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जानिए आईपीओ के बारे में हर छोटी-बड़ी बात

जानिए आईपीओ से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात, जो आपकी जानकारी बढ़ाएगी

By Surbhi JainEdited By: Published: Tue, 04 Oct 2016 05:52 PM (IST)Updated: Tue, 04 Oct 2016 05:59 PM (IST)

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नई दिल्ली: आईसीआईसीआई प्रू ने हाल ही में कोल इंडिया के बाद अब तक का सबसे बड़ा आईपीओ जारी किया, जो कि तीन दिनों में ही ओवरसब्सक्राइब्ड हो गया। इस इश्यू का प्राइस बैंड 300 से 334 रुपए तक तय किया गया। यह भारत की किसी कोर इंश्योरेंस कंपनी का पहला आईपीओ था। इस खबर के बाद बाजार में आईपीओ शब्द फिर से चर्चा में आ गया। ऐसे में जागरण की बिजनेस टीम आपको आईपीओ से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात बताने जा रही है, जो आपकी जानकारी बढ़ाएगी। लेकिन उससे पहले समझिए क्या होता है शेयर।

क्या होता है शेयर:

अगर आसान शब्दों में समझें तो शेयर का मतलब हिस्सा होता है। कारोबार में भी शेयर का मतलब हिस्सा ही होता है। यानी जब किसी को बहुत बड़ी कंपनी खोलनी होती है तो बहुत सारे हिस्सेदार यानी शेयरधारक तलाशता है। आप कारोबार में कितनी रकम लगाना चाहते हैं उसी अनुपात में कारोबार में शामिल हो रहे लोगों की हिस्सेदारी तय होती है। यानी कि कितना हिस्सा किसके पास होगा, इसे ही बाजार की भाषा में शेयर कहते हैं।

क्या होता है आईपीओ:

जब कोई कंपनी पहली बार आम लोगों के सामने कंपनी का कुछ हिस्सा (शेयर) बेचने का प्रस्ताव रखती है तो इस प्रक्रिया को इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) कहा जाता है। इसके लिए कंपनियां खुद को शेयर बाजार में लिस्टेड कराकर अपने शेयर निवेशकों को इसे बेचने का प्रस्ताव लाती हैं। लिस्टेड होने के बाद कंपनी के शेयर्स की खरीद और बिक्री शेयर बाजार में संभव होती है।

कंपनियां इसलिए लाती हैं आईपीओ:

आईपीओ वे कंपनियां लाती हैं जिन्हें पूंजी की आवश्यकता होती है। जब किसी कंपनी के पास नकदी नहीं होती है और वो बैंक से कर्ज लेने की सूरत में भी नहीं होती है तो ऐसी कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए आईपीओ का सहारा लेती हैं। इसके सहारे मिलने वाली राशि का इस्तेमाल कारोबार विस्तार में किया जाता है।

आईपीओ लाने की प्रक्रिया:

आईपीओ की प्रक्रिया दो तरीकों से पूरी की जाती है। पहला फिक्स्ड प्राइस मेथड और दूसरा बुक बिल्डिंग मेथड। फिक्स्ड प्राइस मेथड में जिस कीमत पर शेयर पेश किए जाते हैं, वह पहले से तय होती है। बुक बिल्डिंग में शेयर्स के लिए कीमत तय होती है, जिसके तह निवेशकों को बोली लगानी होती है। कीमत तय करने और बोली लगाने का कार्य पूरा करने के लिए बुकरनर की मदद ली जाती है। बुकरनर का काम सामान्य तौर पर कोई निवेश बैंक या सिक्योरिटीज के मामले की विशेषज्ञ कोई कंपनी करती है।

ऐसे तय होती है आईपीओ की कीमत:

कंपनी के प्रवर्तक कंपनी के शेयर की कीमत तय करने का काम करते हैं। आम बोलचाल में शेयर की कीमत को फेस वैल्यू कहा जाता है। जिन कंपनियों को आईपीओ लाने की इजाजत होती है वे अपने शेयर्स की कीमत तय कर सकती हैं। लेकिन इंफ्रस्ट्रक्चर और अन्य क्षेत्रों की कंपनियों को सेबी और बैंकों को रिजर्व बैंक से अनुमति लेनी होती है। कंपनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बुकरनर के साथ मिलकर प्राइस बैंड तय करता है। भारत में 20 फीसदी प्राइस बैंड की इजाजत है। इसका मतलब है कि बैंड की अधिकतम सीमा फ्लोर प्राइस से 20 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है।

अंतिम कीमत:

प्राइस बैंड तय होने के बाद निवेशक किसी भी कीमत के लिए बोली लगा सकता है। बोली लगाने वाला कटऑफ बोली भी लगा सकता है। उदाहरण के तौर पर, अंतिम रूप से कोई भी कीमत तय हो, वह उस पर इतने शेयर खरीदेगा। बोली के बाद कंपनी ऐसी कीमत का चयन करती है जिस पर उसे लगता है कि कंपनी के सारे शेयर्स बिक जाएंगे।


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