Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    उत्तराखंड के इस सरकारी स्कूल में मनोधर चला रहे हैं स्मार्ट क्लास

    By BhanuEdited By:
    Updated: Sat, 13 Aug 2016 07:00 AM (IST)

    पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लाक के इस प्राथमिक विद्यालय को खास बनाने का श्रेय है। उनके प्रयास से अब स्कूल में मल्टीमीडिया कक्षाएं संचालित की जा रही हैं।

    कोटद्वार, [अजय खंतवाल]: साफ-सुथरी यूनीफार्म में कक्षा एक से पांचवीं तक के बीस छात्र-छात्राओं की लैपटॉप पर थिरकती अंगुलियां देख शायद ही कोई यकीन कर सके कि यह सरकारी स्कूल है। पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लाक के इस प्राथमिक विद्यालय को खास बनाने का श्रेय है राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सहायक अध्यापक मनोधर नैनवाल को।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नैनवाल ने यह संसाधन सरकारी इमदाद से नहीं, बल्कि अपनी जेब से पैसे खर्च कर जुटाए। नतीजतन अब आसपास के तीन स्कूलों के शिक्षक भी उनसे प्रेरित होकर ये अभिनव प्रयोग दोहरा रहे हैं। अब इन स्कूलों में भी मल्टीमीडिया कक्षाएं संचालित की जा रही हैं।


    दरअसल, सरकारी स्कूलों की छवि ही कुछ ऐसी है कि आम आदमी पेट काटकर अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर है। वर्ष 2014 में शिक्षा विभाग का सर्वेक्षण बताता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर कितना गिर चुका है। एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) के अनुसार कक्षा एक से पांच तक के 25 से 30 फीसद बच्चे अक्षर की पहचान तक नहीं कर पाते।

    पढ़ें-इस युवक के जज्बे को सलाम, 16 किमी. पैदल चलकर पहुंचा रक्तदान करने
    मूलरूप से पौड़ी जिले के नैल गांव के रहने वाले मनोधर नैनवाल ने भी अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही ली। इसके बाद गांव से कुछ दूर राजकीय इंटर कालेज कोट से 12वीं करने के बाद 1989 में उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी की और कंप्यूटर कोर्स के लिए मुंबई चले गए।


    कुछ वर्ष मुंबई में कंप्यूटर प्रोग्रामर की नौकरी की, लेकिन मन नहीं रमा और गांव लौटकर 2005 में विशिष्ट बीटीसी के जरिये शिक्षण क्षेत्र में प्रवेश किया। नैनवाल बताते हैं कि शिक्षण मेरे खून में है। पिता देवी प्रसाद नैनवाल शिक्षक थे और बड़े भाई भी शिक्षक हैं।

    पढ़ें-संजीवनी परिवार की बूटियों की होगी पहचान, आयुष विभाग तैयार कर रहा ब्ल्यू प्रिंट
    सरकारी शिक्षा पर बात चली तो बोले 'जब मैंने नौकरी शुरू की तो सबसे बड़ी चुनौती अभिभावकों में सरकारी स्कूलों के प्रति भरोसा जगाने की थी।' नैनवाल कहते हैं कि संपन्न तबके के लोग अपने बच्चों को शहरों के प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, लेकिन मेरे मन को यह सवाल कचोटता रहा कि शिक्षा बच्चों का अधिकार है तो इसमें गरीबी क्यों आड़े आए।

    ऐसे में नैनवाल की कंप्यूटर शिक्षा काम आई। वह बताते हैं कि वर्ष 2008 उन्होंने खुद अपने पैसों से एक लैपटॉप और प्रोजेक्टर के साथ ही अन्य मल्टीमीडिया उपकरण खरीदे। संसाधन तो जोड़ लिये, लेकिन समस्या यह थी कि बच्चों को इससे कैसे जोड़ा जाए। तब उन्होंने स्वयं सॉफ्टवेयर तैयार किया और अब बच्चों को इसी के जरिये पाठ पढ़ाए जाते हैं।

    पढ़ें-उत्तराखंड में अब आपदा पीड़ितों को मिलेगी एक लाख की अतिरिक्त राहत
    डिबई गांव की तनु प्राथमिक विद्यालय कल्जीखाल में कक्षा पांच में है। वह कहती है कि 'अब मैं लैपटॉप पर ग्राफिक्स बना लेती हूं। इसमें मजा आता है।' कक्षा पांच का छात्र आयुष हो या चौथी की छात्रा वैशाली किसी के लिए भी लैपटॉप अपरिचित नहीं।
    मनोधर कहते हैं कि शिक्षक का तरीका रुचिकर हो तो बच्चे जल्दी सीखते हैं। मनोधर के प्रयास का सकारात्मक परिणाम निकला। राजकीय प्राथमिक विद्यालय मिरचौड़ा, किमोली और कांडा के शिक्षकों ने भी उनसे संपर्क साधा। अब वहां भी मल्टीमीडिया के जरिये कक्षाएं संचालित की जा रही हैं।आखिरकार सरकार ने भी उनके कार्य को सराहा और पांच सितंबर 2015 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया।
    पढ़ें-उत्तराखंड में साहसिक पर्यटन को आयोजित होगा राफ्टिंग फेस्टिवल