Move to Jagran APP

जब महज एक वोट से गिर गई अटलजी की सरकार, कौन था वो एक सांसद, जिसे झेलनी पड़ी थी आलोचना, पढ़िए पूरी कहानी

Lok Sabha Election 2024 Special चुनावी मौसम के बीच आज हम आपको उस किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं जब महज 13 माह बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी। इसके लिए प्रमुख रूप से एक शख्स को जिम्मेदार माना जाता है। जानिए क्या है पूरा किस्सा और क्यों गिर गई थी अटल सरकार ।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Sat, 18 May 2024 03:54 PM (IST)
जब महज एक वोट से गिर गई अटलजी की सरकार, कौन था वो एक सांसद, जिसे झेलनी पड़ी थी आलोचना, पढ़िए पूरी कहानी
Lok Sabha Election: एआईडीएमके की ओर से समर्थन वापस लेने के कारण सरकार अल्पमत में आ गई थी।

चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। अटल बिहारी वाजपेयी भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक रहे हैं। वह तीन बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका पहला कार्यकाल महज 13 दिन और दूसरा कार्यकाल 13 महीनों का रहा। आज हम उनके दूसरे कार्यकाल से जुड़ा हुआ अहम किस्सा बताने जा रहे हैं कि आखिर 13 माह बाद उनकी सरकार क्यों और कैसे महज एक वोट से गिर गई?

कौन थे वो सांसद जिनके एक वोट से गिरी सरकार?

अटलजी की सरकार के गिरने के पीछे ​जिस सांसद को जिम्मेदार माना जाता है, वो थे ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरिधर गोमांग। इन्होंने अटलजी की सरकार के खिलाफ वोट किया था। लोकसभा में वोटिंग के दौरान पक्ष में 269 वोट डले थे। वहीं विपक्ष में गिरधर गोमांग के वोट डालते ही वोटों की संख्या 270 हो गई और महज एक वोट से अटलजी की सरकार गिर गई। दरअसल 1998 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन भाजपा 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।

वोट देकर आलोचनाओं से घिर गए थे गोमांग

गिरधर गोमांग को उस समय के लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने अपने विवेक के आधार पर वोट डालने की अनुमति प्र​दान की थी। उस साल फरवरी में गोमांग ओडिशा के सीएम बन गए थे, पर लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था और और वोटिंग के दिन वह सदन में मौजूद थे। उन्होंने सरकार के खिलाफ वोट किया और सरकार गिर गई। बतौर मुख्यमंत्री सांसद के रूप में वोट देने के लिए गोमांग की काफी आलोचना भी हुई थी।

जब राष्ट्रपति ने बहुमत साबित करने को कहा

1998 में भाजपा ने विभिन्न दलों के समर्थन से केंद्र में सरकार बनाई। जयललिता की एआईडीएमके भी उनमें से एक थी। हालांकि, राजनीतिक घटनाक्रम कुछ ऐसे बने कि 13 महीनों बाद एआईडीएमके ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद अटल सरकार अल्पमत में आ गई और राष्ट्रपति ने सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा।

सरकार को विश्वास मत हासिल करने का था भरोसा, लेकिन...

सरकार की ओर से विश्वासमत हासिल करने के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास शुरू किया गया। वाजपेयी सरकार को भरोसा था कि उसके पास पर्याप्त समर्थन है और वह विश्वासमत जीत लेगी, लेकिन जब लोकसभा में वोटिंग के बाद काउंटिंग के नतीजे आए तो हर कोई चौंक गया था, क्योंकि अटल सरकार मात्र एक वोट के अंतर से बहुमत नहीं जुटा पाई थी।

ये भी पढ़ें- लगातार टूटती गई 139 साल पुरानी कांग्रेस, शरद पवार से ममता बनर्जी तक जानिए किन दिग्गजों ने तोड़ा नाता और बना ली अपनी पार्टी?

इसके अलावा उस वक्त फारूक अबदुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस भी केंद्र में वाजपेयी सरकार की सहयोगी थी और संसद में सरकार के पक्ष में वोटिंग की घोषणा कर चुकी थी, लेकिन, पार्टी के एक सांसद सैफुद्दीन सोज ने पार्टी के खिलाफ जाकर अटल सरकार के विरुद्ध वोट डाला था। इसे भी अटल सरकार के गिरने का बड़ा कारण माना गया। इधर, एक वोट से अटल सरकार गिराने वाले गिरिधर गोमांग 2015 में भाजपा में शामिल हो गए थे। फिर उन्होंने भाजपा छोड़ वापस कांग्रेस का दामन थाम लिया था।

ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: रॉबर्ट्सगंज...कैसे पड़ा यूपी की इस लोकसभा सीट का अंग्रेजी नाम? पढ़िए इसके पीछे की कहानी