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    पुरोहित ने तोड़ीं रूढ़ियों की बेड़ियां, महिला और दलितों को खोले मंदिर के दरवाजे

    By BhanuEdited By:
    Updated: Tue, 09 Aug 2016 12:12 PM (IST)

    क्षेत्र जौनसार बावर के प्रसिद्ध महासू मंदिर के कुल पुरोहित मोहनलाल सेमवाल आम होते हुए भी खास हैं। तमाम विरोध के बावजूद उन्होंने महिलाओं और दलितों के लिए मंदिर के दरवाजे खोल दिए।

    त्यूणी, देहरादून [चंदराम राजगुरु]: रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़ता एक पुरोहित। हैरान हो गए, आमतौर पर पुरोहित समाज की छवि परंपराओं के पोषक की रही है, लेकिन जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के प्रसिद्ध महासू मंदिर के कुल पुरोहित मोहनलाल सेमवाल आम होते हुए भी खास हैं। यह उनके संघर्ष का परिणाम है कि तमाम विरोध के बावजूद उन्होंने महिलाओं और दलितों के लिए मंदिर के दरवाजे खोल दिए।
    देहरादून जिले का जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के महासू मंदिर में महज 12 साल पहले तक दलितों और महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। सदियों से चली आ रहीं इन कुरीतियों में जकड़े समाज में कसमसाहट तो थी, लेकिन सवाल यह था कि आवाज कौन उठाए।

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    इसी दौर में वर्ष 2000 में मोहनलाल सेमवाल ने अपने पिता के बाद मंदिर के कुल पुरोहित का दायित्व संभाला। सेमवाल के ही शब्दों में 'उसी साल मैंने चार धाम समेत देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा की। मैंने देखा यहां श्रद्धालुओं में किसी तरह का भेदभाव नहीं था।' यह देख सेमवाल के मन ही मन तय किया कि ऐसा बदलाव जौनसार में भी लाना होगा।
    संकल्प लिया तो संघर्ष भी शुरू हो गया। वर्ष 2001 में उन्होंने उप जिलाधिकारी चकराता की अध्यक्षता में श्री महासू देवता मंदिर प्रबंधन समिति के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि इसके लिए उन्हें अपने समाज में विरोध भी झेलना पड़ा। मई 2004 में उन्होंने मंदिर में महानुष्ठान का आयोजन किया और सदियों से चली आ रही पशुबलि पर रोक लगाने के साथ ही दलितों व महिलाओं के लिए प्रवेश खोल दिया।


    व्यवस्थाएं बदलीं तो रूढ़िवादी लोग नाराज हो गए। ऐसे लोग एकजुट हुए और सेमवाल की कोशिशों पर पानी फेर पुरानी व्यवस्थाएं लागू करा दीं। बावजूद इसके सेमवाल ने हार नहीं मानी। लोगों को जागरूक करते रहे। आखिरकार वर्ष 2010 में उन्होंने चकराता की तत्कालीन एसडीएम इला गिरी की मदद से कुरीतियों पर अंतिम वार किया।
    एसडीएम की अध्यक्षता में मंदिर समिति की बैठक बुलाई गई और मंदिर के इतिहास में पहली बार समिति का विस्तार कर महिलाओं और दलितों को भी स्थान दिया गया। इस बैठक में तय किया गया कि पशुबलि प्रथा पर पूर्णत: बंद कर दी जाए। इसके अलावा महिलाओं और दलितों के लिए प्रवेश खोल दिया गया।

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    मैंद्रथ गांव के प्रतिष्ठित परिवार से तालुक रखने वाले 52 वर्षीय मोहलाल सेमवाल सात भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनका परिवार पुश्तैनी तौर पर महासू महाराज की सेवा में है। ऐसे में पिता के स्वर्गवास के बाद यह दायित्व उनके कंधों पर आया।
    दसवीं तक पढ़े-लिखे सेमवाल ने साबित कर दिया कि समाज को दिशा देने के लिए बड़े-बड़े कालेजों की डिग्री की जरूरत नहीं होती। जितनी कुशलता से वह पुरोहित का दायित्व निभाते हैं उतनी ही कुशलता से श्री महासू देवता मंदिर प्रबंधन समिति हनोल के सचिव के तौर भी कार्य करते हैं।
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