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    उत्‍तराखंड चुनाव: टिकट बंटवारा...खालिस हरदा स्टाइल

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 24 Jan 2017 07:05 AM (IST)

    उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के लिए कांग्रेस ने 63 सीटों पर प्रत्‍याशी घोषित कर दिए हैं। इससे पहले ही अधिकांश टिकट पाने वाले सिंबल लेकर अपने क्षेत्र को रवाना भी हो चुके थे।

    उत्‍तराखंड चुनाव: टिकट बंटवारा...खालिस हरदा स्टाइल

    देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: कहां तो कांग्रेस का दावा था कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा चुनाव आचार संहिता से भी पहले कर दी जाएगी, लेकिन जब मौका आया तो टिकट बंटवारा तारीख दर तारीख खिसकता रहा। सस्पेंस बढ़ता गया, यहां तक कि भाजपा की अंतिम सूची भी आ गई मगर कांग्रेस के चुनावी चेहरों का इंतजार खत्म ही नहीं हुआ।

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    सरकार और संगठन के मुखिया पिछले कई दिनों से दिल्ली में डटे प्रत्याशियों के नामों पर मंथन कर रहे थे और सूबे में टिकट के दावेदारों की नींद गायब। रविवार अपराह्न जब प्रत्याशियों की सूची सामने आई, उससे पहले ही अधिकांश टिकट पाने वाले सिंबल लेकर अपने क्षेत्र को रवाना भी हो चुके थे। यानी, टिकटों की दावेदारी से लेकर प्रत्याशी चयन और टिकट बंटवारा, सब खालिस हरदा स्टाइल।

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    मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी कार्यशैली और फैसलों को लेकर अकसर चौंकाते रहते हैं। कई बार उनके फैसलों की जानकारी उनके नजदीकियों को भी नहीं होती। उनकी स्टाइल विधानसभा चुनाव में भी नहीं बदली है। सरकार को समर्थन देने वाले गैर कांग्रेसी विधायकों के गुट प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट को लेकर प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय महीनों तक रार ठाने रहे मगर हरीश रावत ने इस ओर कान ही नहीं धरे।

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    जब भी मीडिया उनसे पूछता तो उनका एक ही जवाब होता, संकट में साथ देने वालों का साथ ऐन मौके पर कैसे छोड़ दें। टिकट बंटने पर साफ हो गया कि पीडीएफ के मामले में तो चली केवल हरदा की ही। यही नहीं, वह किशोर उपाध्याय को मान मनुहार कर टिहरी से सहसपुर तक ले आए, सेफ सीट का दिलासा देकर। पहले योग्यता के आधार पर परिजनों को भी टिकट की पैरवी कर रहे रावत ऐन प्रत्याशी चयन के वक्त पलट गए और एक परिवार से एक ही टिकट की हिमायत कर डाली।

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    मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र को लेकर महीनों से कयास लग रहे थे लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि वह दो विधानसभा सीटों से ताल ठाक डालेंगे। अपने खास अंदाज में यह चौंकाने वाला कदम उठाकर उन्होंने विपक्ष तक को सोचने पर मजबूर कर दिया। रविवार को घोषित प्रत्याशियों की सूची में चंद ही नाम ऐसे दिखे, जिन पर विवाद की आशंका की हो सकती थी लेकिन इसके बावजूद पार्टी आलाकमान के साथ टिकट फाइनल करने में कई दिन लगा दिए।

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    इसके बावजूद अगर टिकट बांटने के लिए नामांकन की अवधि के तीन दिन गुजरने का इंतजार किया गया तो इसके पीछे हरीश रावत की सोची समझी रणनीति ही थी। एक तो जितनी देरी होगी, विरोध की संभावना उतनी ही कम होगी और फिर बगावत करने वालों को चुनावी ताल ठोकने को सोचने-विचारने का वक्त ही नहीं मिलेगा।

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    हद तो तब हो गई जब टिकटों के तमाम दावेदार रविवार को कांग्रेस मुख्यालय से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक का फेरा लगाते रहे कि घोषणा अब होगी, तब होगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं और सूची सार्वजनिक की गई पार्टी वेबसाइट और सोशल मीडिया पर अपराह्न लगभग तीन बजे।

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    उधर, दोपहर से ही जिनका नाम फाइनल हुआ, उन्हें चुपचाप दो किमी दूर एक पार्टी नेता के आवास पर बुलाकर सिंबल थमा दिए गए। विरोध करने वाले प्रदेश मुख्यालय पर नेताओं के इंतजार में थे मगर मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष को बवाल का अंदेशा था ही, लिहाजा उन्होंने उधर का रुख किया ही नहीं। यह भी रही मुख्यमंत्री हरीश रावत की एक अनोखी सियासी अदा।

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