सुनीता मिश्र। Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill, 2020 देश की महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने एक अहम फैसला लिया है। राज्यसभा में गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने संबंधी विधेयक पारित हो चुका है। ‘द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक 2020’ के तहत गर्भपात कराने की अधिकतम सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई है। यह बिल महिलाओं की गरिमा और उनके अधिकारों की रक्षा करेगा। इसके साथ ही उन्हें सुरक्षित और कानूनी गर्भपात कराने के लिए चिकित्सीय सेवाएं भी मुहैया कराएगा।

वर्तमान कानून (द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971) के तहत कोई भी महिला सिर्फ 20 हफ्ते तक ही गर्भपात करवा सकती है। गर्भ अगर 20 हफ्ते से ऊपर हुआ तो फिर कोर्ट की इजाजत से ही गर्भपात कराया जा सकता है। यदि अदालत ने गर्भपात नहीं करवाने का आदेश दिया तो न चाहते हुए भी बच्चे को जन्म देना पड़ता है, जिसके चलते गंभीर बीमारी से पीड़ित महिलाओं और दुष्कर्म पीड़िता को काफी परेशानियों से गुजरना पड़ता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक स्विट्जरलैंड, फ्रांस, इंग्लैंड, नेपाल, ऑस्टिया, इथोपिया, इटली, स्पेन, आइसलैंड, नॉर्वे, फिनलैंड और स्वीडन समेत करीब 52 देशों में भ्रूण के 20 हफ्ते से ज्यादा होने पर भी गर्भपात की इजाजत है। जबकि डेनमार्क, घाना, कनाडा, जर्मनी, वियतनाम और जांबिया सहित 23 देशों में इमरजेंसी होने पर महिलाओं को किसी भी समय गर्भपात कराने की अनुमति है। वर्ष 2012 में आयरलैंड के डॉक्टरों ने एक कैथोलिक देश का हवाला देकर वहां भारतीय डॉक्टर सविता हलप्पनवार को गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दी थी, जिसके कारण अस्पताल में ही उनकी मौत हो गई थी। उस वक्त उनका गर्भ 17 हफ्ते का था। इसके बाद से ही आयरलैंड में गर्भपात पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग शुरू हो गई। वहां के लोगों ने इसके लिए जनमत संग्रह किया, जिसके पक्ष में 66.4 फीसद लोगों ने मतदान किया, जबकि 33 फीसद लोगों ने गर्भपात पर प्रतिबंध के पक्ष में मतदान किया। जनमत के नतीजे घोषित होने के बाद वहां गर्भपात पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया। अब आयरलैंड की महिलाएं अपने स्वास्थ्य के संबंध में उचित फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं।

भारत में इस विधेयक को लाने का उद्देश्य महिलाओं का सुरक्षित गर्भपात कराना, गर्भपात सेवाओं तक पहुंच में वृद्धि करना, महिलाओं को स्वस्थ और बेहतर जीवन प्रदान करना, असुरक्षित गर्भपात के कारण होने वाली मातृ मृत्यु दर को कम करना और गर्भपात की जटिलताओं में कमी लाना है। बिल में गर्भपात की सीमा बढ़ाए जाने का प्रविधान किसी विशेष वर्ग की महिलाओं के लिए नहीं है, बल्कि सभी महिलाओं को बड़ी राहत देने के लिए है।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘भारत में हर 155 मिनट में 16 वर्ष से कम आयु की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना होती है और हर 13 घंटे में 10 साल की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना होती है। वर्ष 2015 में 10 हजार से ज्यादा बच्चियों के साथ दुष्कर्म हुआ था। ऐसी घटनाओं के कारण हमारे देश में 10 साल की कई दुष्कर्म पीड़िता को न चाहते हुए भी गर्भपात कानून की वजह से मां बनना पड़ा है, क्योंकि भ्रूण के 20 हफ्ते होने के बाद गर्भपात का फैसला अदालतों पर जो टिका होता है। गर्भपात कानून के कारण अदालतें प्राय: सही निर्णय नहीं दे पाती हैं। जैसे-वर्ष 2017 में बिहार की एक एचआइवी पॉजिटिव दुष्कर्म पीड़िता का गर्भ 26 हफ्ते पार कर चुका था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दी थी। बहरहाल गर्भपात कानून में संशोधन महिलाओं के लिए किसी तोहफे से कम नहीं है। इस बिल के कानून बनते ही देश में सभी महिलाओं को 24 हफ्ते तक गर्भपात कराने का अधिकार होगा। इसमें गंभीर रूप से बीमार महिला, दुष्कर्म पीड़िता, नाबालिग महिला समेत सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार मिलेगा, जो पहले मात्र शादीशुदा महिलाओं को मिलता था।

[सामाजिक मामलों की जानकार]