हिमालय से अलग दिशा में खिसक रहा है रैथल गांव
भारतीय व यूरेशियाई प्लेट की टकराहट के कारण हिमालय हर साल करीब 20 मिलीमीटर उत्तर की तरफ खिसक रहा है, लेकिन उत्तरकाशी जिले के रैथल गांव हिमालय से अलग दिशा पूरब में खिसक रहा है।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: भारतीय व यूरेशियाई प्लेट की टकराहट के कारण हिमालय हर साल करीब 20 मिलीमीटर उत्तर की तरफ खिसक रहा है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि हिमालय के ऊपर जितने भी गांव व शहर हैं, वे भी हिमालय के साथ उसी दिशा में गति करेंगे। यह तो रही सामान्य घटना, लेकिन उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री राजमार्ग से ऊपर बसा रैथल गांव हिमालय से अलग दिशा पूरब में खिसक रहा है। इस गांव के खिसकने की गति भी हिमालय की गति से दो मिलीमीटर अधिक यानी 22 मिलीमीटर प्रतिवर्ष है। इस असामान्य बात का खुलासा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने जीपीएस व सेटेलाइट अध्ययन के माध्यम से किया।
वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. आरजे पेरुमल के अनुसार यह बात इसलिए और भी चौंकाने वाली है कि रैथल गांव की खिसकने की गति लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2006 में गांव के खिसकने की गति 12 मिलीमीटर प्रतिवर्ष थी, जो अब लगभग दोगुनी हो चुकी है।
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भौगोलिक ढांचे के हिसाब से बात करें तो गांव भागीरथी (गंगा) नदी की तरफ खिसक रहा है। यदि ऐसा चलता रहा तो एक दिन गांव का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। हालांकि यह दिन कब आएगा और भविष्य में गांव के खिसकने की गति कितनी बढ़ेगी, इस पर अध्ययन से पता चल सकेगा।
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23 जीपीएस स्टेशन से निगरानी
उत्तराखंड में हिमालयी क्षेत्र की गति पर निगरानी के लिए 23 जीपीएस स्टेशन लगाए गए हैं। डॉ. आरजे पेरुमल ने बताया कि अन्य सभी जीपीएस स्टेशन के क्षेत्र हिमालय की दिशा में ही गति कर रहे हैं। सिर्फ इस गांव क्षेत्र में लगे दो जीपीएस स्टेशन यह बता रहे हैं कि गांव अलग दिशा में गति कर रहा है। अलग दिशा में गति करने वाला यह क्षेत्र दो वर्ग किलोमीटर में फैला है।
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केदारनाथ आपदा से संबंध नहीं
जून 2013 में जब केदारनाथ में जल प्रलय आई थी तो समूचे उत्तराखंड में अतिवृष्टि रिकॉर्ड की गई थी। इससे जगह -जगह भारी भूस्खलन हुए थे। उत्तरकाशी भी आपदाग्रस्त जनपदों में शामिल था। डॉ. आरजे पेरुमल के अनुसार ऐसा नहीं है कि केदारनाथ की आपदा के चलते रैथल गांव के खिसकने की रफ्तार बढ़ी हो। इस गांव के नीचे कुछ ऐसा असामान्य चल रहा है, जिससे यह घटना हो रही है। एक बात यह भी पता चली है कि गांव के नीचे सख्त चट्टानें हैं। यह भी एक वजह हो सकती है, मगर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।
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