जागरण संपादकीय: न्याय और न्यायाधिकरण, एआई से कामकाज पारदर्शी, तेज और प्रभावी बनेगा
न्यायाधिकरण अपना काम समय पर सही तरह इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उनमें स्टाफ का अभाव है और जो है भी, वह उस विशेषज्ञता से लैस नहीं, जो आवश्यक है। न्यायाधिकरणों के फैसलों की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते रहते हैं। एक समस्या यह भी है कि न्यायाधिकरण के जज और वकील अपना काम तत्परता से नहीं करते।
HighLights
- <p>3.56 लाख मामले न्यायाधिकरणों में लंबित</p>
- <p>24.72 लाख करोड़ रुपये फंसे</p>
- <p>एआई से कामकाज होगा पारदर्शी</p>
विभिन्न न्यायाधिकरणों में अटके मामलों और उनसे हो रहे आर्थिक नुकसान के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। इन आंकड़ों के अनुसार न्यायाधिकरणों में 3.56 लाख मामले अटके हैं। इसके चलते 24.72 लाख करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। यह राशि जीडीपी का 7.48 प्रतिशत है। न्यायाधिकरणों की न्याय प्रणाली निराश करने वाली ही नहीं, देश के आर्थिक विकास की राह रोकने वाली भी है।
यह एक विडंबना ही है कि न तो न्यायालयों में अटके पड़े करोड़ों लंबित मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए कुछ ठोस किया जा रहा है और न ही न्यायाधिकरणों में लंबित मामलों को निपटाने के लिए। न्यायिक क्षेत्र में सुधारों की आवश्यकता पर बल तो सभी देते हैं, लेकिन उसकी पूर्ति के लिए कोई आगे नहीं दिखता। यह स्थिति न्यायिक तंत्र के प्रति आस्था को डिगाने वाली है।
न्यायाधिकरणों में लंबित मामलों का विवरण देने वाले थिंक टैंक दक्ष की रपट एक तरह से यही कहती है कि जिन उद्देश्यों के लिए इनका गठन किया गया, वे उसी काम को नहीं कर पा रहे हैं। वे न तो अदालतों का बोझ कम कर पा रहे हैं और न ही आर्थिक प्रशासन में निवेशकों का भरोसा बढ़ा पा रहे हैं। कोई भी समझ सकता है कि इससे विदेशी निवेश पर भी असर पड़ रहा होगा।
न्यायाधिकरण अपना काम समय पर सही तरह इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उनमें स्टाफ का अभाव है और जो है भी, वह उस विशेषज्ञता से लैस नहीं, जो आवश्यक है। न्यायाधिकरणों के फैसलों की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते रहते हैं। एक समस्या यह भी है कि न्यायाधिकरण के जज और वकील अपना काम तत्परता से नहीं करते।
न्यायाधिकरणों को समय पर फैसला देने के लिए जवाबदेह बनाने की कोई ठोस व्यवस्था बनाना समय की मांग है। कहने को तो नेशनल कंपनी ला न्यायाधिकरण में किसी विवाद को निपटाने की समय सीमा 330 दिन है, पर वहां एक मामला निपटने में औसतन 752 दिन लगते हैं। यही स्थिति अन्य न्यायाधिकरणों की है।
यदि आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ा रहे नीति-नियंता न्यायाधिकरणों के ढीले और समय खपाऊ कामकाज को लेकर चिंतित नहीं तो वे देश का अहित ही कर रहे हैं। दक्ष ने न्यायाधिकरणों को प्रभावी बनाने के लिए संस्थागत सुधारों की जो जरूरत जताई, वह पहले भी जताई जा चुकी है, पर नतीजा ढाक के तीन पात वाला है।
समय आ गया है कि विधि मंत्रालय और न्यायिक तंत्र इस जरूरत को पूरा करने के लिए ईमानदारी से आगे आएं। आवश्यकता हो तो नियम-कानून बदले जाएं। इसी के साथ तकनीक और विशेष रूप से एआइ का उपयोग किया जाए। आखिर जब एआइ कई समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है तो उसका उपयोग करने में देरी क्यों? एआइ न्यायाधिकरणों के कामकाज को पारदर्शी, तेज और प्रभावी बना सकती है।
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