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    अब अगर कॉलेज ने स्‍टूडेंट्स को प्रोस्पेक्टस बेचा तो खैर नहीं

    By Gaurav KalaEdited By:
    Updated: Wed, 14 Dec 2016 02:30 AM (IST)

    कई शिकायतों के मिलने के बाद यूजीसी ने निर्णय लिया कि अगर कोई उच्‍च शिक्षण संस्‍थान स्‍टूडेंट्स को प्रोस्‍पेक्‍टस बेचता है तो उस संस्‍थान की खैर नहीं।

    देहरादून, [अनिल उपाध्याय]: उच्च शिक्षा संस्थान अब प्रवेश संबंधी जानकारी देने के नाम पर मोटी रकम लेकर प्रवेश विवरणिका (प्रोस्पेक्टस) नहीं बेच पाएंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने छात्रहित के मुद्दों की अनदेखी पर सख्त रवैया अपनाते हुए निर्देश जारी किए हैं। यूजीसी ने प्रवेश जारी नहीं रखने की स्थिति में फीस वापस करने, प्रवेश के समय मूल दस्तावेजों को बंधक बनाने जैसी मामलों की शिकायतों पर संस्थानों की मान्यता रद करने का प्रावधान किया है।
    देशभर के उच्च शिक्षा संस्थानों खासतौर पर निजी संस्थानों में छात्रों का शोषण आम बात है। इसकी हजारों शिकायतें हर साल यूजीसी और अन्य नियामक संस्थानों को मिल रही हैं। इन शिकायतों को देखते हुए यूजीसी ने 'रेमिटेंस एंड रीफंड ऑफ फीस एंड अदर स्टूडेंट सेंट्रिक इश्यूज' पर यूजीसी की 519 वीं बैठक में मुहर लगी।

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    यूजीसी ने इसे वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है और देशभर के विश्वविद्यालयों को इस संबंध में पत्र भी भेज दिए गए हैं। पत्र में यूजीसी के सचिव प्रो. जसपाल एस. संधू ने कहा कि इस तरह के मामलों में आयोग सख्त कार्रवाई करेगा। छात्र हित किसी भी संस्थान में सर्वोपरि हैं। ऐसे में छात्रों का आर्थिक, मानसिक शोषण किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से आग्रह किया कि दिशा निर्देश से सभी विभागों और संबद्ध संस्थानों को अवगत करा दें और इनका सख्ती से पालन सुनिश्चत करें।
    ये हैं गाइडलाइन
    -कोई भी संस्थान छात्रों को प्रवेश विवरणिका खरीदने के लिए बाध्य नहीं करेगा। छात्रों की इच्छा है कि वे डिजिटल फॉरमेट में संबंधित संस्थान की वेबसाइट से उक्त जानकारी प्राप्त करें या विवरणिका खरीदें।
    -सभी संस्थानों को अपनी वेबसाइट पर तमाम जानकारी अपलोड करनी होगी। इसमें संस्थान का स्टेटस, संबद्धता, नैक की रेटिंग, भौतिक संसाधनों की जानकारी, कोर्सवार सीटों की जानकारी, शिक्षकों की जानकारी, आय का साधन, ऐकेडमिक और एग्जीक्यूटिव काउंसिल की जानकारी आदि शामिल होगी।
    -कोई भी संस्थान प्रवेश के समय केवल छात्रों को मूल शैक्षिक दस्तावेजों की जांच कर सकता है, लेकिन दस्तावेजों को बंधक नहीं बना सकता। छात्रों द्वारा स्व सत्यापित दस्तावेज पूरी तरह से स्वीकार्य हैं और इन्हें स्वीकार किया जाए।
    -दस्तावेजों को बंधक रखने का सीधा आशय छात्रों को प्रवेश छोडऩे की स्थिति में ब्लैकमेल करने की मंशा से जुड़ा है। इस तरह के मामले में सख्त कार्रवाई का प्रावधान है और आयोग इसे सख्ती से लागू करेगा।

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    -संस्थान छात्रों से केवल एक सेमेस्टर या वर्ष (कोर्स पर निर्भर) का अग्र्रिम शुल्क ही छात्रों से वसूल सकते हैं। पूरे कोर्स की फीस एक बार में लेना अवैध है। इससे छात्र का कोर्स को बीच में छोड़कर जाने का अधिकार भंग होता है। सीबीसीएस व्यवस्था में छात्रों का एक संस्थान से दूसरे बेहतर संस्थान में जाने का रास्ता खुला है।
    -छात्र प्रवेश की अंतिम तिथि से 15 दिन पहले तक जमा किए गए शत-प्रतिशत शुल्क को वापस लेने का हकदार है। वहीं, प्रवेश की अंतिम तिथि के 15 दिन के भीतर 80 फीसद शुल्क संस्थान को वापस करना होगा। प्रवेश की अंतिम तिथि से 30 दिन के अंदर संस्थान छोड़ने पर 50 फीसद शुल्क वापसी का प्रावधान है।
    -सभी विश्वद्यालयों को इन नियमों के पालन और आपत्तियों के निस्तारण के लिए ग्रीवांस रिड्रेसल कमेटी (जीआरसी) अनिवार्य रूप से गठित करनी होंगी। यह कमेटी इन नियमों के अधीन तमाम शिकायतों, आपत्तियों का निस्तारण प्राथमिकता के आधार पर करेगी।
    -केंद्रीय, राज्य, डीम्ड समेत सभी प्रकार के विश्वविद्यालय, संबद्ध संस्थानों, संघटक संस्थानों और ऑफ कैंपस पर ये नियम लागू होंगे। बैठक में लिए गए फैसले तत्काल प्रभाव से लागू हो गए हैं। विश्वविद्यालय यूजीसी की वेबसाइट से ये दिशा निर्देश प्राप्त कर अपने नियमों में बदलाव कर लें और तमाम आपत्तियों का निस्तारण इनके अनुसार किया जाए।

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    सजा का प्रावधान
    उपरोक्त नियमों की अवहेलना पर यूजीसी ने संस्थानों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया है। शिकायतें मिलने पर इन्हें जीआरसी के माध्यम से परखा जाएगा। इसके बाद अगर कोई संस्थान दोषी पाया जाता है तो संस्थान को मान्यता प्रदान करने वाली संस्थाओं को पत्र भेज इसकी जानकारी दी जाएगी। ऐसे संस्थानों की मान्यता रद किए जाने की सिफारिश भी की जाएगी।

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