गर्मी ने इस साल नए रिकॉर्ड बनाए हैं। हीटवेव के चलते अब तक देश में 300 से ज्यादा लोग अपनी जान गवां चुके हैं। ऐसे में इस विश्व पर्यावरण दिवस पर हमने शहरों में बढ़ती गर्मी, हीटवेव के बढ़ते खतरे, जल संकट और जलवायु परिवर्तन जैसे तमाम ज्वलंत मुद्दों पर पर्यावरणविद और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण से बात की। बता दें, विश्व पर्यावरण दिवस पर इस साल की थीम है 'भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखा सहनशीलता'।

सवाल: इस साल आम लोगों को भीषण गर्मी और लम्बे समय तक हीटवेव वाले दिनों का सामना करना पड़ा। दिल्ली में तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। मौसम में इस बदलाव के पीछे क्या वजह है और ये कितनी बड़ी चिंता है।

जवाब: इस साल भारत में रिकॉर्ड गर्मी महसूस की गई। इस साल हीट स्ट्रेस की स्थिति काफी लम्बे समय तक बनी रही। गर्म हवाओं के साथ ही सतह के तापमान के साथ ही हवा में बढ़ती आर्द्रता हीट स्ट्रेस की स्थिति पैदा करती है। ऐसे में इस साल शहरों में असहनीय थर्मल डिस्कंफर्ट और हीट स्ट्रेस की स्थित बनी। इस भीषण गर्मी के पीछे जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारण है। लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हमने अपने घरों और शहरों को इस तरह से बनाया है कि वातावरण की गर्मी यहीं फंस कर रह जाती है। हमने अपने वन क्षेत्र को नष्ट करके और अपने जल स्रोतों को नष्ट करके अपने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया है। और जाहिर है, आज इस दुनिया में जलवायु परिवर्तन से कई तरह के खतरे और चुनौतियां बढ़ी हैं। लगातार बढ़ती भीषण गर्मी बाहर खुले में काम करने वाले लोगों, गरीबों, किसानों और मजदूरों के लिए बहुत बेहद खतरनाक है। बढ़ते एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम हैं

सवाल: हाल ही में CSE ने अपनी एक रिपोर्ट में शहरों में बढ़ती गर्मी के लिए बढ़ते कंक्रीट के इस्तेमाल और आर्द्रता को जिम्मेदार माना है। ऐसे में विकास का क्या मॉडल होना चाहिए?

जवाब: हमारे शहरों को बनाने में बड़े पैमाने पर कंक्रीट का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह ये अर्बनहीटलैंड की स्थिति पैदा करता है। दरअसल शहरों में बढ़ती गर्मी हमारे शहरों के विकास की खराब प्लानिंग का परिणाम है। शहरों में घर, व्यावसायिक भवन, स्कूल, सड़कें सभी बनाए जाने के लिए बड़े पैमाने पर कंक्रीट का इस्तेमाल हो रहा है। इन्हें बनाने में न तो एसी डिजाइन का इस्तेमाल किया जा रहा जो हवा के प्रवाह को बेहतर बनाए और गर्मी को कम करे और न ही ग्रीन एरिया का ध्यान रखा जा रहा है। समस्या और जटिल होती जा रही है। शहरों में जलाशय और ग्रीन एरिया में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। इनमें प्राकृतिक हीट सिंक के रूप में कार्य करने वाली वॉटरबॉडीज और वनस्पति शामिल हैं। शहरों में रहने वाली गरीब आबादी गर्मी के तनाव और उससे जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है, क्योंकि यह समूह आम तौर पर भीड़भाड़ वाले और अत्यधिक प्रदूषित स्थानों पर रहता है और छत पर गर्मी को रोकने वाली सामग्री जैसे टिन की चादरों का इस्तेमाल करता है। ऐसे में बढ़ती गर्मी इनके जीवन को और मुश्किल और जोखिमभरा बना रही है।

सवाल: क्या शहरों में लगातार बढ़ रही गर्मी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए क्या कदम उठाने होंगे ?

जवाब: शहरों को ठंडा रखने के लिए सबसे बड़ा समाधान शहर में जलाशयों और ग्रीन एरिया को बढ़ाना है। इसके लिए बड़े पैमाने पर रणनीति तैयार करनी होगी। ग्रीन एरिया और जलाशय परिवेश के तापमान को ठंडा कर सकते हैं। कंक्रीट निर्मित सतहों, बंजर भूमि और अपशिष्ट ताप जनरेटर जैसे वाहन, उद्योग और शीतलन उपकरणों जैसे प्रमुख गर्मी पैदा करने वाले संसाधनों को शहरों की प्लानिक के दायरे में लाया जाना चाहिए। बिल्डिंगों के जरिए पैदा होने वाली गर्मी को कम करने के लिए प्लानिंग करनी होगी। गर्मी से संबंधित बीमारी के बोझ को ध्यान में रखते हुए आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा प्रणाली विकसित करनी होगी। शहरों में छायादार क्षेत्रों का विस्तार करना होगा, सार्वजनिक स्थानों पर पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी और शहरों में कमजोर और व्यावसायिक रूप से उजागर समूहों के लिए गर्मी के जोखिम को कम करना महत्वपूर्ण है। शहरों के मास्टर प्लान को ध्यान में रखते हुए ये अध्ययन करने की आवश्कता है कि गर्मी क्यों बढ़ रही है। इसके समाधान तलाशने होंगे और नियम बनाने होंगे।

सवाल: इस साल बंगलुरू एक बड़े जल संकट से गुजर रहा है। इस घटना को आप कैसे देखती हैं। अन्य शहरों को इस तरह की मुश्किल का सामना ना करना पड़े इसके लिए क्या करना होगा?

जवाब: बेंगलुरु में पैदा हुआ जल संकट पूरे देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। हमारे शहर रहने लायक तभी बने रहेंगे जब शहर में रहने वाले गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए भी साफ पेय जल की उपलब्धता हो। बेंगलुरु में पर्याप्त बारिश होती है, यहां झीलें हैं जो इस बारिश को इकट्ठा कर सकती हैं और भूजल को रिचार्ज कर सकती हैं। इन झीलों के चलते ज्यादा बारिश के समय भी शहर में बाढ़ जैसी स्थिति नहीं बनती है। शहरों में पानी की हर बूंद का इस्तेमाल आने वाले अभाव के दौर के लिए किया जा सकता है। पानी की बचत के लिए शहरों के सीवर में बह जाने वाले पानी के प्रबंधन पर भी विचार करना होगा। इसके लिए जल इंजीनियरों को जमीन पर उतरना होगा, फिर से काम करना होगा और फिर से सोचना होगा। यह आज बेंगलुरु की कहानी है और कल ये किसी भी शहर की कहानी हो सकती है।

सवाल: जलवायु परिवर्तन हमारी सेहत को तो प्रभावित करता ही है ये अर्थव्यवस्था को किस तरह से प्रभावित कर रहा है?

जवाब: बढ़ती गर्मी हमारे स्वास्थ्य के साथ हमारी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रही है। जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ रहीं एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स की घटनाएं उत्पादकता को प्रभावित कर रही हैं। चक्रवात या सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाओं से भारी आर्थिक नुकसान होता है। हम पहले से ही देश में चल रही हीटवेव के चलते कई मौतें देख रहे हैं। सबूत यहाँ मौजूद हैं, हमें इस पर ध्यान देने, जागरुक होने और इसके बारे में कुछ करने की ज़रूरत है।

सवाल: साल दर साल उत्तराखंड और अन्य पहाड़ों की जंगलों में लगातार आग लगने की घटनाएं देखी जा रही हैं। क्या इसके पीछे भी जलवायु परिवर्तन है?

जवाब: जंगलो में लगने वाली आग का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। दिन प्रतिदिन जंगल की आग विनाशकारी होती जा रही है। अब जंगल की आग को हीटवेव और सूखे जैसी अन्य चरम मौसम की घटनाओं के की तरह की देखे जाने की जरूत है। हमारा मानना ​​है कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ बहु-क्षेत्रीय भागीदारी के माध्यम से जंगल की आग को प्रबंधित करने की आवश्यकता है।

सवाल: बढ़ती गर्मी के चलते पहाड़ों में ग्लेशियर तेजी से गल रहे हैं। अलखनंदा का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। ग्लेशियर पर बढ़ती गर्मी के प्रभाव को आप कैसे देखती हैं?

जवाब: यह समझना बेहद महत्वपूर्ण है कि पिघलते ग्लेशियर जलवायु के गर्म होने के साथ समुद्र के स्तर को बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज के समुद्र के स्तर में लगभग एक तिहाई वृद्धि महासागर के तापीय विस्तार के कारण हुई है। जैसे-जैसे महासागर गर्म होता है, पानी फैलता है और ज्यादा जगह घेरता है। अन्य दो-तिहाई हिस्सा पर्वतीय ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के सिकुड़ने से आता है। हिंदू कुश हिमालय (HKH) में ग्लेशियरों के द्रव्यमान में सामान्य से 65 प्रतिशत ज्यादा कमी देखी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के द्रव्यमान में कमी, बर्फ के आवरण में कमी, पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र का सिकुड़ना, जल विज्ञान में परिवर्तन और प्राकृतिक खतरों और आपदाओं में वृद्धि के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पौधों और जीवों की प्रजातियों के उच्च ऊंचाई पर पलायन, पारिस्थितिकी तंत्र में गिरावट और परिवर्तन, आवास की उपयुक्तता में कमी, प्रजातियों की गिरावट और विलुप्ति, और विदेशी प्रजातियों के आक्रमण जैसे परिवर्तनों को रिकॉर्ड किया है।