एक अदद छत को संघर्ष कर रहा आजादी का सिपाही
एक स्वतंत्रता सेनानी 90 साल की उम्र में हरिद्वार के ललताराव पुल के पास टूटे-फूटे फर्श वाले किराये के एक कमरे में परिवार के अन्य 10 सदस्यों के साथ रहने के लिए मजबूर हैं।
हरिद्वार [महेश पांडे]: 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चरम पर था। उन दिनों हरिद्वार में पान की दुकान चलाने वाले आंदोलनकारी शंभुदयाल हरकी पैड़ी पर सभा कर लोगों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जोश भरते थे। 14 वर्षीय एक बालक नंदलाल ढींगरा भी अक्सर उनके भाषण सुना करता। इन जोशीले भाषणों ने उस पर ऐसा गहरा प्रभाव छोड़ा कि आजादी की लड़ाई में शंभुदयाल का सक्रिय सहयोगी बन गया।
14 अगस्त 1943 को नंदलाल को गिरफ्तार कर सहारनपुर जेल भेज दिया गया। पांच माह 23 दिन की सजा काटने के बाद जब नंदलाल जेल से बाहर आए तो उनकी सक्रियता और बढ़ गई और आजादी की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लिया। बेबसी देखिए कि आज यही नंदलाल 90 साल की उम्र में हरिद्वार के ललताराव पुल के पास टूटे-फूटे फर्श वाले किराये के एक कमरे में परिवार के अन्य 10 सदस्यों के साथ रहने के लिए मजबूर हैं।
यह आजादी की लड़ाई में अपना सब-कुछ न्यौछावर कर देने वाले स्वतंत्रता के सिपाहियों का हाल। वर्ष 1972 से मेला अस्पताल के पास गुरुद्वारा सिंह सभा के किराये के एक कमरे में रहने वाले नंदलाल के तीन बेटे और दो बेटियां हैं। वर्ष 1981 से राज्य सरकार ने उनकी पेंशन शुरू की, लेकिन आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के चलते बच्चे पढ़-लिख नहीं सके। परिवार की गुजर के लिए उन्होंने ललताराव पुल के पास सड़क किनारे साइकिल रिपेयरिंग की दुकान खोली, लेकिन इससे भी स्थिति नहीं बदली। तीनों बेटों की शादी के बाद परिवार में सदस्यों की संख्या 11 हो गई है। समझा जा सकता है कि इस पूरे कुनबे की एक कमरे में गुजर कैसे हो रही होगी।
मई 2005 में नगर पालिका की बोर्ड बैठक में स्वतंत्रता सेनानी नंदलाल ढींगरा को टिबड़ी में सौ मीटर जमीन आवंटित करने का निर्णय लिया गया। नंदलाल ने इस भूमि पर चहारदीवारी करने के साथ वहां नींव भी खुदवा दी। लेकिन, इस बीच प्रस्ताव को लेकर शासन ने असहमति जता दी थी। नतीजा, काम रुकवा दिया गया। नंदलाल बताते हैं वे तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन जमीन का सपना हकीकत में नहीं बदल पाया। इस मामले में वर्ष 2006 में तत्कालीन डीएम आरके सुधांशु ने भी शहरी विकास सचिव को पत्र भेजा था, पर नतीजा सिफर रहा। अब तो आवंटित भूमि पर भी अतिक्रमणकारियों का कब्जा हो चुका है।
सिस्टम से आहत हैं नंदलाल
बंटवारे से पहले नंदलाल का परिवार पेशावर के बन्नू में रहता था। पिता झंडाराम वहां होटल व्यवसायी थे। देश का विभाजन हुआ और वे हरिद्वार आ गए। इस उम्मीद में कि अपनी सरकार मुल्क में खुशहाली लाएगी और स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को साकार करेगी। लेकिन, अब लगता है कि आजाद मुल्क में भी कुछ नहीं बदला। यहां का सिस्टम बेहद खराब है। किसी को कोई डर नहीं है।
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बेटों के पास भी स्थायी रोजगार नहीं
नंदलाल का बड़ा बेटा बलदेव कुमार टैक्सी चालक है, जबकि दूसरा बेटा लोकेंद्र कुमार माला बेचने का काम करता है। तीसरा बेटा राजेश कुमार ऑटो चलाता है। तीनों बेटों व दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है। बलदेव के दो बच्चे हैं, जबकि राजेश कुमार के छह। पत्नी यशोदा उर्फ हरबंस कौर का वर्ष 2015 में बीमारी के चलते निधन हो गया था।
केंद्र से नहीं मिलती पेंशन
स्वतंत्रता सेनानी नंदलाल बताते हैं कि उन्हें केंद्र से पेंशन नहीं मिलती। मानक के तहत छह महीने की सजा काटने वाले को ही केंद्र से पेंशन मिलने का प्रावधान है, जबकि वे पांच माह 23 दिन ही जेल में रहे। अलबत्ता, राज्य सरकार उन्हें जरूर 11 हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन देती है।
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अंग्रेजों से बचाने को पिता ने दून भेजा
नंदलाल बताते हैं कि 1943 में पांच माह 23 दिन की सजा काटने के बाद जब जेल से बाहर निकले तो उनकी सक्रियता और बढ़ गई। जिससे अंग्रेजी हुकूमत फिर उनकी तलाश में जुट गई। इस पर पिता झंडाराम ने उन्हें देहरादून भेज दिया था। देहरादून के चुक्खुवाला में किराये के मकान पर रहकर उन्होंने वहां साइकिल रिपेयरिंग की दुकान भी खोली थी।
यह मामला मेरे संज्ञान आज आया है: डीएम
हरिद्वार के जिलाधिकारी हरबंस सिंह चुघ ने बताया कि यह मामला मेरे संज्ञान आज आया है। जमीन आंवटन को लेकर शासन की क्या नीति है, इसकी मुझे जानकारी नहीं है। इसकी पड़ताल की जाएगी। रविवार को पंडित शहीद जगदीश वत्स पार्क में आयोजित कार्यक्रम में मेयर मनोज गर्ग ने बताया कि आगामी बोर्ड की बैठक में स्वतंत्रता सेनानी को जमीन देने के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा।
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