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    जिंदगी की जंग में भी योद्धा साबित हुए ये जवान

    By BhanuEdited By:
    Updated: Sat, 02 Dec 2017 08:53 PM (IST)

    आर्मी कैडेट कॉलेज कई लगनशील व दृढ़निश्चयी जवानों की राह प्रशस्त कर रहा है। एक सिपाही से अफसर बनने के लिए जवानों ने जीवन में संघर्ष किया और सफलता की दहलीज पर पहुंचे।

    जिंदगी की जंग में भी योद्धा साबित हुए ये जवान

    देहरादून, [जेएनएन]: आर्मी कैडेट कॉलेज कई लगनशील व दृढ़निश्चयी जवानों की राह प्रशस्त कर रहा है। एक सिपाही से अफसर बनने का सफर आसान नहीं होता। लेकिन, चुनौतियों से पार पाना इन्हें आता है। तब समय अनुकूल नहीं था और घर का भार एकाएक कंधों आ पड़ा। मगर, न उम्मीद छोड़ी और न सपना टूटने दिया। मन में रह-रहकर हिलोरे ले रही उम्मीद की बदौलत ही सफलता की दहलीज तक पहुंच गए।

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    चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ गोल्ड मेडल व कला वर्ग में कमांडेंट सिल्वर मेडल प्राप्त करने वाले कोल्हापुर महाराष्ट्र के कैडेट पाटिल मनोज पांडुरंग के पिता पांडुरंग आनंदा पाटिल भी फौज में थे। वह रिटायर हवलदार हैं। उनकी यही तमन्ना थी कि बेटा फौज में अफसर बने। 

    मनोज ने तीन दफा सीडीएस का एग्जाम दिया पर सफलता नहीं मिली। ऐसे में वर्ष 2000 में एयरफोर्स में भर्ती हुए। लक्ष्य पर निगाह थी और लगातार इसके लिए मेहनत करते रहे। अब वह अफसर बनने की राह पर हैं। 

    कांस्य पदक विजेता फरीदाबाद हरियाणा के कपिल भी बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पिता अमर चंद प्राईवेट नौकरी पर हैं। कपिल का सपना भी सेना में अफसर बनने का था। एनडीए का एग्जाम दिया पर सफल नहीं हुए। परिवार को आर्थिक संबल देने के लिए 2012 में एयरफोर्स में भर्ती हुए। उम्मीद जिंदा रखी और लगन के बूते लक्ष्य पा लिया।

    सर्विस सब्जेक्ट में कमांडेंट सिल्वर मेडल विजेता हिसार हरियाणा निवासी नवदीप शर्मा का एक ही सपना था। फौज में अफसर बनना। पिता महावीर शर्मा सामान्य किसान हैं। घर की परिस्थितियां ऐसी नहीं थीं कि ज्यादा वक्त इंतजार में बिताया जाए। ऐसे में 2006 में एयरफोर्स में भर्ती हुए। परिवार को संबल प्रदान किया और अपने सपनों को उड़ान। अब अफसर बनने की राह पर है। 

    कैडेट्स ने दिखाई बहुमुखी प्रतिभा

    जांबाजी से इतर एसीसी से पासआउट कैडेट्स का हुनर फोटोग्राफी, पेंटिंग आदि जैसे रचनात्मक कार्यों में भी दिखाई दिया। यह एंड ऑफ टर्म इंडोर क्लब एग्जिबीशन में नुमाया हुआ। प्रदर्शनी का उद्घाटन आइएमए कमांडेंट की पत्नी अनीता झा ने किया। 

    कैडेट्स के आर्टस क्लब, बर्ड वाचिंग एंड फोटोग्राफी क्लब, कंप्यूटर क्लब व वाइल्ड लाइफ इकोलॉजी एंड अर्बोरीकल्चर क्लब की रचनात्मक क्षमता के कई पहलू उजागर हुए।

    आर्मी कैडेट कॉलेज का सफर 

    -आर्मी कैडेट कॉलेज (एसीसी) की नींव दि किचनर कॉलेज के रूप में वर्ष 1929 में तत्कालीन फील्ड मार्शल बिर्डवुड ने नौगांव (मध्य प्रदेश) में रखी।

    -16 मई 1960 को किचनर कॉलेज आर्मी कैडेट कॉलेज के रूप में कार्य करने लगा, जिसका शुभारंभ तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्णा व जनरल केएस थिमय्या ने किया। 

    -यहां से कोर्स की पहली पीओपी 10 फरवरी 1961 को हुई।

    -वर्ष 1977 में कॉलेज भारतीय सैन्य अकादमी से अटैच कर दिया गया।

    -वर्ष 2006 में कॉलेज आइएमए का अभिन्न अंग बन गया।

    -कॉलेज सैनिकों को अधिकारी बनने का मौका देता है। अब तक एसीसी से साढ़े चार हजार से अधिक सैनिक अफसर बन चुके हैं। 

    -कॉलेज से पास होकर कैडेट आइएमए में जेंटलमेन कैडेट के रूप में ट्रेनिंग लेकर सैन्य अफसर बनने की खूबियां समाहित करते हैं।

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