत्त ने मुख्य किरदार निभाये थे। जहां उत्पल दत्त ने एक कठोर पिता की भूमिका निभाई, वहीं फारूख शेख और दीप्ति नवल के बीच की केमिस्ट्री देखने को मिली। इस फिल्म को लोगों ने बेशुमार प्यार दिया था। यह फिल्म प्राइम वीडियो पर देखी जा सकती है।
झूठ बोले कौवा काटे
झूठ बोले कौवा काटे 1998 में रिलीज हुई थी। फिल्म में अनिल कपूर, जूही चावला, अमरीश पुरी, रीमा लागू, अनुपम खेर और साजिद खान ने प्रमुख किरदार निभाये थे। यह फिल्म बतौर निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की आखिरी फिल्म थी। आप सभी को बता दें, दर्शक फिल्म 'झूठ बोले कौवा काटे ' को एमएक्स प्लेयर पर देख सकते हैं।
फिल्म एडिटर के तौर पर शुरू किया करियर
ऋषिकेश मुखर्जी ने 40 के दशक में न्यू थियेटर्स में बतौर कैमरामैन और फिल्म एडिटर के तौर पर काम करना शुरू किया था। उस दौर के दिग्गज निर्देशक बिमल रॉय के साथ उन्होंने दो बीघा जमीन और देवदास पर बतौर असिस्टेंट काम किया।
साल 1957 में उन्होंने 'मुसाफिर' फिल्म से डायरेक्टोरियल करियर शुरू किया था। 1959 में आयी अनाड़ी में उन्होंने राज कपूर और नूतन को डायरेक्ट किया। इस फिल्म ने ऋषिकेश मुखर्जी को शोहरत दिलायी। 1999 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहेब फाल्के से सम्मानित किया गया। मुखर्जी सीबीएफसी के चेयरमैन भी रहे थे।