तकनीक निभा रही कारगर भूमिका, कोरोना संक्रमण के प्रसार से बचाव में कारगर
पृथ्वी और उसके पर्यावरण की फिक्र करते हुए कई तरह के कामकाज दफ्तरों से हटाकर घरों तक सीमित कर दिए जाएं तो शायद अनगिनत समस्याओं का समाधान भी निकल आए।
अभिषेक कुमार सिंह। वैसे हर चीज के अच्छे और बुरे, दोनों पहलू हो सकते हैं, लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विज्ञान और तकनीक से मिले इंतजामों को सही रूप में परखने का एक मौका असल में लंबी अवधि वाले लॉकडाउन में ही मिला है। इंटरनेट के जरिये पढ़ाई हो सकती है, दफ्तरों के सहकíमयों और अधिकारियों के बीच नियमित रूप से बैठकें हो सकती हैं, चिकित्सा के कई प्रबंध जैसे जांच और निगरानी के उपाय आजमाए जा सकते हैं और विपदाओं के वक्त रोजमर्रा की जरूरी चीजों की घर बैठे ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये सप्लाई हो सकती है। इसे इसी दौरान सबसे सही ढंग से जांचा गया है।
ई-लर्निंग का खुला रास्ता : तकनीक कैसे मुश्किलों को चुटकियों में हल कर सकती है, इसका सबसे अच्छा उदाहरण शिक्षा क्षेत्र में दिखाई दिया। मार्च माह में जब देश में लॉकडाउन का एलान हुआ, कई विश्वविद्यालयों और शिक्षा बोर्ड की पढ़ाई अंतिम चरण में थी और कुछ जगहों पर परीक्षाओं का दौर शुरू हो चुका था। ऑनलाइन पढ़ाई और परीक्षाओं का आयोजन कैसे हो, इसे लेकर मानव संसाधन मंत्रलय, यूजीसी और शिक्षा बोर्डो में गंभीर मंथन चला। चूंकि ज्यादातर विश्वविद्यालय, स्कूल और कॉलेज परीक्षाओं के ऑनलाइन आयोजन को लेकर तकनीकी रूप से तैयार नहीं थे, इसलिए उसमें अवश्य एक बाधा आई। लेकिन पढ़ाई में ऑनलाइन शिक्षा एक बेहतर समाधान बनकर उभरी।
ज्यादातर विश्वविद्यालयों ने ऑनलाइन कक्षाओं का नियमित आयोजन किया। इस तरह की ऑनलाइन कक्षाओं के आयोजन की सफलता का ही असर है कि कोरोना का संकट थमने के बाद भी इसी माध्यम से कई पाठ्यक्रमों की पढ़ाई की सलाह दी जा रही है। मानव संसाधन मंत्रलय और यूजीसी तमाम अन्य संबंधित संगठनों का कहना है कि पढ़ाई के डिजिटल माध्यमों को अपनाने से शुरुआत में कुछ कठिनाई तो हो रही है, लेकिन इनसे शिक्षा के क्षेत्र में नवाचारों का रास्ता खुल रहा है। इससे यह भी पता चल रहा है कि किसी आपात स्थिति की प्रतीक्षा किए बगैर अगर छात्रों और शिक्षकों को अध्ययन-अध्यापन और परीक्षा के ई-लìनग यानी ऑनलाइन तौर-तरीकों से जोड़ा जाए तो उनके जरिये होने वाली पढ़ाई भी वास्तविक कक्षाओं के समान ही सार्थक हो सकती है।
संक्रमण के प्रसार से बचाव में कारगर : तकनीकों के डिजिटलीकरण का एक बड़ा फायदा इन दिनों हमारे देश में चिकित्सा के क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। वैसे तो तकनीकें काफी पहले से ही बीमारियों की पहचान, दवाओं के निर्माण, मरीजों के इलाज और सर्जरी आदि में अपनी महती भूमिका निभा रही थीं, लेकिन एक स्मार्टफोन के जरिये कैसे कोरोना के मरीजों की पहचान हो सकती है और कैसे लोगों को कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आने से बचाया जा सकता है, यह सब आरोग्य सेतु एप के जरिये संभव होते हुए दिखाई दिया है। आजकल इस आरोग्य सेतु एप को विमान यात्रओं में अनिवार्य किया गया है और रेल यात्रओं व दफ्तरों में काम करने वालों के लिए भी इसे जरूरी किया गया है।
दावा है कि देश में ही इसे अपने स्मार्टफोन पर डाउनलोड करने वालों का आंकड़ा 10 करोड़ की संख्या को पार कर चुका है। नीति आयोग के दावे के मुताबिक अगर आरोग्य सेतु एप नहीं होता तो कोरोना वायरस के प्रसार का आकलन करने में भारी चूक हो सकती थी। दावा है कि इस एप की सहायता से सरकारी मशीनरी को 650 हॉटस्पॉट के बारे में सही जानकारी समय पर मिली। नीति आयोग का कहना है कि यह एप कोरोना हॉटस्पॉट की सटीक भविष्यवाणी करता है और यह नए हॉटस्पॉट बनने से भी रोकता है। यह कोरोना वायरस के फैलाव के स्थान, दिशा और घनत्व को लेकर प्रभावशाली और सूक्ष्म जानकारी देता है।
संवरी दिनचर्या : लॉकडाउन के दौरान एक संकट यह भी पैदा हुआ कि कैसे लोग अपने मित्रों, परिचितों, रिश्तेदारों से मिलें और यदि शादी समारोह का मौका हो तो उसमें कैसे शामिल हों। मित्रों-रिश्तेदारों से मेलमिलाप के बारे में तो यह कहा जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने जिस मात्र में अपनों की खैर-खबर सोशल मीडिया और जूम, गूगल, मीट आदि एप्स के जरिये ली है, वैसा तो कभी हुआ ही नहीं था। इस दौरान वीडियो कॉलिंग के माध्यम से ऑनलाइन शादियों के आयोजन भी हुए, जिसमें सोशल मीडिया के मंचों के जरिये रिश्तेदार भी दूर बैठे शामिल हुए। शहरों ही नहीं, गांव-कस्बों के लाखों लोगों के लिए सोशल मीडिया जीने का एक माध्यम जैसा बना है। सोशल मीडिया के जरिये लोगों ने अपनों से दुख-दर्द साझा किया।
सोशल मीडिया पर कविताओं के रूप में लोगों की रचनात्मकता बाहर आई है। यूट्यूब पर पकवान बनाने की जितनी रेसपियों को इस दौरान साझा किया गया, इससे पहले शायद ही कभी ऐसा किया गया होगा। हालांकि लॉकडाइन के लंबा खिंचने का एक बड़ा असर टीवी और सिनेमा उद्योग पर भी पड़ा, लेकिन इस इंडस्ट्री ने भी साबित किया कि हालात कैसे भी हों, पर्दा कभी गिरना नहीं चाहिए। इसलिए एक ओर कुछ फिल्मों को डिजिटली लांच किया गया। ध्यान रहे कि नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम जैसे इस किस्म के प्लेटफॉर्म पहले ही वजूद में आ चुके हैं और उनके दर्शकों को ध्यान में रखकर अलग से फिल्में बन रही हैं, लेकिन लॉकडाउन की अवधि में वे फिल्में भी इस प्लेटफॉर्म पर लांच की गईं जो असल में बड़े पर्दे के लिए बनी थीं।
इससे सिनेमाहॉल से दूर रहने के बावजूद लोगों को अपने स्मार्टफोन के जरिये मनचाहा मनोरंजन मिला। इस दौरान कुछ अभिनेताओं और टीवी-सिनेमा निर्माताओं ने घर बैठकर ऐसी कहानियां रचीं जिन्हें कलाकारों ने अपने-अपने घर पर स्मार्टफोन से शूट किया। इससे साबित हुआ कि दुनिया में चाहे जैसा संकट आ जाए, अगर हम चाहें तो दुनिया चलाने की कोई न कोई राह निकाल ही लेते हैं।
वर्तमान महामारी के दौर में बहुत कुछ पूरी तरह से ठप हो गया तो बहुतों की रफ्तार बहुत कम हो गई, लेकिन इंटरनेट के नजरिये से देखें तो लॉकडाउन के दौरान घरों में बंद होने के बावजूद दुनिया की चाल में खास फर्क नहीं पड़ा है। बल्कि यह अहसास हुआ है कि तकनीक इस मोड़ पर पहुंच गई है, जहां अगर पृथ्वी और उसके पर्यावरण की फिक्र करते हुए कई तरह के कामकाज दफ्तरों से हटाकर घरों तक सीमित कर दिए जाएं तो शायद अनगिनत समस्याओं का समाधान भी निकल आए।
[एफएसआइ ग्लोबल से संबद्ध]










-1763744077313.webp)
-1763747336793.webp)


कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।