कभी छात्र नेता से राजनीति का सफर शुरु करने वाले ये नेता आज एक ऊंचे मुकाम पर
आजादी से पहले की बात करें तो युवा शक्ति को पहचानते हुए लाला लाजपत राय भगत सिंह सुभाष चंद्र बोस जवाहर लाल नेहरू ने भी छात्र राजनीति को काफी तवज्जो दी थी।
रवि प्रकाश/संजय कुमार सिंह। भारत में छात्र राजनीति का इतिहास करीब 170 साल पुराना है। 1848 में दादा भाई नौरोजी ने ‘द स्टूडेंट साइंटिफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी’ की स्थापना की। आजादी से पहले और फिर बाद में, समय के साथ छात्र राजनीति की भूमिका बदलती गई। आजादी के बाद हुए बड़े जनांदोलनों में भी छात्र राजनीति केंद्र में रही। आजादी से पहले की बात करें तो युवा शक्ति को पहचानते हुए लाला लाजपत राय, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरू ने भी छात्र राजनीति को काफी तवज्जो दी थी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1919 में सत्याग्रह, 1931 में सविनय अवज्ञा और 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो युवाओं और खासकर छात्रों को इससे जोड़ा। गुजरात विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, विश्वभारती, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वद्यिालय और जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे शिक्षा केंद्र विद्यार्थी आंदोलनों का गढ़ बन गए थे। महात्मा गांधी के अनुयायियों ने भी छात्रों पर भरोसा किया। जयप्रकाश नारायण का आंदोलन इसकी मिसाल है। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने व इसके खिलाफ वातावरण बनाने में भी छात्र आंदोलनों का हाथ था। लिहाजा, छात्र राजनीति को भविष्य की राजनीति की पौधशाला कहा गया है। छात्र राजनीति के क्षितिज से उभर कर देश के विस्तृत राजनीतिक फलक पर अपने आप को स्थापित करने वालों में आज देश के बड़े नेताओं के नाम शुमार हैं।
इतिहास गवाह है कि जब भी छात्र शक्तिने किसी बड़े आंदोलन को जन्म दिया या किसी घटना विशेष पर तीखा रुख इख्तियार किया तो देश और समाज में सकारात्मक परिवर्तन हुए। देश ही नहीं दुनिया में भी छात्र राजनीति का आयाम यही रहा। देश में आजादी से पहले गांधी, सुभाष चंद्र बोस और फिर बाद में जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर छात्र-शक्ति ने जो तेवर दिखाए, उसने देश की दशा-दिशा बदल दी। 1960 से 1980 के बीच देश में विभिन्न मुद्दों पर सत्ता को चुनौती देने वाले ज्यादातर युवा आंदोलनों की अगुआई छात्रसंघों ने ही की। सात के दशक में (1974) में जेपी आंदोलन और फिर असम छात्रों का आंदोलन इसके उदाहरण हैं, जिनके फलस्वरूप छात्र शक्ति सत्ता में भागीदार बनी।
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छात्र राजनीति से निकल कर राष्ट्रीय राजनीति मे महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नेताओं में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और चंद्रशेखर जैसे दिग्गजों के नाम भी हैं। वहीं, हेमवती नंदन बहुगुणा, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, प्रफुल्ल कुमार महंत सहित शरद यादव, सुशील मोदी, अमित शाह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, डी. राजा, सतपाल मलिक, सीपी जोशी, मनोज सिन्हा, विजय गोयल, विजेंद्र गुप्ता, अनुराग ठाकुर, देवेंद्र फडनवीस, सर्वानंद सोनोवाल जैसे नाम हैं।
विश्वविद्यालय राजनीति का केंद्र रहे इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, बनारस, अलीगढ़, दिल्ली, पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघों ने कई राजनेता देश को दिए। राजनीतिक चिंतकों का यह मानना रहा है कि लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षा एक अनिवार्य शर्त है। ऐसे में यदि उच्च शिक्षण संस्थानों में भी लोकतंत्र सफल नहीं हो पाएगा तो भारत में लोकतंत्र कहां सफल होगा? यदि उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी यह तय नहीं कर सकता कि उसका सही प्रतिनिधि कौन होगा, तो उससे यह उम्मीद कैसे की जाए कि वह एक अच्छा नागरिक बन पाएगा और समाज में न्याय, समता और आधुनिक मूल्यों के पक्ष में खड़ा हो पाएगा। बहरहाल, भारत के अनेक विश्वविद्यालय आज भी राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने में बड़ी भूमिका निभाते देखे जा सकते हैं।
सुषमा स्वराज
सुषमा ने सातवें दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ हरियाणा में राजनीतिक करियर की शुरुआत की। पेशे से वकील सुषमा तब 25 वर्ष की उम्र में हरियाणा में मंत्री बनीं। 1990 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बनीं। 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोक सभा सीट जीती। उसके बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री, केंद्र में सूचना-प्रसारण मंत्री, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं और अब मौजूदा सरकार में विदेश मंत्री हैं।
लालू प्रसाद यादव
पटना यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई करते हुए पटना यूनिवर्सिटी स्टुडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बने। 1973 में फिर छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए पटना लॉ कॉलेज में दाखिला लिया और जीते। जेपी आंदोलन से जुड़े और छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष बनाए गए। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते। 29 साल के लालू यादव सबसे युवा सांसदों में से एक थे। 1990-97 के बीच लालू बिहार के मुख्यमंत्री रहे। यूपीए-1 सरकार में रेल मंत्री भी रहे। फिलहाल राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष हैं।
ममता बनर्जी
1970 में कोलकाता में कांग्रेस के छात्र संगठन, ‘छात्र परिषद’ के साथ जुड़ीं और तेज-तर्रार महिला नेता के तौर पर उभरीं। 1984 में जादवपुर लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ीं और दिग्गज वाम नेता सोमनाथ चटर्जी को हराया। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में ‘पश्चिम बंगाल यूथ कांग्रेस’ की अध्यक्ष और फिर नरसिंह राव की सरकार में मानव-संसाधन मंत्री बनीं। 1997 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी ‘ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस’ बनाई और 14 साल बाद, 2011 में पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनीं।
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प्रफुल्ल कुमार महंत
असम के गुवाहाटी में वकालत की पढ़ाई करते हुए प्रभावशाली छात्र संगठन ‘अखिल असम छात्र संघ’ से जुड़े और 1979 में उसके अध्यक्ष बनाए गए। गैर असमिया लोगों के विरुद्ध आंदोलन में प्रभावी नेता के तौर पर उभरे और 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ ऐतिहासिक असम समझौते पर हस्ताक्षर किए। 1985 में ही असम गण परिषद पार्टी बनी और उस साल पार्टी के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद महंत को मुख्यमंत्री बनाया गया। तब वह देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। 2014 के आम चुनाव में एक भी सीट न जीत पाने के बाद महंत ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। वर्तमान में वह असम विधानसभा में विधायक हैं।
नीतीश कुमार
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए छात्र नेता के तौर पर उभरे नीतीश कुमार बिहार अभियंत्रण महाविद्यालय स्टुडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रहे। जेपी आंदोलन से जुड़े और युवाओं की ‘छात्र संघर्ष समिति’ में बड़ी भूमिका निभाई। 1975-77 के बीच आपातकाल के चलते जेल भी गए। 1985 में लोक दल से विधायक चुने गए। 1989 के बाद छह बार लोकसभा सीट जीती। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्रालय संभाला। 2005 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में भी बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष हैं।
सीपी जोशी
1973 में राजस्थान के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष बने। इसके बाद विधायक का चुनाव जीता। चार बार विधायक बने और राज्य सरकार में कई मंत्रालय संभाले। 2008 के चुनाव में नाथद्वारा से एक वोट से हारे। 2009 में भीलवाड़ा लोकसभा सीट से जीतकर पहली बार सांसद बने। तत्कालीन संप्रग सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री बने।
विजय गोयल
केंद्रीय मंत्री विजय गोयल भी छात्र राजनीति के निकले हैं। गोयल एबीवीपी के टिकट पर 1977-78 का डूसू अध्यक्ष का चुनाव जीत चुके हैं।
सुशील मोदी
बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी भी छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय रहे हैं। पटना विश्वविद्यालय के छात्र नेता रहे सुशील मोदी ने 1973 में छात्र संघ चुनाव चुनाव में महासचिव पद का चुनाव जीता था। उस समय लालू प्रसाद यादव पटना विवि छात्रसंघ के अध्यक्ष थे।
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मनीष तिवारी
पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी भी छात्र राजनीति में सक्रिय रहे हैं। वह 1986-93 तक कांग्रेस की छात्र ईकाई एनएसयूआइ के अध्यक्ष रहे हैं। वह संप्रग सरकार में केंद्रीय सूचना प्रसारण (स्वतंत्र प्रभार) रहे हैं।
प्रकाश करात
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माक्र्सवादी) के पूर्व महासचिव प्रकाश करात। वह 2005 से 2015 तक सीपीआइएम के महासचिव रहे। करात जेएनयू छात्रसंघ के तीसरे अध्यक्ष (1973) थे। वह पार्टी के छात्र संगठन एसएफआइ से चुने गए थे। वह 1974 से 1979 तक स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे।
अरुण जेटली
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी छात्र राजनीति में खासे सक्रिय रहे हैं। उन्होंने 1974- 75 में एबीवीपी के टिकट पर छात्रसंघ चुनाव लड़ा और अध्यक्ष चुने गए। उस समय तक एनएसयूआइ का किला कोई भेद नहीं पाया था। श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स से पढ़ाई करने वाले जेटली ने उस समय एनएसयूआइ के प्रत्याशी को हराया था।
सीताराम येचुरी
सीपीआइएम के वर्तमान महासचिव सीताराम येचुरी 1976 से 1978 तक दो बार जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष थे। आपातकाल के दौरान येचुरी के नेतृत्व में जेएनयू ने जबरदस्त प्रतिरोध किया था। येचुरी ने इंदिरा गांधी के सामने ही इंदिरा गांधी का इस्तीफा पत्र कैसा होना चाहिए, इसे सबके सामने पढ़कर सुनाया था।
वीपी सिंह
विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के आठवें प्रधानमंत्री बने। वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। उनका शासन एक साल से कम चला, दो दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक।
जाकिर हुसैन
एएमयू में पढे़ जाकिर हुसैन देश के तीसरे राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल 13 मई 1967 से तीन मई 1969 तक रहा। वह जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के स्थापना दल के सदस्य भी थे।
आरिफ मोहम्मद खान
आरिफ मोहम्मद खान ने राजनीति में लंबी छलांग लगाई। सबसे पहले वह 1977 में जनता पार्टी से विधायक बने। 1980 में कांग्रेस के सांसद चुने गए और मंत्री बने। वह केंद्रीय मंत्री भी रहे।
चंद्रशेखर
1962 से 1977 तक वह राज्यसभा के सदस्य थे। 1977 में बलिया जिले से पहली बार लोकसभा के सदस्य बने। उन्होंने 1990 से 1991 तक नौवें प्रधानमंत्री के रूप में काम किया।
आजम खान
सपा के कद्दावर नेता व उप्र के पूर्व मंत्री आजम खान भी एएमयू छात्र संघ के सचिव रहे हैं। 1974 में इमरजेंसी के दौरान उनकी छात्र राजनीति कैंपस में चमकी थी।
डी राजा
तमिलनाडु के भूमिहीन कृषि मजदूर परिवार में जन्मे डी राजा अपने गांव में ग्रेजुएशन की डिग्री लेने वाले पहले छात्र बने। मद्रास विवि में पढ़ाई करते हुए छात्र राजनीति में कदम रखा। 1994 से डी राजा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफइंडिया के राष्ट्रीय सचिव हैं। वर्तमान में वह तमिलनाडु से राज्यसभा सदस्य हैं।
सर्बानंद सोनोवाल
छात्र राजनीति से असम के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे। वह सबसे पहले असम गण परिषद से जुड़े। भाजपा से जुड़ने से पहले तक वह असम गण परिषद के साथ थे। 2001 में असम गण परिषद से ही सोनोवाल पहली बार विधायक चुने गए थे। 2004 में वह असम गण परिषद से ही सांसद चुने गए थे। सर्बानंद सोनोवाल असम में गृह मंत्री और उद्योग-वाणिच्य मंत्री रह चुके हैं।
अलका लांबा
1995 में एनएसयूआइ के टिकट पर चुनाव लड़ा था और बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। करीब 20 साल तक कांग्रेस में रहने के बाद उन्होंने 2013 में आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली।