उत्तराखंड में पीडीएफ पर आमने-सामने संगठन और कांग्रेस सरकार
उत्तराखंड में प्रदेश कांग्रेस और सरकार के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। अब पीडीएफ को लेकर दोनों के बीच तकरार सामने आई है।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड में कांग्रेस और पीडीएफ के आपसी संबंधों को लेकर विवाद और गहराने के आसार हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत भले ही पीडीएफ और कांग्रेस के भविष्य के सवाल को टालना ही सियासी तौर पर मुफीद मानते हों, लेकिन खुद के भविष्य को अधर में लटकता देख पार्टी के दिग्गज नेता तत्काल समाधान पर टकटकी बांधे हैं।
इस मुद्दे पर प्रदेश में कांग्रेस के भीतर ही मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बीच खींचतान की जानकारी पार्टी हाईकमान को भी है। लिहाजा हाईकमान का जोर भी फूंक-फूंक कर ही कदम आगे बढ़ाने पर है।
विधानसभा चुनाव का वक्त नजदीक आने के साथ ही प्रदेश कांग्रेस की बेचैनी ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। नौ विधायकों की बगावत के बाद सियासी संकट मंडराने पर पीडीएफ जहां सरकार का सबसे अधिक विश्वसनीय सहयोगी साबित हुआ, वहीं संगठन ने भी प्रदेशभर में सरकार के पक्ष में माहौल बनाने में कसर नहीं छोड़ी।
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लेकिन, संकटमोचक साबित हुए पीडीएफ को लेकर मुख्यमंत्री के रुख ने संगठन में हलचल पैदा कर दी है। ये हलचल खासतौर पर टिहरी और उत्तरकाशी जिलों को लेकर है। टिहरी जिले में पीडीएफ से जुड़े पर्यटन मंत्री दिनेश धनै टिहरी विधानसभा सीट, शिक्षा मंत्री प्रसाद नैथानी देवप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक हैं।
धनै प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और नैथानी पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण को पिछले विधानसभा चुनाव में हरा चुके हैं। वहीं उत्तरकाशी जिले की यमुनोत्री सीट से उक्रांद विधायक और शहरी विकास मंत्री प्रीतम सिंह ने पूर्व विधायक केदार सिंह रावत को हराया था।
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अब अगर पीडीएफ के इन मंत्रियों को कांग्रेस का टिकट मिलता है तो पार्टी के दिग्गजों का पत्ता तो कटेगा ही, उनकी सियासी जमीन भी खतरे में पड़नी तय है। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस के उक्त नेता चाहते हैं कि पीडीएफ के कांग्रेस से जुडऩे और उन्हें टिकट दिए जाने को लेकर स्थिति जल्द साफ हो।
मुख्यमंत्री हरीश रावत फिलहाल इस मुद्दे को चुनाव तक तूल देने के पक्ष में नहीं हैं। वह प्रदेश संगठन को नसीहत भी दे चुके हैं कि संकट के साथी रहे पीडीएफ के बारे में फैसला लेने का हक हाईकमान को है या उन्हें है।
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