Move to Jagran APP

उत्तराखंड में पीडीएफ पर कांग्रेस सरकार और संगठन में शीतयुद्ध

मुश्किल सियासी हालात में कांग्रेस के साथ डटकर खड़ी रही प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) को लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और मुख्यमंत्री के बीच शीतयुद्ध गहराता जा रहा है।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 17 Sep 2016 05:57 PM (IST)Updated: Sun, 18 Sep 2016 07:15 AM (IST)

देहरादून, [भानु बंगवाल]: मुश्किल सियासी हालात में कांग्रेस के साथ डटकर खड़ी रही प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) को लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और मुख्यमंत्री के बीच शीतयुद्ध गहराता जा रहा है। पिछले एक पखवाड़े में पीडीएफ के भविष्य में कांग्रेस के साथ रहने अथवा नहीं रहने के प्रश्न पर जिस तरह कांग्रेस नेता भिड़े हैं उससे स्पष्ट संकेत हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में पीडीएफ कांग्रेस के नेताओं के बीच शुरू हुई रार को और बढ़ा सकता है। मुख्यमंत्री के बयान पीडीएफ के पक्ष में हैं तो प्रदेश अध्यक्ष लगातार पीडीएफ पर निशाना साध रहे हैं।
कांग्रेस की उत्तराखंड में सरकार बनाने में पीडीएफ के छह विधायकों की अहम भूमिका रही है। इतना ही नहीं, बल्कि जब कांग्रेस के नौ विधायकों ने बगावत कर हरीश रावत सरकार को संकट में डाल दिया था, तब भी पीडीएफ के सभी विधायक कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़े रहे। इन विधायकों के बाल पर कांग्रेस दोबारा से सरकार बनाने में कामयाब रही।

loksabha election banner

पढ़ें-पीडीएफ पर निर्णय की ताकत हाई कमान या मेरे पासः हरीश रावत
अब पांच महीने बाद होने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव को लेकर पीडीएफ की भूमिका तय होनी है। अहम सवाल यह है कि यह विधायक कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ेंगे अथवा कांग्रेस में शामिल होकर उसके टिकट में मैदान में उतरेंगे। पीडीएफ के दो विधायक बसपा से हैं। ऐसे में यह स्पष्ट कि यह दोनों विधायक बसपा से ही भाग्य आजमाएंगे। एक विधायक उक्रांद से हैं और शेष तीन विधायक पिछली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बागी के रूप में चुनाव जीते हैं।

पढ़ें: यदि भाजपा दस हजार करोड़ दे तो गैरसैंण को बना देंगे राजधानीः किशोर
सारा मसला इन चार विधायकों को लेकर ही उलझा है। समय-समय पर यह कोशिशें होती रही हैं कि इन चारों विधायकों को विधिवत कांग्रेस में शामिल करा लिया जाए, लेकिन दलबदल की बाध्यता के चलते ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि कांग्रेस की ओर से हमेशा यही कहा जाता रहा कि यह विधायक उन्हीं की पार्टी की विचारधारा का समर्थन करने वाले हैं।
उत्तराखंड में राज्यसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार और संगठन के बीच जो मतभेद पैदा हुए हैं, उसकी जद में यह चारों विधायक भी आ गए हैं। हरीश रावत इन चारों विधायकों को कांग्रेस के साथ जोड़े रखने के लिए इस तरह के समझोते कर रहे हैं जो कांग्रेस के आला नेताओं को भी रास नहीं आ रहे हैं।

पढ़ें: पर्यटन मंत्री दिनेश धनै का इस्तीफे से इन्कार, इसे बताया साजिश और अफवाह
चुनावी बाध्यता के चलते कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने पीडीएफ को लेकर सीधा मोर्चा खोल लिया है। उनका कहना है कि चुनाव से पहले पीडीएफ के इन चार विधायकों को लेकर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए। यदि ये चारों विधायक कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं तो इस पर अभी से होमवर्क पूरा हो जाना चाहिए। ताकि चुनाव के समय टिकट वितरण के अहम मौके पर ये चारों विधायक भी कांग्रेस अनुशासन के दायरे में ही गिने जाएं।

यदि इन चारों विधायकों से कांग्रेस किसी तरह का चुनावी गठबंधन करने की सोच रही है तो ऐसी स्थिति में टिकट के दावेदार अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ बातचीत का क्रम शुरू कर देना चाहिए। यदि ये विधायक कांग्रेस से इतर चुनाव लड़ते हैं तो सरकार में इन विधायकों का मंत्री पद पर बने रहना कांग्रेस के लिए मुफीद नहीं होगा।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की इस मुहिम को मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहीं भी समर्थन नहीं मिल रहा है। हरीश रावत का सीधा सा मानना है कि पीडीएफ ने कांग्रेस की सरकार बचाई है और ऐसे में उनके साथ बेहतर सियासी व्यवहार होना चाहिए। हांलाकि मुख्यमंत्री यह साफ नहीं कर रहे हैं कि आखिर पीडीएफ विधायकों को वह किस सियासी पैमाने से आंकना चाहते हैं। संकेत साफ हैं कि मुख्यमंत्री आखिर समय में पीडीएफ को लेकर अपनी सुविधा के अनुसार सियासी समीकरण बनाएंगे। जिसके लिए मुख्यमंत्री जाने भी जाते हैं।

पढ़ें-भ्रष्ट उत्तराखंड सरकार को उखाड़ फेंको: श्याम जाजू
दूसरी ओर पीडीएफ के चार विधायक भी कांग्रेस से स्थिति स्पष्ट करने के पक्ष में हैं। यह चारों विधायक कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं। बशर्ते कांग्रेस उन्हें उनके मनपसंद विधानसभा क्षेत्र से टिकट देने का वादा निभाए। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इन चारों विधायकों से टिकट को लेकर विस्तृत बातचीत की है और कहीं न कहीं यह विश्वास भी दिलाया है कि वह उनके साथ मजबूती से खड़े रहेंगे, लेकिन यह रणनीति कांग्रेस प्रदेश संगठन के साथ साझा करने के लिए मुख्यमंत्री तैयार नहीं हैं।
यही सारे गतिरोध की जड़ है। मुख्यमंत्री अकेले चलो की राह पर हैं तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हर मामले में सर्वसम्मति चाहते हैं। ताकि कांग्रेस के अनुशासित और पुराने कार्यकर्ताओं का मनोबल बना रहे।
पढ़ें: उत्तराखंड: सीएम हरीश रावत के विरोध में उतरे भाजपाई नेता, पुलिस ने भांजी लाठियां


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.