मुस्लिम लड़के से हिंदू लड़की ने रचाई थी शादी, पुलिस ने दोनों को अलग कराया तो कोर्ट ने जताई नाराज़गी और कहा...
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अंतर-धार्मिक जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने में दिल्ली पुलिस के तरीके की आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन किया है। जोड़े ने सुरक्षा और सुरक्षित घर की मांग की थी क्योंकि वे शादी करना चाहते थे लेकिन उन्हें पारिवारिक विरोध का डर था। कोर्ट ने डीसीपी को जांच करने और महिला की सुरक्षा देने का निर्देश दिया।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। एक अंतर-धार्मिक जोड़े को सुरक्षा प्रदान करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के आचरण की आलोचना की। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा कि पुलिस का ऐसा आचरण प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन है, जिसके तहत उन्हें स्वतंत्रता, सम्मान और विवाह से संबंधित स्वायत्त निर्णय लेने का अधिकार है। अदालत के समक्ष याची ने दावा किया कि महिला द्वारा उसके साथ रहने की बार-बार अपील करने के बाद भी दिल्ली पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया था।
कोर्ट ने किया नोट
अदालत ने नोट किया कि दिल्ली पुलिस याचिकाकर्ता को सुरक्षित घर में रहने की सुविधा देकर सुरक्षा प्रदान करने में न सिर्फ विफल रही, बल्कि उन्हें जबरन अलग कर दिया और महिला को एक आश्रय गृह में हिरासत में ले लिया।
सुरक्षित घर की भी मांग की
मुस्लिम युवक ने याचिका दायर कर हिंदू युवति के लिए सुरक्षा की मांग करते हुए याचिका दायर की। दंपति एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन उन्हें पारिवारिक विरोध के कारण खतरों की आशंका था। याचिका में दंपति के लिए सुरक्षित घर की भी मांग की गई थी। याचिका में तर्क दिया गया कि दोनों 2018 से आपसी सहमति से रिश्ते में थे और विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी संपन्न कराना चाहते थे।
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मोबाइल प्रयोग करने की अनुमति नहीं
याचिका में कहा गया है कि 23 जुलाई को याची ने संबंधित डीसीपी के समक्ष एक शिकायत दी थी। इसमें उन्होंने कहा कि अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों के लिए सुरक्षित घरों और विशेष प्रकोष्ठों पर दिल्ली पुलिस की मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया गया था।
याची युवक ने तर्क दिया कि अनुरोध के बावजूद, सुरक्षा बढ़ाने या सुरक्षित घर में उनके रहने की सुविधा प्रदान करने के बजाय, महिला को उससे जबरन अलग कर दिया गया। युवती का मेडिकल परीक्षण कराया गया और बाद में 24 जुलाई को निर्मल छाया आश्रय गृह में ले जाया गया। आरोप लगाया गया कि युवति को उसका मोबाइल फोन इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी गई और उसे उससे मिलने भी नहीं दिया गया।
रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश
अदालत ने याची को राहत देते हुए संबंधित डीसीपी को एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। अदालत ने डीसीपी को मामले की व्यक्तिगत रूप से जांच करने, आश्रय गृह में महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करने और यह जानने का निर्देश दिया कि क्या युवती युवक के साथ रहना चाहती है।
पीठ ने कहा कि अगर युवती इसकी पुष्टि करती है, तो दिल्ली पुलिस मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के अनुसार याचिकाकर्ता और युवती के लिए सुरक्षित घर में स्थानांतरित करने की उचित व्यवस्था की जाएगी।
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