डेंगू पर हावी प्लेटलेट्स का 'फीवर', निजी अस्पतालों में मची लूट
निजी नर्सिंग होम पैसा बनाने के फेर में मरीजों को आवश्यकता न होने पर भी प्लेटलेट्स चढ़ा रहे हैं। इससे तीमारदार परेशान हो रहे हैं। ...और पढ़ें

देहरादून, [जेएनएन]: डेंगू है, प्लेटलेट्स कम हो गए हैं। मरीज को जल्दी भर्ती कीजिए और तुरंत प्लेटलेट्स का इंतजाम करिए। निजी नर्सिंग होम के डॉक्टरों की जुबां पर आजकल यही जुमला चढ़ा हुआ है। पैसा बनाने के फेर में यहां मरीजों को आवश्यकता न होने पर भी प्लेटलेट्स चढ़ा दी जा रही हैं। इससे तीमारदार तो परेशान हो ही रहे हैं। साथ ही ब्लड बैंकों पर दबाव बढ़ गया है।
चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या 20 हजार से कम होने पर ही इन्हें चढ़ाने की जरूरत होती है। हालांकि, प्लेटलेट्स 30 हजार से कम होने पर मरीज की निगरानी बढ़ा देनी चाहिए, क्योंकि ब्लीडिंग की आशंका बढ़ जाती है।
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इसके उलट निजी अस्पतालों में डेंगू पीड़ित मरीज के भर्ती होते ही उसे प्लेटलेट्स चढ़ाना शुरू कर दिया जा रहा है। इससे बिना वजह प्लेटलेट्स की डिमांड बढ़ गई है और तीमारदार यहां-वहां भटकने को मजबूर हैं। इसके चलते कई बारगी तो मरीज को जरूरत होने पर भी समय से प्लेटलेट्स नहीं मिल पाती। इतना ही नहीं प्लेटलेट्स के लिए मनमाना शुल्क भी वसूला जा रहा है।
तीन जनपदों में ब्लड बैंक नहीं
डेंगू जितनी तेजी से बढ़ा है, ब्लड बैंकों की स्थिति उतनी ही कमजोर है। कहने के लिए प्रदेश में 28 ब्लड बैंक संचालित हैं, लेकिन अधिकांश मैदानी जनपदों में ही हैं। जबकि तीन जनपद चंपावत, बागेश्वर व टिहरी में ब्लड बैंक हैं ही नहीं। कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट की स्थिति और भी बुरी है।
वर्तमान में आठ कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट हैं, जिनमें छह अकेले देहरादून में हैं। ऐसे में यहां के ब्लड बैंक अतिरिक्त दबाव में हैं। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीजों को किन दुश्वारियों से गुजरना पड़ता होगा।
रक्तदान में कमी से बढ़ी दिक्कत
लगातार छुट्टियां होने के कारण इस समय स्वैच्छिक रक्तदान में भी खासी कमी आई है। ब्लड बैंकों को खून उपलब्ध कराने में सबसे ज्यादा योगदान स्कूल-कॉलेज के युवाओं का रहता है। छुट्टी के चलते ज्यादातर युवा बाहर हैं, जिससे यह स्थिति पैदा हुई है। कुछेक ब्लड ग्रुप को लेकर तो बहुत ही ज्यादा मारामारी है।
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किसी भी ग्रुप के चढ़ा सकते हैं प्लेटलेट्स
यह जरूरी नहीं कि मरीज को समान ब्लड ग्रुप की प्लेटलेट्स ही चढ़ाई जाए। विशेषज्ञ बताते हैं कि जानकारी के अभाव में डॉक्टर ग्रुप की डिमांड करते हैं। सभी जानते हैं कि समान ग्रुप का ब्लड मिलने में समय लग जाता है। जिसका डब्ल्यूबीसी काउंट कम होता है, उसी को प्लेटलेट्स चढ़ाया जाता है। वो भी तब जब अचानक से काउंट काफी कम हो जाए। लेकिन, इस पर ध्यान देने की बजाय डॉक्टर हरेक को प्लेटलेट्स चढ़ा दे रहे हैं। इस वजह से डिमांड बढ़ती जा रही है।
सेपरेशन न होने पर खतरा
प्लेटलेट्स के लिए ग्रुप जरूरी नहीं है, लेकिन अगर ब्लड का सेपरेशन इनकंपलीट रहा और उसमें ब्लड की मात्रा मिली रह गई तो वो रिएक्शन कर सकता है। इसलिए जरूरी है कि पूरी जांच के बाद ही प्लेटलेट्स चढ़ाई जाएं।
डेंगू ही नहीं, वायरल में भी घटते हैं प्लेटलेट्स
दून में डेंगू के बढ़ते मामलों के कारण हर व्यक्ति दहशत में है। हालात ये हैं कि बुखार आते ही लोग खून की जांच कराने पैथोलॉजी पहुंच रहे हैं। अगर खून की जांच में प्लेटलेट्स थोड़ी भी कम आई तो लोग खौफजदा हो जाते हैं और खुद को डेंगू पीड़ित मानने लगते हैं। आपको बता दें कि प्लेटलेट्स कम होने का मतलब डेंगू कतई नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि वायरल फीवर समेत तमाम संक्रमणों व बीमारियों में भी प्लेटलेट्स तेजी से गिरते हैं। ऐसे में बिना वजह डेंगू का भ्रम पालना सही नहीं है।
सीनियर फिजीशियन डॉ. केपी जोशी ने बताया कि कई ऐसे भी केस देखने में आए हैं, जिनमें वायरल फीवर की वजह से प्लेटलेट्स कम हुईं। इसके अलावा वायरस से होने वाली बीमारियों मसलन पीलिया, टायफाइड में भी प्लेटलेट्स कम हो जाती हैं। फिजीशियन डॉ. प्रवीण पंवार बताते हैं कि ऐसे मरीज भी आ रहे हैं, जिनमें डेंगू के अलावा अन्य बीमारियों के चलते प्लेटलेट्स कम हो रही हैं।
क्या है प्लेटलेट्स
यह खून का वह तत्व है, जो खून का थक्का जमाने का काम करता है। इसकी संख्या सामान्य तौर पर डेढ़ से चार लाख तक होती है। प्लेटलेट्स 10 हजार से कम या 10 लाख से ज्यादा होने पर नाक, छोटी व बड़ी आंत और त्वचा से ब्लीडिंग होने लगती है, जिससे मरीज की मौत भी हो सकती है। डेंगू में बहुत तेजी से प्लेटलेट्स कम होती हैं। हालांकि, अन्य बीमारियों में प्लेटलेट्स कम होने की बात भी डॉक्टर मान रहे हैं।

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