जागरण संपादकीय: सरकारी दफ्तरों में कामकाज का हिसाब, क्या है यह झमेला?
कई सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों के कामकाज का हिसाब-किताब रखने की कोई अवधारणा नहीं होती क्योंकि जो बीत गई सो बात गई। अहम बात यह है कि सरकारी दफ्तरों में कंप्यूटर सीखकर चलाना भी अपने आप में बड़ा काम है। ईमेल करना पड़ जाए तो विकट समस्या खड़ी हो जाती है। ऐसी ही परिस्थितियों पर व्यंग्य करता है यह आलेख।
अजय चंदेल। हर दिन की तरह कल भी आधा दफ्तर चाय की गुमटी पर था और आधा अपनी कुर्सियों पर बैठा पांच बजने की प्रतीक्षा में ऊंघ रहा था। तभी एक चपरासी आया और सूचना पटल पर एक कागज चिपकाने लगा। आठिया बाबू ने देख लिया। पूछने लगे, 'क्या चिपका रहे हो हरिराम?'
हरिराम ने कहा, "डीएम साहब ने दिया था। बोले, चिपका आओ, सो हमने चिपका दिया। जो है, सो आप पढ़ लें।" आठिया बाबू बोले, 'कितनी बार कहा, चिपकाने के पहले न सही बाद में पढ़ लिया करो। बताओ क्या लिखा है?" वह खीझते हुए बोला, "और भी काम हैं हमारे पास।"
आठिया बाबू को उठकर देखना ही पड़ा। आदेश था, 'हर सरकारी कर्मचारी को ईमेल करके सोमवार की दोपहर तक बताना है कि इस सप्ताह उन्होंने क्या किया। जो नहीं बताएगा उसके ऊपर कार्रवाई की जाएगी।'
कुछ ही मिनटों में बात आग की तरह फैल गई। आदेश की कापी हर मोबाइल में पहुंच गई। बाबू रामलाल अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे। मिश्रा जी उन्हें ताना मारते हुए बोले, "रामलाल जी, लगता है कि अमेरिका की तरह ट्रंप का फऱमान यहां भी लागू हो रहा है।
बताओ क्या लिखेंगे ईमेल में इस हफ्ते आपने क्या किया,?" रामलाल बोले, "पहले तो हमको यह बताओ ईमेल में लिखते कैसे हैं?" इस पर आठिया जी हरिराम से बोले कि तुम दौड़कर जाओ और कंप्यूटर रूम से मौर्या को बुला लाओ। हरिराम थोड़ी देर में हांफते हुए आया और बोला, 'मौर्या तो नहीं मिले।"
रामलाल गुस्सा होकर बोले, "किसी को काम करने की पड़ी ही नहीं है। बताओ, चार बजे निकल गए।" आठिया जी बोले, "अरे आसपास गया होगा थोड़ी देर में देखते हैं।" वर्मा जी ने अपने चश्मे को ऊपर खिसकाया और धीमे स्वर में बोले, "रामलाल जी, किसी से लिखवा लीजिए ईमेल, कोई कठिन काम थोड़ी है और भेज दीजिए कि इस सप्ताह क्या किया?"
आठिया बोले, "तो आप हमें भी सिखाइए।" "वह हम नहीं सिखा सकते। हमें भी अच्छे से नहीं आता। किसी और से मदद लो। रामलाल जी गहरी आवाज में बोले, "देखिए, ईमेल करना तो चलो कैसे न कैसे जुगाड़ लेंगे, लेकिन हमारा प्रश्न यह है कि सरकारी दफ्तरों में यह पूछना उचित है क्या?
यह भी कोई प्रश्न है, 'पिछले हफ्ते क्या किया?' इस पर आठिया जी ने कहा, "देखिए जी, सरकारी काम धीरे-धीरे और आराम से होता है। इसे मछली पकड़ने की तरह समझिए, जाल डाल दिया जाता है, फिर इंतजार होता है।" रामलाल जी गंभीर स्वर में बोले, "सरकारी दफ्तर में पिछले हफ्ते के कामकाज का हिसाब-किताब रखने की कोई अवधारणा नहीं होती, क्योंकि जो बीत गई सो बात गई।"
शाम होते-होते सभी दफ्तरों में इस आदेश को लेकर हड़कंप मच गया था। इसे देखते हुए सरकारी कर्मचारी महासंघ ने इमरजेंसी बैठक बुलाई और घोषणा की, "तानाशाही नहीं चलेगी। हफ्ते के काम का आदेश वापस नहीं लेने तक हड़ताल की जाएगी। भारत बंद किया जाएगा। चक्का जाम किया जाएगा।"
विपक्ष को जैसे ही खबर मिली, उसके बयान आने शुरू हो गए, "यह सरकारी कर्मचारियों का उत्पीड़न है!" "यह आदेश संविधान विरोधी है!" "यह जातिवाद है! यह आदेश अमुक जाति के कर्मचारियों को टारगेट करने के लिए लाया गया है!" "यह महिला विरोधी और जन विरोधी आदेश है। जनता इसका जवाब देगी।"
इसमें सबसे बढ़िया बयान एक बड़े नेता का आया, "जाति जनगणना कराओ! वही सब समस्याओं का समाधान है।" मीडिया के कुछ लोगों ने इसे "नौकरी का एनआरसी" करार दिया, "जिसके पास काम का सुबूत नहीं, उसकी नौकरी खतरे में!" सरकारी दफ्तरों में बैनर लग गए, "कर्मचारी जगाओ, ईमेल भगाओ!", "कुर्सी हमारी, नियम तुम्हारे नहीं चलेंगे!"
शासन के उच्चाधिकारियों ने स्थिति को संभालने के लिए सफाई दी, "हमने यह आदेश सुधार के लिए दिया था, लेकिन लगता है हम अपनी बात कर्मचारियों को समझा नहीं पाए। अगर इससे असंतोष है, तो इस आदेश को वापस लिया जाएगा!" यह बयान देखकर आठिया बाबू ने ठहाका लगाते हुए कहा, "अब कोई फिर से पूछे कि पिछले हफ्ते क्या किया? तो जवाब होगा, भारत बंद करवाया।"
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