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    अब एक्वेरियम नहीं, तालाबों में भी दिखेंगी रंगीन मछलियां

    By BhanuEdited By:
    Updated: Mon, 25 Jul 2016 11:19 AM (IST)

    अब रंगीन मछलियो को पालने वाले शौकीनो के लिए अच्छी खबर है। रंगीन मछलियो को बगीचो मे बने जलाशयो मे भी पाला जा सकेगा। ये मछलियां व्यापारिक दृष्टि से भी फायदे का सौदा साबित हो सकती ह

    भीमताल, [राकेश सनवाल]: अब रंगीन मछलियो को पालने वाले शौकीनो के लिए अच्छी खबर है। रंगीन मछलियो को बगीचो मे बने जलाशयो मे भी पाला जा सकेगा। वह भी बेहद कम खर्च पर। यही नही ये मछलियां व्यापारिक दृष्टि से भी फायदे का सौदा साबित होंगी।
    एक्वेरियम मे रंगीन मछलियां तैरती तो देखी होंगी। किसी घर, ऑफिस, होटल या मॉल मे इन्हे पानी मे खेलता देख एक पल को नजर ठहर जाती है। कई शौकीन इन्हे पालने की भी सोचते है, लेकिन एक्वेरियम की देख-रेख व पानी की इन रंगीन रानियो को पालने मे खर्च होने वाली रकम उनके अरमानो पर पानी फेर देती है।

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    इसके अलावा एक्वेरियम मे तापमान की जांच, समय-समय पर पानी बदलना व मछलियो के खान-पान का ध्यान रखना इस चुनौती को और अधिक बढ़ा देता है। अब इन्हें तालाबों में भी पाला जा सकेगा।

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    भीमताल के शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिको ने निदेशक डॉ. एके सिंह के दिशा निर्देश मे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। निदेशालय के वैज्ञानिक डॉ. रवि पतियाल बताते है अब छोटे-छोटे तालाबो मे भी रंग-बिरंगी मछलियां पाली जा सकेगी।
    संस्थान मे विदेशी प्रजाति गोल्ड फिश व कोई कार्प पर शोध किया। इन दोनो मछलियो को मध्य पर्वतीय क्षेत्र का वातावरण रास आया है। अब तक इन मछलियो को केवल एक्वेरियम आदि मे रखा जाता था, लेकिन इन दोनो प्रजातियो को मछली उत्पादक खुले मैदान मे बने जलाशयो मे भी पाल सकते है।

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    उन्होंने बताया कि इसमें लागत भी कम आती है। साथ ही वर्षो तक मछली उत्पादक इससे लाभ ले सकते है। बागवानी सजावटी मछलियो के उत्पादन को नया दृष्टिकोण व आयाम दिया जा सकता है।
    प्रोत्साहन के लिए बीज वितरण
    बागवानी सजावटी मछलियो को पालने मे कम स्थान की आवश्यकता, सरल रखरखाव, जलाशय मे कम निर्माण लागत, मनोरंजन, सम्मोहन व व्यवसायिक रूप से लाभकारी होने के कारण इनका उत्पादन पर्वतीय क्षेत्रो मे होने लगा है। संस्थान किसानो को इस ओर प्रोत्साहित करने के लिए इसके बीज भी वितरित कर रहा है।

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    उत्तराखंड मे ये प्रजातियां उपलब्ध
    राज्य की नदियो का सर्वेक्षण करने पर वैज्ञानिको ने निष्कर्ष निकाला कि भारत का ऊपरी भूभाग सजावटी मछलियो से परिपूर्ण है। यहां पुंटिश, पी कोन चोनिस, पी डुकाई डे, पी टिक्टो, पी जीलस, बारिलस बरना, बारिलस बौरना, बारिलस बिनडिलेसिस, बारिलस वागरा, ब्राची डेरिओ वीरिओ, रेनिमस बोरा, गारा गोटियाला, गारा लारंटा, कोई कार्प, गोल्ड फिश, नामाचिइयुस बिएवानी, ए बोटिआ, एन कोरिका, एन रूपिला, गाइपोथेरेक्स आदि शामिल है। इन पर शोध जारी है। इनमे से स्थानीय प्रजाति बेरिलियस निमेचिल्स व गारा सिसटुआ की ब्रीडिंग कराने मे संस्थान को कामयाबी मिली है।
    ऐसे बढ़ेगी आय
    सर्वे के निष्कर्षो से वैज्ञानिक काफी खुश है। वैज्ञानिको ने बगीचे मे 27 स्क्वायर फिट मे जलाशय का निर्माण किया। इसमे 300 रंगीन मछलियो के बीज डाले जिसमे 1600 रुपये लागत आई। एक वर्ष बाद 2750 रुपये का लाभ प्राप्त हुआ। इसके बाद के वर्षो मे लगातार मुनाफे की राशि बढ़ती गई। दस माह के भीतर मुनाफा 101 से बढ़कर 138 रुपये प्रति स्क्वायर फिट पहुंच गया।

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    ब्रीडिंग में मिली सफलता
    शीतजल मत्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिक डॉ. रवि पतियाल के मुताबिक वर्तमान मे अबेरिलियस निमेचिल्स व गारा सिसटुआ की ब्रीडिंग कराने मे सफलता मिली है। गोल्ड फिश व कोई कार्प की जांच कर किसानो को वितरित किया गया है। कुछ इसका लाभ भी लेने लगे है। मछली उत्पादको को इन्हे पालने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
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