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    अंग्रेजों को ताजगी देती थी चौकोड़ी की चाय, अपनों ने बागानों पर ढाये जुल्‍म

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 31 Jan 2017 06:55 AM (IST)

    अतीत में चौकोड़ी बेरीनाग के चाय की महक सात समुंदर पार ब्रिटेन तक थी। आज उपेक्षा के चलते सारे चाय बागान उजड़ चुके हैं। चाय बागान कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुके हैं।

    अंग्रेजों को ताजगी देती थी चौकोड़ी की चाय, अपनों ने बागानों पर ढाये जुल्‍म

    प्रदीप माहरा, [बेरीनाग]: अतीत में अपने स्वाद और अलग महक को लेकर विदेशों में धाक जमा चुकी चौकोड़ी बेरीनाग की चाय सात समंदर पार इंग्लैंडवासियों को ताजगी देती थी। अपनों ने चाय के बागानों पर ऐसा जुल्म ढाया कि बागान की हरियाली को कंक्रीट के जंगल में तब्दील कर दिया है।

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    विदेशी हुक्मरानों ने चौकोड़ी और बेरीनाग की जलवायु को देखते हुए 19वीं शताब्दी में यहां पर चाय के बागान विकसित किए। प्रथम चरण में अंग्रेजों ने चीन से चाय के पौध मंगाकर विकसित किया। अनुकूल जलवायु के चलते चाय के पौध विकसित होने लगे। इन चाय के पौध की महक लंदन तक पहुंच गई। जिस पर वर्ष 1886 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसका नीलामी की गई।

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    हिल एक्टेंशन नामक एक अंग्रेज ने बेरीनाग को चाय के अनुरूप होने का प्रस्ताव बिटिश सरकार के सम्मुख रखा। इस पर बेरीनाग की 200 एकड़ जमीन चाय बागान के लिए स्वीकृत हुई थी। वर्ष 1864 में इस प्रस्ताव को अनुमोदित कर खितोली, सांगड़, बना, भट्टीगांव, ढनौली में भूमि चाय बागान के लिए आवंटित की गई। हिल एक्टेंसन ने चौकोड़ी और बेरीनाग में चाय के बागान लगवाए।

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    बीसवीं सदी के प्रारंभ में मेजर आर ब्लेयर ने चौकोड़ी और बेरीनाग चाय बागान का चार्ज लिया। उस दौरान चाय का अच्छा उत्पादन नहीं होने पर जार्ज बिलियट ने टी स्टेट खरीद लिया। बिलियट ने भी 1916 में टी स्टेट जिम कार्बेट को सौंप दिया। अपने घूमंतू स्वभाव के चलते कार्बेट अधिक समय तक टी स्टेट की जिम्मेदारी नहीं निभा सके उन्होंने मुरलीधर पंत को टी स्टेट सौंप दिया। पंत भी इस जिम्मेदारी को नहीं निभा सके। उन्होंने तत्कालीन कुमाऊं के सबसे बड़े उद्योगपति दान सिंह बिष्ट मालदार को टी स्टेट बेच दिया।

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    मालदार के हाथों में टी स्टेट आते ही यहां पर एक बार फिर चाय का उत्पादन व्यापक रूप से होने लगा। बेरीनाग और चौकोड़ी में चाय के कारखाने लगाए गए। यहां तैयार चाय विदेशों तक जाने लगी। मालदार के बाद बागान जिन लोगों के हाथ लगे उन्होंने इनका समुचित ढंग से रखरखाव नहीं किया।

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    दार्जिलिंग की चाय के समकक्ष थी स्थानीय चाय

    चौकोड़ी और बेरीनाग की चाय दार्जिलिंग की चाय के समकक्ष थी। इसका फ्लेवर विशेष था जो अंग्रेजों को खूब पसंद आता था। अंग्रेजों की रुचि को देखते हुए ही यहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की पीको फ्लावरी, विटोको स्पेशल, पीको स्पेशल ब्रांड तैयार किए जाते थे। इसके लिए मशीनें लगी थी और क्षेत्र के पांच सौ से अधिक लोगों को रोजगार मिलता था।

    अपनी सरकारें रही बेहोश

    अंग्रेजी शासनकाल में फले, फूले बागानों को बचाकर उन्हें विशिष्ट पहचान दी गई। अपनी सरकारें इसे लेकर बेहोश रही हैं। राज्य में आज चाय उत्पादन की बातें तो खूब प्रचारित की जाती है। चाय बोर्ड के नाम पर नेता दर्जा राज्यमंत्री बन जाते हैं परंतु चाय उत्पादन में अग्रणी बेरीनाग और चौकोड़ी अभी चाय उत्पादन क्षेत्र की सूची में तक शामिल नहीं हो सके हैं। इसके लिए जनप्रतिनिधियों से कई बार स्थानीय लोग वार्ता कर चुके हैं, लेकिन बागान को बढ़ावा देने के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ।

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