Bimal Roy Birth Anniversary: धर्मेंद्र और दिलीप कुमार के करियर में 'मेडल' की तरह हैं बिमल रॉय की फिल्में
Bimal Roy Birth Anniversary धर्मेंद्र और दिलीप कुमार के बेहद करीब माने जाते थे बिमल रॉय। उन्होंने दोनों कलाकारों के साथ हिंदी सिनेमा की कुछ आइकॉनिक फिल्में दी हैं। देवदास बंदिनी और मधुमती जैसी फिल्में भारतीय सिनेमा के लिए धरोहर की तरह हैं जो सालों बाद भी फिल्मकारों को इस क्राफ्ट की बारीकियां सिखाती हैं। बिमल रॉय ने अपनी फिल्मों से सामाजिक मुद्दों को भी उठाया।

नई दिल्ली, जेएनएन। ‘बिमल रॉय’ भारतीय सिनेमा के उन फिल्मकारों में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए सिनेमा को मनोरंजन के साथ सार्थकता दी। वक्त और सामाजिक चेतना के मुताबिक फिल्मों का निर्माण बिमल रॉय की खासियत रही।
12 जुलाई, 1909 को पूर्वी बंगाल में जन्मे बिमल रॉय ने 40 से 60 के दौर में अपनी फिल्मों से हिंदी सिनेमा को समृद्ध किया। धर्मेंद्र और दिलीप कुमार के करियर में बिमल रॉय का खास योगदान रहा, जिनके साथ उन्होंने क्लासिक फिल्मों का निर्माण-निर्देशन किया। उनकी कुछ क्लासिक फिल्में, जिन्होंने हिंदी सिनेमा का रुख बदलने का काम किया।
दो बीघा जमीन
बिमल रॉय ने हिंदी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत 1953 में की थी। उनकी दो फिल्में परिणीता और दो बीघा जमीन रिलीज हुई थीं। रबींद्रनाथ टैगोर की लिखी कहानी दुई बीघा जोमी पर बनी फिल्म समानांतर सिनेमा की शुरुआती फिल्मों में मानी जाती है। बलराज साहनी और निरुपा राय के अभिनय से सजी इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ उस साल हुए कान फिल्म फेस्टिवल में भी अवॉर्ड मिला था। यह एक किसान के उसकी जमीन के लिए संघर्ष की कहानी है।
मधुमती
1958 में आयी मधुमती, हिंदी सिनेमा की ट्रेंडसेटर फिल्म मानी जाती है, क्योंकि पुनर्जन्म विषय पर बनी यह पहली बड़ी सफल फिल्म थी। फिल्म में दिलीप कुमार, प्राण और वैजयंतीमाला ने फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं। मधुमती ने बॉक्स ऑफिस के साथ अवॉर्ड समारोह में भी तहलका मचा दिया था। इसके 9 फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड 37 सालों तक नहीं टूटा। 1995 में आयी काजोल और शाहरुख खान की ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ ने 10 फिल्मफेयर जीतकर इस रिकोर्ड को तोड़ा।
देवदास
बिमल रॉय की फिल्म ‘देवदास’ हिंदी सिनेमा की कल्ट क्लासिक मानी जाती है। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के नॉवल का यह पहला हिंदी अडेप्टेशन था। दिलीप कुमार, वैजयंतीमाला और सुचित्रा सेन अभिनीत फिल्म को आज भी इस नॉवल पर बनी बेस्ट फिल्म माना जाता है।
दिलीप कुमार की परफॉर्मेंस को भारतीय कलाकारों की 25 बेस्ट परफॉर्मेंसेज में से एक माना जाता है। देवदास को फिल्मफेयर के साथ नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में भी सम्मानित किया गया।
सुजाता
सुनील दत्त और नूतन अभिनीत ‘सुजाता’ में बिमल रॉय ने जातिवाद की समस्या को रेखांकित किया। यह फिल्म भी एक बंगाली शॉर्ट स्टोरी पर आधारित थी, जिसमें एक ब्राह्मण लड़के और अछूत लड़की के बीच प्रेम प्रसंग दिखाया गया था। इस फिल्म के लिए बिमल रॉय को बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया था।
बंदिनी
1963 में रिलीज हुई बंदिनी में नूतन, अशोक कुमार और धर्मेंद्र मुख्य भूमिकाओं में थे। यह महिला कैदी की कहानी थी, जो अपने पूर्व प्रेमी की पत्नी के कत्ल के इल्जाम में सजा काट रही है।
उस दौर में इस तरह की बोल्ड कहानी को डायरेक्ट करने का रिस्क बिमल रॉय ही ले सकते थे। बंदिनी धर्मेंद्र के करियर की उन फिल्मों में से एक है, जिन्होंने बतौर एक्टर उनकी छवि मजबूत की।
बिमल रॉय सामाजिक मुद्दों को बड़ी ही सहजता से अपने फिल्मों के जरिए लोगों तक पहुंचाते थे। डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखने की इच्छा रखने वालों के लिए उनकी फिल्में स्टडी मैटेरियल से कम नहीं हैं।
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