भेड़चाल में Bollywood! क्या यूनीकनेस और क्रिएटिविटी की कमी के चलते हिंदी फिल्मों से बोर हो रहे दर्शक?
पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड को लेकर बार-बार सवाल उठ रहे हैं क्या बॉलीवुड अपनी क्रिएटिविटी खो रहा है? क्या समय के साथ-साथ भेड़चाल की मानसिकता हिंदी सिनेमा पर इतनी तेजी से हावी हो रही है कि दर्शक भी बोर हो रहे हैं? पहले से सिनेमा में काफी बदलाव आ गया है। सारा खेल बॉक्स ऑफिस के इर्द-गिर्द घूमने लगा है।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा जिसे बॉलीवुड कहा जाता है, हॉलीवुड के बाद दूसरी सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है। यह सिनेमा अपने अलग तरह के गानों, डांस और डायलॉग्स-कहानी के लिए मशहूर रहा है। 100 साल से भी ज्यादा समय से यह भारतीय दर्शकों का मनोरंजन कर रहा है। मगर अब इसका क्रेज पता नहीं कहां गुम होता जा रहा है।
एक दौर था जब बॉलीवुड फिल्में अपने अनूठे अंदाज के लिए जाना जाता था। रोमांटिक हो, सामाजिक हो या फिर एक्शन हो, हर जॉनर में भव्यता के साथ-साथ एक नयापन होता था जो दर्शकों को हर शुक्रवार को सिनेमाघरों में खींचने के लिए मजबूर कर देता था। मगर हाल के वर्षों में यूनीकनेस की कमी दिख रही है।
भेड़चाल में बॉलीवुड?
फिल्में तो बन रही हैं लेकिन ट्रेंड को फॉलो करते हुए। अगर कोई एक्शन फिल्म चल गई तो तुरंत वैसी ही दस और फिल्में पाइपलाइन में आ जाती हैं। अगर एक हॉरर-कॉमेडी हिट होती है, तो उसी पैटर्न पर अनगिनत फिल्में बनने लगती हैं और पिछले कुछ सालों में यह बॉलीवुड का स्टिग्मा बन गया है और लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या हिंदी सिनेमा भेड़चाल का हिस्सा बन गया है।
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बॉक्स ऑफिस का है दबाव?
आज बॉलीवुड अच्छी फिल्में बनाने की रेस में नहीं, बल्कि बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की रेस में दौड़ रहा है। फिल्ममेकर्स पर बॉक्स ऑफिस का दबाव इतना ज्यादा है कि वे अपनी फिल्मों के फ्लॉप होने के डर से हिट फिल्मों का पैटर्न इस्तेमाल करने लगे हैं। मगर क्रिएटिविटी कहां है? यह भेड़चाल नहीं तो क्या है?
रणदीप हुड्डा ने मारा ताना
हाल ही में, जाट अभिनेता रणदीप हुड्डा ने एक हालिया इंटरव्यू में इसी समस्या को उजागर किया था। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में कहा था-
फिल्म इंडस्ट्री में पूरी तरह से भेड़चाल चल रही है। अगर एक चीज काम करती है तो वैसी ही चीजें बनने लगती हैं। सबको वही बनाना है। अभी सबको स्त्री के बाद हॉरर-कॉमेडी बनाना है।
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सिर्फ सितारों पर निर्भरता बन रही रुकावट?
एक वक्त था जब फिल्मों और उसके किरदारों को अहमियत दी जाती थी। अभिनेताओं को सिर्फ इसलिए कास्ट नहीं किया जाता था, क्योंकि वे बड़े स्टार हैं? आज स्टार पावर इतना बढ़ गया है कि बिना यूनीक कहानी या कॉन्सेप्ट के फिल्में बन जाती हैं और उनके नाम से धड़ाधड़ प्रमोशन होते हैं। ताकि फिल्म के नाम पर भले ही कमाई न हो लेकिन स्टारडम के दम पर टिकट तो बिक ही जाएंगी। इसके चलते कई अच्छे कलाकारों को मौका नहीं मिल पाता है। खैर, आज की दर्शक भी बड़ी होशियार है। वे सोशल मीडिया पर सबसे बड़ी क्रिटिक बन गई हैं। बॉलीवुड की मौलिकता पर सवाल उठा रही हैं और क्षेत्रीय फिल्मों की ओर रुख कर रही हैं।
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ओटीटी ने बढ़ाई दर्शकों की उम्मीद?
जब से ओटीटी आया है तब से दर्शक भी बहुत बड़े क्रिटिक हो गए हैं। अब ओटीटी पर एक्शन से लेकर रोमांस, थ्रिल, सस्पेंस जैसे सारे मसाले मिल रहे हैं, वो भी अलग-अलग अंदाज में, नए-नए कलाकारों में... तो पुराने घिसी-पिटी कहानियों के लिए वे सिनेमाघर में पैसा क्यों ही बहाने जाए। अब दर्शक तभी सिनेमाघर जा रहे हैं, जब उन्हें कहानी में नयापन मिल रहा हो या फिल्में लीक से हटकर बन रही हैं, ना कि शानदार सेट, बड़े सितारे और लाउड म्यूजिक। उन्हें दमदार कहानी चाहिए, मजबूत किरदार चाहिए और शानदार अनुभव चाहिए, ना कि सीक्वल पर सीक्वल।
रीजनल सिनेमा का बढ़ रहा क्रेज
ऐसा नहीं है कि हिंदी सिनेमा में सब भेड़चाल में ही लगे हैं। कुछ कलाकार हैं जो लीक से हटकर यूनीकनेस को बरकरार रख रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। कुछ बॉलीवुड को गुडबाय कहकर रीजनल सिनेमा की ओर झुकाव कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से साउथ की फिल्में बॉलीवुड को टक्कर दे रही हैं, चाहे वो कहानी में हो या फिर बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में।
इसलिए बॉलीवुड को दर्शकों में फिर से विश्वास जगाना है तो उन्हें अपनी फिल्मों में कुछ नयापन या यूनीकनेस लाना होगा। फिल्मों में ऐसा कॉन्सेप्ट लाना होगा जिसे देखकर उनका दिमाग चकरा जाए। अगर यह भेड़चाल जारी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब दर्शक पूरी तरह से बॉलीवुड से किनारा कर लेंगे और भारतीय फिल्म उद्योग सिर्फ एक फीकी याद बनकर रह जाएगा।
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