इंसान ही नहीं, मछलियों को भी हो रहा हाईटेंशन, लीवर भी होता है डेमेज, जानिए...
आपके एक्वेरियम की मछलियां यदि स्वभाव के विपरीत हरकत करने लगे तो यह उनके बीमार होने का संकेत भी हो सकता है। मछलियों में मनुष्य के समान हाईटेंशन समेत कई बीमारियां होती है
देहरादून, [भानु बंगवाल]: यदि आपने मन बहलाने के लिए एक्वेरियम में मछलियों को पाला है तो उनके खानपान पर भी ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि स्वभाव के विपरीत यदि मछलियां हरकत करने लगे तो यह उनके बीमार होने का संकेत भी हो सकता है। मछलियों में मनुष्य के समान हाईटेंशन समेत कई बीमारियां होती हैं।
आजकल रंगीन मछलियां मध्यमवर्गीय परिवारों के ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाने लगी हैं। दून में मछली पालने का शौक लोगों में बढ़ता जा रहा है। इनमें गोल्ड प्रजातियों की मछलियों में रेड गोल्ड, ओरेंज गोल्ड, लायन गोल्ड, हेड गोल्ड, ब्लैक मूर, लीची गोल्ड की मांग अत्यधिक है।
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रखरखाव पर देना होता है ध्यान
मछली पालन में सबसे ज्यादा ध्यान उनके रखरखाव पर देना पड़ता है। यदि मछलियों को पर्याप्त आक्सीजन व सही भोजन नहीं मिलेगा तो इसका निश्चित रूप से उनके स्वभाव में असर पड़ता है। वैज्ञानिकों की संस्था स्पैक्स ने मछलियों पर अध्ययन कर यह पाया कि मछलियों में मनुष्य के समान बीमारी होती है। ऐसे में उनकी हरकतों पर ध्यान देना जरूरी है।
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हाईटेंशन के ये हैं लक्षण
हाईटेंशन की बीमारी में मछलियों में घबराहट की स्थिति होती है। इस बीमारी में मछलियों के फिन की नशों में खून चमकने लगता है। पंख में लालधारियां चमकना ही हाईटेंशन के संकेत हैं। यह रोग पानी में घुलित आक्सीजन की कमी से हो सकता है। साथ ही ताकतवर मछलियों को साथ रखने में भय से भी कमजोर मछलियां हाईटेंशन की शिकार हो जाती हैं।
इस तरह करें उपचार
हाईटेंशन की शिकार मछली को अन्य मछली से अलग बर्तन में रखा जाना ही बेहतर है। साथ ही रोगग्रस्त मछली को देसी नमक के पानी में रखकर उसे इस रोग से छुटकारा दिलाया जा सकता है। पच्चीस लीटर पानी में सिर्फ आधा चम्मच नमक ही काफी होता है।
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फ्लू भी होता है मछलियों को
फ्लू होने की स्थिति में मछलियों की चाल सुस्त पड़ जाती है। ऐसे में मछली कुछ खाती भी नहीं। उनके मुंह का रंग बदलकर सफेद पड़ने लगता है। उपचार के लिए पानी में ब्लू मिथाइलीन मिलाकर एक्वेरियम में डाली जाती है। साथ ही तापमान बढ़ाने के लिए हलका गरम पानी भी डाला जाता है। ये रोग ज्यादातर सर्दियों में होता है। ऐसे में एक्वेरियम में हीटर भी लगाया जाता है।
लीवर डेमेज का नहीं है कोई उपचार
मछलियों में लीवर कमजोर होने से ड्राप्सी की बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में मछलियों के नाभी से नीचे का हिस्सा बढ़कर लंबा हो जाता है। पेट खिंचने से मछली भोजन छोड़ देती है। इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं हो पाया है। ऐसे में यदि किसी मछली में इस तरह के लक्षण दिखें तो उसे अन्य मछलियों से अलग बर्तन में रख दिया जाना चाहिए।
तापमान बदलने से होता है चर्मरोग
स्पैक्स के सचिव डॉ. बृजमोहन शर्मा के मुताबिक पानी के तापमान बदलने से मछली में चर्म रोग हो जाता है। उसके शरीर पर सफेद चकते पड़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये चकते चिपटी से निकालने पड़ते हैं। साथ ही मछली को 27 से 32 डिग्री सेंटीग्रेट तक गरम पानी में डाला जाता है। पानी की मात्रा का एक प्रतिशत पोटेशियम परमैंगनेट भी इसमें मिलाने से मछली सामान्य स्थिति में लौटने लगती है।
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ज्यादा भोजन दिया तो लग जाएंगे दस्त
जरूरत से ज्यादा भोजन देने पर मछलियों को दस्त लग जाते हैं। ऐसे रोगग्रस्त मछली के मलद्वार पर बारीक धागा सा लटकता रहता है। दस्त लगने पर मछली को दो तीन दिन तक भोजन देना बंद कर दिया जाता है। साथ ही एक्वेरियम का पानी भी जल्द बदलना पड़ता है। स्पैक्स के सचिव के मुताबिक ज्यादातर बीमारियां तापमान बदलने और आक्सीजन की कमी से होती हैं।
शर्मिली भी होती हैं मछलियां
मछलियों में भी शर्मिला स्वभाव भी होता है। गहरे नीले रंग की ब्ल्यू लोच प्रजाति की मादा मछली काफी शर्मिली होती है। इस प्रजाति में नर ही भोजन की तलाश कर इसकी सूचना मादा को देता है। मादा किसी कोने में छिपी रहती है। सूचना के बाद ही वह भोजन के लिए आगे बढ़ती है।
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