श्रीराम चौलिया। कार्ल मार्क्स ने कहा था, ‘इतिहास खुद को दोहराता है-पहले त्रासदी के रूप में और फिर मजाक के रूप में।’ कट्टर जिहादी सोच वाले पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष और फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में भोज के लिए बुलाकर और पाकिस्तान से गहरे सामरिक तालमेल की पेशकश करके मार्क्स के कथन को प्रासंगिक कर दिया।

1980-88 में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने तत्कालीन पाकिस्तानी तानाशाह जनरल जियाउल हक को गले लगाया था। फिर राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने भी जनरल परवेज मुशर्रफ को। क्या करीब हर 20 वर्षों में खेले जा रहे इस खतरनाक खेल का तीसरा अध्याय अब आरंभ हुआ है? जनरल जिया और मुशर्रफ की तुलना में मुनीर पाकिस्तान के औपचारिक राष्ट्राध्यक्ष नहीं हैं, पर उन्हें उसी तरह का रुतबा हासिल है।

अमेरिका अतीत में भी पेश किए जा चुके भूराजनीतिक तर्कों के आधार पर ही नए सिरे से पाकिस्तान को अपने करीब लाने की कोशिश कर रहा है। रीगन को जिया की जरूरत इसलिए पड़ी थी, क्योंकि वे पाकिस्तान के पड़ोसी देश अफगानिस्तान से सोवियत संघ को वापस धकेलना चाहते थे। अमेरिका को अपने सहायक के रूप में लड़ने के लिए मुजाहिदीन चाहिए थे।

वे पाकिस्तान ने उपलब्ध कराए। जिया खुद जिहादी प्रवृत्ति के थे। एक समय उन्होंने कश्मीर हड़पने के इरादे से भारत के खिलाफ जिहाद का आह्वान किया था। तब अमेरिका ने इसकी अनदेखी की थी, क्योंकि उसका मकसद साम्यवाद को टक्कर देना था। रीगन की भांति ही बुश ने भी मुशर्रफ को अरबों डालर की आर्थिक और सैन्य मदद देकर अफगानिस्तान में बदलाव के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल किया। तब अमेरिका को उस कट्टर जिहादी तालिबान की सरकार गिरानी थी, जिसने अमेरिका में 9/11 हमलों के जिम्मेदार ओसामा बिन लादेन को शरण दी थी।

अमेरिका के पैसे और हथियारों से लैस पाकिस्तान ने दोनों बार अपनी उपयोगिता सिद्ध की, पर दोहरा खेल भी खेला। उसने अमेरिका को कुछ हद तक खुश रखते हुए दक्षिण एशिया में जिहादी जहर घोला। उसके इसी पाखंड से ऊबकर ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को सैन्य सहायता पूर्णतः रोक दी थी। 2018 में पाकिस्तान को ‘झूठा और धोखेबाज’ कहने वाले ट्रंप आज उसकी प्रशंसा कर रहे हैं। दरअसल विश्व राजनीति में फिर ऐसा मोड़ आया है, जब अमेरिका को अपने भूराजनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए पाकिस्तान की जरूरत आन पड़ी है। इसीलिए वह उसे रिझा रहा है।

पाकिस्तान के पड़ोसी ईरान पर अमेरिका के निकटतम साथी इजरायल ने हमला बोल दिया है। इस हमले का अंतिम उद्देश्य तेहरान में तख्तापलट है। ट्रंप ने मुनीर के साथ बैठक में ईरान पर चर्चा की और यह भी कहा कि इस मामले पर पाकिस्तान ‘मुझसे सहमत है।’ अमेरिका को लगता है कि शिया ईरान में अयातुल्ला अली खामेनेई जैसे सर्वोच्च नेता की तानाशाही के खात्मे के लिए सुन्नी पाकिस्तान को अग्रिम मोर्चे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। अमेरिका ने पाकिस्तान को इसके लिए भी शाबाशी दी कि वह अफगान-पाकिस्तान सीमा पर इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को पकड़ने और उन्हें मार गिराने में वाशिंगटन का ‘अभूतपूर्व साझेदार’ बन गया है।

भारत को अंदेशा है कि इस सबके चलते अमेरिका पहलगाम जैसे पाकिस्तानी बर्बर आतंकी कृत्यों की अनदेखी कर सकता है। वैसे तो ट्रंप भारत के आतंक विरोधी अभियान को समर्थन का वादा करते हैं और चीन की चुनौती का सामना करने के लिए भारत को करीब लाना चाहते हैं, पर यह स्पष्ट ही है कि महाशक्तियों की रणनीति एक देश के हितों तक सीमित नहीं रहती।

फिलहाल वाशिंगटन का प्रमुख लक्ष्य ईरान में बदलाव और अमेरिका पर हमला करने की ताक में रहने वाले इस्लामिक स्टेट से निपटना है। अगर मुनीर ट्रंप के साथ सौदा करते हैं और पाकिस्तान अमेरिका से पुनः सैन्य सामग्री और आर्थिक लाभ लेने लगता है तो इससे अमेरिका पाकिस्तान को चीन के साये से भी बाहर निकाल सकता है। अमेरिका का रणनीतिक लक्ष्य व्यापक और बहुआयामी है, जो भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से मेल खाता नहीं दिख रहा है। यदि अमेरिका पाकिस्तान को चीन के चंगुल से निकालने में सफल हो जाता है तो इससे भारत का भला होगा, पर यदि पाकिस्तान अमेरिका की शरण में जाकर भारत में पहलगाम जैसे जघन्य जिहादी हमले कराने का दुस्साहस करेगा तो इससे भारत को खतरा बढ़ जाएगा।

ट्रंप की मानें तो उन्होंने मुनीर को इस कारण धन्यवाद जताने के लिए अमेरिका आमंत्रित किया, क्योंकि पाकिस्तान ने भारत से युद्ध करने से परहेज किया। ट्रंप ने मुनीर की कथित सूझबूझ को सराहा और उनकी बराबरी भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से करते हुए कहा कि दोनों की परिपक्वता के चलते अमेरिका ने दक्षिण एशिया में परमाणु युद्ध रोक दिया। ऐसे बेबुनियाद दावे खारिज करने के ही लिए ट्रंप से फोन पर वार्ता में मोदी ने दो टूक कहा कि कश्मीर पर किसी भी देश की मध्यस्थता भारत को कतई मंजूर नहीं है। कनाडा में जी-7 शिखर सम्मेलन में भी मोदी ने आतंक की जड़ पर सबका ध्यान केंद्रित करते हुए आतंकवाद पर विकसित देशों के दोहरे मापदंड की आलोचना की। उन्होंने यह भी कहा कि विकसित देश ‘किसी भी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देते हैं, पर आतंकवाद का खुलेआम समर्थन करने वाले देशों को पुरस्कृत करते हैं।’

आतंक-आतंक में अंतर स्वार्थी सोच है। इसके कारण ही विश्व समुदाय आतंक की समस्या पर काबू नहीं कर पाया है। भारत को पाकिस्तान का आतंकी चेहरा सामने लाने और उसे काबू में रखने का प्रयास करते रहना होगा। भारत को लंबे कूटनीतिक-सैन्य संग्राम के लिए कमर कसनी होगी, क्योंकि महाशक्तियों की चिरपरिचित दोहरी मानसिकता और पाकिस्तान के बिकाऊ रवैये से साफ होता है कि आतंकवाद पर अंकुश लगाने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की सीमाएं हैं।

(लेखक जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और डीन हैं)