स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। उत्तर भारत में हीट वेव का कहर जारी है। आने वाले कुछ हफ्तों तक इससे राहत मिलने के आसार नहीं हैं। मौसम विभाग ने हालात को देखते हुए रेड अलर्ट जारी किया है। इस बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी हीट वेव से हाइपरटेंशन यानी बीपी के मरीजों को बचाने के लिए हरकत में आ गया है। किसी सामान्य व्यक्ति की तुलना में बीपी और हृदय रोग के मरीजों को हीट स्ट्रोक लगने की आशंका दोगुनी होती है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के मुताबिक, हीट वेव उस स्थिति को कहा जाता है, जब लगातार पांच या इससे अधिक दिनों तक अधिकतम तापमान औसत अधिकतम तापमान से 5º सेल्सियस से अधिक हो जाता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वर्ष 2000-2004 और 2017-2021 के बीच अत्यधिक गर्मी के कारण होने वाली मौतों में 55% की वृद्धि देखी गई। 1990 के बाद से 30 वर्षों के दौरान दुनियाभर में हीट वेव से हुई कुल मौतों में से 20.7 फीसदी मौतें भारत में हुई हैं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जोधपुर के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रमुख डॉ. पंकज भारद्वाज जागरण प्राइम से बातचीत में कहते हैं, हमारे शरीर का मैकेनिज्म ऐसा है कि जब ज्यादा गरमी पड़ती है तो हमारे शरीर को ठंडा रखने के लिए रक्त का प्रवाह मेजर ऑर्गन से हटकर स्किन में चला जाता है। इससे हार्टबीट बढ़ती है और पसीना भी आता है। इस प्रक्रिया में शरीर से पानी बाहर निकलता है और शरीर डिहाइड्रेट होता है।

भारद्वाज आगे कहते हैं, जो लोग बीपी या हृदयरोग के मरीज हैं, उनकी दवा भी इस तरह से काम करती है कि उन्हें पेशाब ज्यादा आती है। इससे भी शरीर डिहाइड्रेट होता है।

इस तरह, ज्यादा गरमी पड़ने पर सामान्य लोगों की तुलना में बीपी और हृदयरोग के मरीज का शरीर ज्यादा तेजी से डिहाइड्रेट होता है और इसलिए उन्हें हीट स्ट्रोक लगने की आशंका बढ़ जाती है।

भारद्वाज के मुताबिक, वरिष्ठ नागरिकों को भी हीट वेव का खतरा इसीलिए अधिक होता है, क्योंकि इस उम्र तक आते-आते ज्यादातर लोग एक से अधिक दवाओं का सेवन करने लगते हैं और उनका शरीर भी जल्दी डिहाइड्रेट हो जाता है।

गैर-सरकारी संगठन कंज्यूमर वॉयस के सीईओ आशिम सान्याल कहते हैं, हीट वेव प्रेवलेंस और हाइपरटेंशन या हाई बीपी के बीच बहुत करीबी संबंध है। यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। लेकिन जीवनशैली में बदलाव करने या उपचार का पालन करने से पहले, जरूरी है कि हाई बीपी की डाइग्नोसिस की जाए और नियमित रूप से बीपी की जांच करी जाए। जिन्हें भी बीपी की शिकायत मिले उन्हें उच्च तापमान से बचना चाहिए।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आने वाले स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने हाल में एक बैठक में बीपी के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई। बैठक में मौजूद एक अधिकारी ने कहा कि हाई बीपी क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) का कारण बनता है। सीकेडी के मामले ज्यादा बढ़े तो उतने मरीजों को डायलिसिस की सुविधा देने की क्षमता अभी देश में मौजूद नहीं है। ऐसे में बेहतर है, हाइपरटेंशन को ही मैनेज कर लिया जाए। 

सान्याल ने प्राथमिक स्वास्थ्य क्षेत्र के उपचार के प्रति सरकार के 75:25 दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा कि यह गरमी में होने वाली मौतों से बचने में मदद करेगा।

डीजीएचएस में एडीजी डॉ शिखा वर्धन ने सभी राज्यों और देश में मौजूद सभी एम्स को पत्र लिखकर कहा है कि वे सभी मरीजों के बीपी की निगरानी करें। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन जैसी सार्वजनिक जगहों पर बीपी निगरानी और जागरूकता शिविर का आयोजन करें। वृद्धाश्रम, शहरी मलिन बस्तियों, ग्रामीण दूरदराज के इलाकों और आदिवासी क्षेत्रों में खास तौर से शिविर आयोजित किए जाएं।

बहरहाल, डॉक्टरों का कहना है कि खुद से सावधानी और बचाव हीटवेव से बचने का सबसे सही उपाय है। डॉ. पंकज भारद्वाज कहते हैं, अगर आपको सिर दर्द हो रहा है, पसीना ज्यादा आ रहा है, त्वचा बहुत ज्यादा गर्म या ठंडी हो रही है या नौजिया हो रहा है तो समझ लीजिए गरमी असर दिखा रही है। ऐसा है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

नमक के अधिक सेवन से भी बचें

दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी बीपी के मरीजों को गरमी के मौसम में ज्यादा नमक के सेवन से भी बचने की सलाह देते हैं। डॉक्टर सैनी ने कहा कि गरमी में सेवन किए जाने वाले नींबू पानी, शिकंजी और आम पना जैसे पदार्थों में अक्सर नमक होता है। इनके ज्यादा सेवन से नमक की मात्रा भी बढ़ जाती है, जो बीपी बढ़ा सकती है। इसलिए बीपी के मरीज इस बात का ध्यान रखें कि उनके खानपान में नमक की मात्रा अधिक न हो जाए।