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Delhi Yamuna Pollution: मुश्किल नहीं, आसान है यमुना का प्रदूषण खत्म करने की राह; प्वाइंट्स में जानें कैसे?

Yamuna Pollution यमुना नदी की सफाई एक ऐसा बीड़ा है जिसे जो भी सत्ता में आया उसने पूरी शिद्द से उठाया। राजनिवास की प्राथमिकता भी यमुना में प्रदूषण को खत्म करना है। विपक्ष इसे मुद्दा बनाता ही रहता है लेकिन इन सभी प्रयास और दावे की हकीकत यह है कि यमुना में हर साल सफेद रसायन के रूप में झाग सामने आती है।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariPublished: Wed, 22 Nov 2023 01:40 PM (IST)Updated: Thu, 23 Nov 2023 01:19 PM (IST)
Delhi Yamuna Pollution: दिल्ली की यमुना फिर क्यों हुई झाग-झाग?

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में यमुना के प्रदूषण के लिए बढ़ते आबादी के बोझ और सीवेज को जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेकिन, इसमें अधिक सच्चाई नहीं है। यमुना को प्रदूषित करने में उद्योगों का बड़ा हाथ है। इनकी सही तरह से निगरानी नहीं की जा रही है।

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दिल्ली में जितने भी उद्योग हैं, उनके यहां सेंट्रल इंफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) ठीक से संचालित नहीं हो रहे हैं। जितनी मात्रा में वे गंदगी उत्सर्जित कर रहे हैं, उतनी मात्रा में उसका ट्रीटमेंट नहीं हो रहा है। यही वजह है कि केमिकल की मात्रा का पता नहीं चल पा रहा है और यमुना में झाग ही झाग दिखाई देता है।

22 KM के क्षेत्र में क्यों साफ नहीं हो रही यमुना?

हर साल वायु प्रदूषण की तरह यमुना के प्रदूषण की बात होती है, लेकिन कोई ठोस कदम अभी तक नहीं उठाया जा सकता है। 22 किलोमीटर के क्षेत्र में अगर राजधानी में यमुना को साफ नहीं कर पा रहे हैं, तो यह शर्मनाक है।

यमुना एक्शन प्लान बनाने के बाद बढ़ी हुई आबादी का तर्क दिया जाता है। इसके लिए सीवेज व्यवस्था को बढ़ाया गया है। लेकिन, उस मात्रा में ट्रीटमेंट की व्यवस्था नहीं की गई है।

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फरीदाबाद में भी यही स्थिति

दिल्ली का मास्टर प्लान तैयार होने के वक्त ही यह आकलन होना चाहिए। दिल्ली में अवैध कॉलोनियों की बसाहट की बात की जाती है, लेकिन यह उतना नहीं है। जितना बताया जा रहा है। 

असल परेशानी उद्योगों से निकलने वाला कचरा है। फरीदाबाद जाते हैं तो वहां बह रही यमुना के पास खड़ा होना मुश्किल होता है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को समय-समय पर निगरानी करनी चाहिए। जहां क्षमता से अधिक कचरा निकल रहा है, वहां कार्रवाई की जानी चाहिए।

जो भी उद्योग सभी नियमों का पालन कर रहे हैं, उन्हें टैक्स या बिजली में रियायत देनी चाहिए। इससे दूसरों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। ट्रीटमेंट प्लांट का खर्च अधिक होता है, इसलिए कई बार उद्योग इन पर ध्यान नहीं देते।

सरकार के पास है 650 एमजीडी तक ही ट्रीटमेंट की व्यवस्था

अगर इन्हें सहूलियत नहीं देंगे तो वर्षा जल संचयन प्लांट की तरह सीईटीपी भी कागजों तक सिमट कर रह जाएंगे। आम लोगों के स्तर पर, संस्थानों के स्तर पर और सरकार के स्तर पर जहां भी चूक हो रही है। उसको खोजना चाहिए, क्योंकि काफी सालों से इसके प्रयास हो रहे हैं, हकीकत सबके सामने हैं।

घरों से एक हजार एमजीडी के आसपास सीवेज निकलता है। जबकि सरकार के पास 650 एमजीडी तक ही ट्रीटमेंट की व्यवस्था है। यानी बचा हुआ सीवेज कहां जा रहा है, नालों के जरिये वह यमुना में ही मिल रहा है।

ठोस नतीजा चाहिए तो मिशन मोड पर करना होगा काम

कमोबेश यही हाल उद्योगों का भी है। अगर ठोस नतीजा चाहिए तो सरकार को मिशन मोड पर काम करना होगा। लोगों को पर्यावरण के बारे में जागरूक करना होगा। लोगों में प्रदूषण को लेकर गंभीरता अभी नहीं आई है। उन्हें बताना होगा कि प्रदूषित जल उनकी जिंदगी पर किस तरह प्रभाव डालेगा।

यमुना को निर्मल बनाना सभी की जिम्मेदारी है। सरकार को सबसे जरूरी काम यह करना चाहिए कि वर्षभर यमुना में पानी रहे। हथिनी कुंड पर पानी को रोक लिया जाता है। दरअसल नदी में खुद को शुद्ध करने की प्राकृतिक क्षमता होती है। लेकिन, उसके लिए हर वक्त उसका अविरल बहते रहना जरूरी है।

हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को आना चाहिए आगे

बीच में पानी नहीं मिलेगा तो सूखे हुए क्षेत्रों में गंदगी जमा हो जाएगी। जिसे नदी प्राकृतिक तौर पर साफ नहीं कर सकती है। इसके लिए दिल्ली सरकार के अकेले के प्रयास काफी नहीं है।

हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को भी आगे आना चाहिए। तीनों सरकारों को मिलकर योजना बनानी चाहिए। यह जानकारी दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगर्भ शास्त्र विभाग के प्रोफेसर शशांक शेखर से जागरण संवाददाता उदय जगताप की बातचीत पर आधारित है।

 अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • दिल्ली में यमुना का कुल बहाव क्षेत्र- 54 किलोमीटर
  • यमुना का सबसे प्रदूषित क्षेत्र- वजीराबाद से ओखला बैराज
  • दिल्ली में यमुना के सबसे प्रदूषित क्षेत्र की लंबाई- 22 किलोमीटर
  • यमुना के प्रदूषण में सीवरेज की हिस्सेदारी- 80 प्रतिशत
  • यमुना के प्रदूषण में औद्योगिक व ठोस कचरा- 20 प्रतिशत
  • दिल्ली में प्रतिदिन उत्पन्न सीवरेज- 792 एमजीडी (मिलियन गैलन डेली)
  • बगैर शोधन के यमुना में गिरने वाला सीवरेज- 232 एमजीडी
  • यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए अब तक की गई सरकारी पहल

दिल्ली में मौजूद एसटीपी की संख्या

  • 44 कार्यरत एसटीपी- 20 जगहों पर- 35
  • कुल शोधन क्षमता- 632 एमजीडी
  • प्रतिदिन सीवरेज शोधन- 560 एमजीडी
  • अनधिकृत कॉलोनियों की कुल संख्या- 1799
  • सीवर लाइन से जुड़ी अनधिकृत कॉलोनियां- 747
  • अनधिकृत कालाेनियों की संख्या जहां सीवर लाइन का चल रहा है काम- 573
  • यमुना सफाई के लिए कोरोनेशन पिलर में एसटीपी का निर्माण- क्षमता 70 एमजीडी
  • एसटीपी की नवीनीकरण व नए एसटीपी की योजनाएं और उसकी मौजूदा स्थिति
एसटीपी शोधन क्षमता में बढ़ोतरी
पूरा होने का समय
ओखला 30 एमजीडी दिसंबर 2024
रिठाला 40 एमजीडी दिसंबर 2023
कोंडली 20 एमजीडी दिसंबर 2023
सोनिया विहार 7 एमजीडी दिसंबर 2023
मार्च 2024

  सीवरेज प्रबंधन की अन्य योजनाएं

  • अनधिकृत कालोनियों व ग्रामीण क्षेत्रों के विकेंद्रीकृत एसटीपी के निर्माण की योजना- 26
  • इन विकेंद्रीकृत एसटीपी की प्रस्तावित शोधन क्षमता- 60 एमजीडी
  • नजफगढ़ नाले के जोन में विकेंद्रीकृत एसटीपी निर्माण की योजना- 14
  • इन विकेंद्रीकृत एसटीपी की प्रस्तावित क्षमता- 32 एमजीडी
  • नजफगढ़, शाहदरा व सप्लीमेंट्री ड्रेन में गिरने वाले सीवरेज के शोधन के लिए इंटरसेप्टर सीवर लाइन का निर्माण
  • इंटरसेप्टर सीवर लाइन के निर्माण पर खर्च- करीब 2 हजार करोड़ रुपये
  • इंटरसेप्टर सीवर लाइन से सीवरेज युक्त पानी को ट्रैप करने का लक्ष्य- 242 एमजीडी
  • इंटरसेप्टर सीवर लाइन से ट्रैप किया जा रहा नालों का पानी- 238 एमजीडी
  • यमुना एक्शन प्लान तीन तहत एसटीपी व सीवर लाइन से जुड़ी परियोजनाओं का खर्च- 2009 करोड़


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