उत्तराखंड के इस वीर पर देश को गर्व, सात आतंकियों को ढेर कर फहराई 'कीर्ति' पताका
उत्तराखंड के बेटे कर्नल अजय कोठियाल ने देश को गौरवान्वित किया है। वह एक मिसाल बन चुके हैं युवा पीढ़ी के लिए। निम के प्रधानाचार्य ने कर्इ आतंकियों को ढेर किया है।
रुद्रप्रयाग, [बृजेश भट्ट]: केदारपुरी को नया स्वरूप प्रदान करने वाले निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल की बहादुरी के किस्से सुनकर भला कौन स्वयं को गौरवान्वित महसूस नहीं करेगा। यह वही कर्नल (तब मेजर) हैं, जिन्होंने दिसंबर 2001 से 2003 के मध्य जम्मू-कश्मीर के शोपियां सेक्टर में अपने छह साथियों के साथ 24 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया था। इस मुठभेड़ में कर्नल को भी दो गोलियां लगीं, जिनमें से एक गोली आज भी उनके जिस्म में मौजूद है। जो उन्हें बार-बार उस घटना की याद दिलाती रहती है।
यह वह दौर था, जब घाटी में आतंकवाद चरम पर था और लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठनों की सक्रियता के चलते पीर पंजाल शृंखला के शोपियां क्षेत्र के गांवों को 'ब्लैक विलेज' कहा जाता था। इसी दौर में 4-गढ़वाल राइफल की तैनाती शोफियां क्षेत्र में हुई। इसी इलाके के सिदाऊ नामक स्थान पर मेजर अजय कोठियाल ने एक नई ऑपरेशन पोस्ट बनाई और आतंकियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। रणनीति के तहत उन्होंने आतंकवादियों के वेश में अपनी टीम के साथ पीर पंजाल रेंज में घूमते हुए आतंकियों की तलाश शुरू कर दी। उन्होंने वहां गडरियों, गुर्जरों, और ग्रामीणों से घनिष्ठता बढ़ानी शुरू की, ताकि आतंकवादियों के बारे में पुख्ता जानकारी हासिल हो सके।
जुलाई 2002 में आतंकवादियों के खिलाफ पहला ऑपरेशन 'नस्नूर' शुरू हुआ और इस टीम ने सीमा पार से आए दो आतंकियों को ढेर कर दिया। यह आगाज था शोफियां क्षेत्र में आतंकियों के सफाए का। मेजर कोठियाल की यह टीम दिन-रात पहाड़ों और जंगलों में विचरण करती थी। इस दौरान ऑपरेशन 'सतारी' समेत कई छोटे-मोटे ऑपरेशन चलते रहे। इसी बीच मेजर को दो बार गोलियां भी लगीं, लेकिन उनके हौसलों में कोई कमी नहीं आई।
इस टीम को सबसे बड़ी कामयाबी मिली ऑपरेशन 'कौंग वतन' में। यह वह ऑपरेशन था, जिसकी केस स्टडी आज इंडियन आर्मी के बैटल स्कूलों में दिखाई और पढ़ाई जाती है।
इस ऑपरेशन में मेजर कोठियाल की छह सदस्यीय टीम ने एक साथ सीमा पार से आए सात आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा था। यह अपनी तरह का आज तक का पहला ऑपरेशन है, जिसमें इतनी बड़ी कामयाबी में महज 16 गोलियां फायर हुईं और टीम को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचा।
इस पूरे ऑपरेशन की प्लानिंग के लिए मेजर ने एक महीने आतंकवादियों का पीछा किया था और सुनियोजित तरीके से ऑपरेशन को कामयाब बनाया। अपने डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में इस टीम ने 24 आतंकवादियों का खात्मा किया। मेजर अजय कोठियाल, जो पहले ही 'शौर्य चक्र' से सम्मानित हो चुके थे, उन्हें इस असाधारण वीरता एवं टीम लीडरशिप के लिए राष्ट्रपति ने 'कीर्ति चक्र' से नवाजा।
आज इंडियन आर्मी बैटल स्कूल मऊ (मध्य प्रदेश) में मेजर अजय कोठियाल के नाम की एक स्काउट पोस्ट बनी है। इसका उद्देश्य इंडियन आर्मी के नए अफसरों को प्रेरित करना है। यह अपनी तरह की एकमात्र पोस्ट है, जिसका निर्माण किसी जीवित आर्मी ऑफीसर के नाम पर हुआ। कीर्तिमानों का यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता। बाद में मेजर कोठियाल को विशिष्ट सेवा मैडल से भी नवाजा गया। आज उत्तराखंड के इस बेटे की गिनती आर्मी के उन चुनिंदा अधिकारियों में होती है, जिन्हें भारतीय सेना में सर्वाधिक मैडल मिले हैं।
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