Move to Jagran APP

Story of Fastag: 2014 में हुई थी शुरुआत, अब इसके बिना हाईवे पर यात्रा करना मुश्किल; ऐसा रहा फास्‍टैग का सफर

टोल प्‍लाजा पर लगने वाली लंबी लाइनें भारत में सड़क यात्रा करने में हमेशा से एक बड़ा रोड़ा रही हैं। लंबी लाइनों से जूझते हुए प्‍लाजा के गेट तक पहुंचना गाड़ी रोकना कैश निकालना या फिर कार्ड स्वाइप करवाने में लगने वाला समय सफर को थकाऊ बना देता था। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए साल 2014 में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने फास्टैग की शुरुआत की।

By Praveen Prasad Singh Edited By: Praveen Prasad Singh Updated: Mon, 08 Apr 2024 03:15 PM (IST)
Hero Image
Fastag: टोल प्‍लाजा पर लगने वाली लंबी लाइनें भारत में सड़क यात्रा करने में हमेशा एक बड़ा रोड़ा रही हैं।

बिजनेस डेस्‍क, नई दिल्‍ली। Fastag, सिर्फ नाम ही काफी है। शायद ही कोई होगा, जिसने आज के जमाने में इसका नाम नहीं सुना होगा। चाहे उसके पास कार हो या न हो, लेकिन फास्‍टैग को आज हर कोई जानता है। इसके बिना आज सड़क के जरिए लंबी दूरी की यात्रा करना लगभग नामुमकिन-सा हो गया है। आज से 10-12 साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि कोई ऐसी तकनीक भी आएगी, जो हाईवे पर टोल प्‍लाजा पर लगने वाली लंबी लाइनों से मुक्‍त‍ि दिला देगी। लेकिन साल 2014 में पायलट प्रोजेक्‍ट के रूप में लॉन्‍च किए गए फास्‍टैग ने आज हाईवे पर यात्रा करने के अनुभव को क्रांतिकारी रूप से बदल डाला है। अब टोल प्‍लाजा पर लंबी लाइनों से मुक्‍त‍ि मिल चुकी है, लेकिन क्‍या आप जानते हैं इस फास्‍टैग की शुरुआत कैसे हुई थी?

ऐसे हुआ फास्टैग का जन्म

टोल प्‍लाजा पर लगने वाली लंबी लाइनें भारत में सड़क यात्रा करने में हमेशा से एक बड़ा रोड़ा रही हैं। लंबी लाइनों से जूझते हुए प्‍लाजा के गेट तक पहुंचना, गाड़ी रोकना, कैश निकालना, या फिर कार्ड स्वाइप करवाने में लगने वाला समय सफर को थकाऊ बना देता था। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए साल 2014 में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने फास्टैग की शुरुआत की।

क्‍या है फास्टैग?

फास्टैग एक तरह का इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम है, जिसे भारत में सड़क यात्रा को आसान बनाने के लिए शुरू किया गया था। यह एक रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक पर आधारित है। ये एक स्टिकर होता है, जिसे गाड़ी की विंडस्क्रीन पर लगाया जाता है। इस स्टिकर में एक माइक्रोचिप लगी होती है, जिसमें गाड़ी की पहचान और बैलेंस से जुड़ी जानकारी होती है। जब आप किसी टोल प्लाजा से गुजरते हैं, तो वहां लगे RFID रीडर उस स्टिकर को पढ़ लेते हैं और आपके प्रीपेड या लिंक्ड खाते से अपने आप पैसे कट जाते हैं। फास्‍टैग के आ जाने से अब न केवल लंबी लाइनों से मुक्‍त‍ि मिली है बल्‍क‍ि इससे समय और ईंधन दोनों की बचत भी हो रही है।

ऐसे बढ़ी फास्टैग की रफ्तार

शुरुआत में फास्‍टैग को कुछ खास सफलता नहीं मिली। जागरूकता की कमी इसके पीछे एक बड़ी वजह रही। लोगों में जागरूकता आने के साथ ही सरकार ने भी कई ऐसे कदम उठाए, जिनकी वजह से फास्‍टैग को नई रफ्तार मिली। सरकार ने धीरे-धीरे टोल प्लाजा पर कैशलेन कम किए और फास्टैग लेन को बढ़ावा दिया। एक जनवरी 2021 से फास्‍टैग को देशभर में अनिवार्य बना दिया गया। साथ ही, फास्टैग रिचार्ज करने के तरीकों को भी आसान बनाया गया। अब आप ऑनलाइन पेमेंट गेटवे, मोबाइल ऐप्स से भी फास्टैग रिचार्ज कर सकते हैं। इन प्रयासों के नतीजे भी सामने आए। टोल प्लाजा पर लगने वाली लाइनों में कमी आई और यात्रा का समय कम हुआ। साथ ही, टोल की वसूली में भी पारदर्शिता आई। वर्तमान में टोल प्‍लाजा पर कैशलेन लगभग खत्‍म ही किए जा चुके हैं और बिना फास्‍टैग के आपको दोगुना टोल चुकाना पड़ सकता है।

देश में One Vehicle One FASTag हुआ लागू

1 अप्रैल 2024 से देश में One Vehicle One FASTag का नियम लागू हो चुका है। इसका मतलब है कि अब कोई भी व्‍यक्‍त‍ि किसी एक गाड़ी के लिए एक से ज्‍यादा फास्‍टैग का उपयोग नहीं कर सकेगा। मौजूदा समय में देशभर में करीब आठ करोड़ से ज्‍यादा इसके यूजर्स हैं।

Satellite-Based टोल कलेक्शन की है तैयारी

फास्‍टैग ने देश में टोल कलेक्‍शन में क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की थी। अब सरकार इससे भी एक कदम आगे की तैयारी में है। पिछले महीने खुद केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इसे लेकर जानकारी दी थी। मार्च 2024 के आखिर में गडकरी ने कहा था कि देश में जल्द ही नया टोल कलेक्शन सिस्टम शुरू होने वाला है। गडकरी ने कहा था कि टोल बैरियर्स को उपग्रह आधारित (Satellite-Based) टोल कलेक्शन सिस्टम से बदल दिया जाएगा, जो वाहनों से शुल्क काटने के लिए जीपीएस और कैमरे का उपयोग करेगा। गडकरी ने यह भी बताया था कि इस नए सिस्‍टम का अभी परीक्षण करने के लिए एक पायलट रन चल रहा है। अगर यह सिस्‍टम कामयाब रहा और इसका उपयोग शुरू हुआ, तो फिर फास्‍टैग को बीते जमाने की बात बनने में देर नहीं लगेगी।