डॉ. जयंतीलाल भंडारी। पिछले दिनों यूनाइटेड नेशंस माइग्रेशन एजेंसी द्वारा इंटरनेशनल आर्गनाइजेशन फार माइग्रेशन रिपोर्ट, 2024 जारी की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय प्रवासियों द्वारा वर्ष 2022 में भेजा गया रेमिटेंस यानी प्रवासियों द्वारा अपने घर भेजा गया धन दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है। यह राशि 111 अरब डालर की ऊंचाई पर पहुंच गई है।

देखा जाए तो यह उपलब्धि प्रवासी भारतीयों के परिश्रम, उनकी दक्षता और उनके मातृभूमि के प्रति स्नेह को भी रेखांकित करती है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि पिछले एक दशक में प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजे गए धन की मात्रा लगातार बढ़ी है। वर्ष 2010 में भारत में रेमिटेंस के तौर पर 53.48 अरब डालर आए थे।

यह राशि वर्ष 2015 में बढ़कर 68.19 अरब डालर और वर्ष 2020 में बढ़कर 83.15 अरब डालर हो गई। अब भारत विश्व का ऐसा पहला देश बन गया है, जहां प्रवासियों द्वारा एक साल में 100 अरब डालर से अधिक की रकम भेजी गई। खास बात यह है कि प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजा गया यह धन वित्त वर्ष 2021-22 में भारत आए कुल 83.57 अरब डालर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी ज्यादा है। भारत के बाद मेक्सिको, चीन, फिलीपींस और फ्रांस सबसे ज्यादा रेमिटेंस प्राप्त करने वाले देश हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा प्रवासी भारत के हैं, जिनकी संख्या करीब एक करोड़ 80 लाख है। यह आंकड़ा देश की कुल जनसंख्या का करीब 1.3 प्रतिशत है।

सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और सऊदी अरब में रहते हैं। पहले जहां भारत से अकुशल श्रमिक कम आय वाले खाड़ी देशों में जाते थे, वहीं अब विदेश जाने वाले भारतीयों में कुशल लोगों की संख्या ज्यादा है, जो अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे उच्च आय वाले देशों में जा रहे हैं। ऐसे में वे अधिक कमाई करके ज्यादा धन भारत भेज रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में कोविड-19 के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था ऋणात्मक विकास दर की स्थिति में पहुंच गई थी।

दुनिया के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं में धीमापन आने के कारण प्रवासी भारतीयों की आमदनी में भी बड़ी कमी आई थी। उन आर्थिक मुश्किलों के बीच भी प्रवासी भारतीय देश में रकम भेजते रहे। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा मिला, लेकिन अभी भी विदेश में प्रवासी भारतीयों को आर्थिक और सुरक्षा समेत कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विदेशी कार्यस्थलों पर दुर्व्यवहार और नौकरी के समय जिनोफोबिया यानी नापसंदगी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनोफोबिया एक नई समस्या है। इसके बावजूद प्रवासी भारतीय भारत का खजाना भर रहे हैं।

इजरायल और हमास के आतंकियों के बीच चल रहे संघर्ष के बीच वहां फंसे भारतीय नागरिकों और प्रवासी भारतीयों की सुरक्षित वतन वापसी के लिए भारत ने आपरेशन अजय चलाया। इसी तरह वर्ष 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन में जब भारतीय समुदाय सीधे खतरे में आ गया था, तब भी आपरेशन गंगा के तहत बड़ी संख्या में भारतीयों को सुरक्षित वापस लाया गया था। इसके बावजूद अभी भारत को अपने लोगों के दुख-दर्द को कम करने में और अधिक सहयोग करना होगा।

विदेश में ऐसे भारतीयों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो गलत लोगों या संस्थाओं के हाथ लगकर दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं। यद्यपि भारत सरकार ने विभिन्न शिकायतों पर संबंधित देशों की सरकारों से दखल देने को कहा है, लेकिन भारत सरकार की और अधिक सक्रियता जरूरी है। इस लोकसभा चुनाव के बाद एक स्थिर और मजबूत सरकार केवल इसलिए आवश्यक नहीं कि वह आर्थिक मामलों में बड़े और कड़े फैसले ले सके, बल्कि इसलिए भी आवश्यक है, ताकि भारत के विकास में सहयोगी प्रवासियों की चिंताओं को दूर कर उन्हें नई ऊर्जा दे सके।

दुनिया के कोने-कोने में बसे भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों की राजनीतिक, आर्थिक और कारोबारी क्षेत्रों में बढ़ती पकड़ भारत के तेज विकास के मद्देनजर महत्वपूर्ण हो गई है। प्रवासी भारतीयों का एक बड़ा वर्ग यह महसूस करता है कि पिछले एक दशक में दुनिया के आर्थिक और राजनीतिक मंचों पर भारत की सफलता का परचम फहराया है। इससे विश्व में इंडिया फिलांथ्रोपी अलायंस जैसे भारत हितैषी संगठन तेजी से आगे बढ़े हैं।

इंडियास्पोरा भारत के विकास में अहम योगदान देने के उद्देश्य से 2012 में अमेरिका में स्थापित एक ऐसी गैर-लाभकारी संस्था है, जो करीब 20 देशों में सक्रिय रूप से काम कर रही है। यह संगठन दुनियाभर के विभिन्न देशों के प्रवासी भारतीयों के लिए भी प्रेरणादायी बन गया है। इसके प्रयासों से भारतवंशियों तथा प्रवासियों का भारत के लिए सहयोग और स्नेह लगातार बढ़ा है। पिछले वर्ष भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी-20 सम्मेलन को अभूतपूर्व सफलता दिलाने में प्रवासी भारतीयों की भी अहम भूमिका रही।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज दुनिया के हर बड़े मंच पर भारत की आवाज सुनी जाती है। कहीं भी संकट आता है, तो सबसे पहले पहुंचने वाले देशों में भारत का भी नाम होता है। ऐसे में इस लोकसभा चुनाव के बाद देश में एक ऐसी प्रभावी सरकार का गठन होना जरूरी है, जो प्रवासियों के साथ स्नेह एवं सहभागिता जारी रखे। तभी प्रवासी भारतीय अपने ज्ञान एवं कौशल की शक्ति से भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने, 2027 तक भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने और 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे सकेंगे।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)