महिला दिवसः पिता की प्रेरणा से चोटियों को लांघ रही हैं ये बेटियां
पर्वतारोही जुड़वां बहनें नुंग्शी और ताशी ने भी पिता को प्रेरणा मान एवरेस्ट से लेकर अंटार्कटिका और अफ्रीका तक चोटियों पर झंडे गाड़ दिए। शिखर चूमने में ये बेटियां बेटों से कम नहीं।
देहरादून, [गौरव गुलेरी]: सोनीपत जिले (हरियाणा) में आंवली गांव के कर्नल (अप्रा) वीएस मलिक के घर वर्ष 1992 में जब दो जुड़वां बेटियां पैदा हुईं तो परिवार को बेटा न होने का मलाल था। बावजूद इसके परिजनों को बताए बिना मलिक ने परिवार नियोजन का फैसला लिया और तय किया कि बेटियों को शिखर पर पहुंचाएंगे।
पर्वतारोही जुड़वां बहनें नुंग्शी और ताशी ने भी पिता को प्रेरणा मान एवरेस्ट से लेकर अंटार्कटिका और अफ्रीका तक चोटियों पर झंडे गाड़ दिए। गिनीज बुक में नाम दर्ज करा साबित कर दिया कि शिखर चूमने में बेटियां बेटों से कम नहीं।
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देहरादून के पास जोहड़ी गांव में बस चुके कर्नल मलिक बीते दिनों को याद कर भावुक हो जाते हैं। उन्हीं के शब्दों में 'मैं ऐसे परिवेश से हूं जहां बेटियों को पराया धन माना जाता है। मेरे पिता चंद्र सिंह व मां प्रेम कौर दोनों शिक्षक थे।
बावजूद इसके बहनों को ही ज्यादा काम करना पड़ता था। इस सामाजिक ताने-बाने में मैं भी यही सोच रखता था। सेना में बतौर अधिकारी शामिल होने के बाद भी इसमें फर्क नहीं आया। मेरी कामना भी यही थी कि पहली संतान लड़का हो। जब बेटियों ने जन्म हुआ तो मन में अंतद्र्वंद्व की स्थिति बन गई। फिर मैंने इस सोच को बदलने की ठानी। मलिक गर्व से कहते हैं कि आज मैं कहता हूं कि मेरी बेटियां बेटों से बढ़कर हैं।
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ताशी ने पूछा क्यों
कर्नल मलिक के अनुसार उन्होंने कभी भी बच्चों को पारंपरिक तरीके से शिक्षा-दीक्षा दिलाने की नहीं सोची। वह बताते है कि गर्मियों की छुट्टियों में जब वे देहरादून के स्थित आवास में थे तो उन्होंने घर में सलाह किए बगैर ही बच्चों का एडमीशन उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में करा दिया।
यह 2010 की बात है। इस बात का पता जब ताशी को चला तो उसने सवाल किया 'हमसे पूछा क्यों नहीं। हालांकि वे तीन माह का कोर्स करने उत्तरकाशी चलीं गईं। जब लौट कर आईं तो उनका व्यक्तित्व बदल चुका था।
माउंट एवरेस्ट करना है फतह
कर्नल मलिक उस दिन को याद करते हैं जब दोनों बहनों ने उनसे एवरेस्ट फतह की इच्छा जाहिर की। मलिक कहते हैं कि यह सुनते ही पत्नी सन्न रह गईं। उन्होंने तो बच्चों को कसम तक दिला दी कि वहां कोई नहीं जाएगा। बात ऐसे ही रह गई।
मुझे एक अभियान पर दो साल के लिए अफगानिस्तान जाना पड़ा। जब लौटा तो दोनों बहनें एडवांस कोर्स के लिए नेहरू पर्वतारोहण संस्था जा रहीं थीं। हम भी उनके साथ गए। वहां प्रशिक्षकों से बातचीत के बाद पत्नी भी एवरेस्ट अभियान पर सहमत हो गईं।
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पत्नी के गहने रखे गिरवी
मलिक कहते हैं कि नुंग्शी-ताशी के सपने को पूरा करना आसान नहीं रहा। जब माउंट एवरेस्ट अभियान की बात आई तो उसके लिए कम से कम 50 लाख रुपये की जरूरत थी। हमारे देश में पर्वतारोहण को खेलों में शामिल नहीं किया गया न ही इसके लिए कोई फंडिंग की जाती है। इसीलिए पत्नी के गहने भी गिरवी रखने पड़े। परिवार से भी मदद ली। बाद में कुछ संस्थानों व लोगों ने आगे बढ़कर सहायता की।
तीन साल में जीत ली दुनिया
कर्नल मलिक बताते है कि नुंग्शी-ताशी ने न सिर्फ रिकॉर्ड समय में दुनिया के सात सर्वोच्च शिखरों को फतह किया बल्कि पहली बार में स्कीइंग करते हुए दक्षिण व उत्तरी धु्रव पर विजय पताका फहरायी। वह कहते हैं सफर जारी है। नुंग्शी-ताशी का इरादा अब अपनी बायोग्राफी लिखने का है। इसके साथ ही वह जेंडर इक्वालिटी का संदेश देना चाहते हैं।
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शिखर पर नुंग्शी-ताशी
19 मई 2013 : दुनिया के सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट
22 अगस्त 2013 : यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट अल्ब्रास
29 जनवरी 2014 : साउथ अमेरिका में माउंट अकांकागुआ
19 मार्च 2014 : माउंट कारसटेंज पिरामिड (ऑस्ट्रेलिया)
04 जून 2014 : माउंट मैक्नली (उत्तरी अमेरिका)
-16 दिसंबर मांउट विनसन मैसिव (अंटार्कटिका)
28 दिसंबर 2014 :दक्षिण ध्रुव अभियान
12 अप्रैल 2015 : उत्तरी ध्रुव अभियान
तीन जुलाई 2015: माउंट किलीमंजारो (अफ्रीका)
रिकॉर्ड बुक में नुंग्शी-ताशी
-एवरेस्ट फतह करने वाली पहली जुड़वां बहनें (गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्डस)
-सात चोटियां फतेह करने वाली पहली जुड़वां बहनें (गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस)
-सबसे युवा महिलाएं जिन्होंने एडवेंचरर ग्रैंड स्लेम किया पूरा (गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस)
-राष्ट्रीय तेनजिंग नॉर्गे एडवेंचर अवार्ड से सम्मानित
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