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पैरों से लाचार यह दिव्यांग औरों को खड़ा कर रही पैरों पर

नैनीताल जिले के हल्द्वानी में रहने वाली सुमन ने पैरों से लाचार होने पर भी हार नहीं मानी। वह महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 15 Sep 2017 09:20 AM (IST)Updated: Fri, 15 Sep 2017 08:31 PM (IST)
पैरों से लाचार यह दिव्यांग औरों को खड़ा कर रही पैरों पर

हल्द्वानी, [सतेंद्र डंडरियाल]: मजबूत इच्छाशक्ति से लिया गया एक फैसला अपनी ही नहीं, दूसरों की जिंदगी भी बदल सकता है। कुछ ऐसी ही नजीर पेश की है हल्द्वानी उत्तराखंड की सुमनलता कश्यप ने। 

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पोलियो के कारण सुमन 70 फीसद विकलांगता से ग्रसित हैं। लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने न केवल स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि करीब सौ गांवों की पांच सौ से अधिक जरूरतमंद महिलाओं को स्वरोजगार का प्रशिक्षण देकर पैरों पर खड़ा कर दिया। 

बोझ नहीं बनना चाहती थी

सुमन कहती हैं कि घर बैठी दिव्यांग बेटी के रूप में मां-बाप पर मैं बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए आत्मनिर्भर बनने की ठान ली। एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी और घर पर ही लोगों के कपड़े सिलने का काम शुरू कर दिया। गरीब परिवार में जो बेटी बोझ समझी जाती थी, वही बेटी घर का खर्च चलाने लगी। 

सैकड़ों महिलाओं की प्रेरणास्रोत

सुमन ने एक संस्था के सहयोग से अपना स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र खोला। पिछले दस साल में वह नैनीताल जिले के सौ से अधिक गांवों की सैकड़ों महिलाओं को स्वरोजगार संबंधित नि:शुल्क प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। 

सिर्फ अपने आस-पड़ोस ही नहीं, बल्कि ऊधमसिंह नगर, पीलीभीत, रामपुर, बरेली जैसे शहरों से भी कई महिलाएं उनके पास प्रशिक्षण प्राप्त करने आती हैं। उनके प्रशिक्षण केंद्र के रिकार्ड के मुताबिक यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पांच सौ महिलाओं ने विभिन्न स्थानों पर अपनी दुकान खोलकर सिलाई-बुनाई का काम शुरू कर दिया है और घर का खर्च चला रही हैं। 

वंचित बच्चों को भी कर रही शिक्षित

सुमन इन महिलाओं के बच्चों को भी शिक्षा दिलाने में सहयोग कर रही हैं। उनका मानना है कि गरीब अशिक्षित महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। यही एक तरीका है, जिससे समाज में गरीबी को दूर किया जा सकता है। 

प्रशिक्षण लेने के बाद स्वरोजगार में जुटीं कुछ महिलाओं ने बताया कि सुमन ने उन्हें मुझे आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करते हुए कहा था कि जब मैं 70 फीसद दिव्यांग होकर अपने घर का खर्च चला सकती हूं, तुम लोगों को प्रशिक्षण दे सकती हूं, तो तुम कुछ क्यों नहीं कर सकतीं। गरीब महिलाएं यहां नि:शुल्क प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं। इनमें से अनेक अब 10 से 12 हजार रुपए महीना कमा रही हैं। 

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