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    यहां भगवान शिव को मिली थी ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति, अब करते हैं पिंडदान

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Sun, 18 Sep 2016 05:30 AM (IST)

    उत्‍तराखंड के बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल में भागवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। यहां अब लोग पिंडदान करते करते हैं।

    देहरादून, [सुनील नेगी]: उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है, जहां पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हम बात कर रहे हैं चमोली जनपद के बदरीधाम स्थित ब्रहमकपाल की। मान्यता है कि यहां भागवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। आइए जानते हैं।

    चमोली जनपद में बदरीनाथ धाम में अलकनंदा के तट पर ब्रहमकपाल ऐसा स्थान है, जहां पिंडदान करने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। ऐसी मान्यता है कि बिहार में गया जी में पितर शांति मिलती है किंतु ब्रह्मकपाल में मोक्ष मिलता है। यहां पर पितरों का उद्धार होता है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मकपाल में तर्पण करने से पितरों को मोक्ष, मुक्ति मिलती है। यहां पिंडदान व तर्पण करने के बाद श्राद्धकर्म व अन्य जगह पिंडदान की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

    पितृदोष से मिलती मुक्ति
    अक्षय तृतीया से दीपावली तक बद्रीनाथ धाम के समीप ही ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के निमित्त पिंडदान व तर्पण का विधान है। इसके अलावा मई से अक्टूबर-नवंबर तक यहां सहज रूप से पहुंचा जा सकता है और पितरों के निमित्त पितृ दोष मुक्ति करा सकते हैं।

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    रविवार को करने से आरोग्य, सोमवार को सौभाग्य...
    ऐसी भी मान्यता है कि अपने पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक ब्रह्मकपाल में रविवार को करने से आरोग्य, सोमवार को सौभाग्य, मंगलवार को विजय, बुधवार को कामा सिद्धि, गुरुवार को धनलाभ और शनिवार के दिन पितृशांति करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण में ब्रह्मकपाल पितृ मोक्ष के लिए लिखा है- ब्रह्मकपाल में जो अपने पितरों के निमित्त स्वयं या कोई परिवार का सदस्य पिंडदान व तर्पण करता है तो अपने कुल के सभी पितर मुक्त होकर ब्रह्मलोक को जाते हैं। इसमें कोई संशय नहीं है। पितर मोक्ष के बाद श्राद्धकर्म की आवश्यकता नहीं है।

    भगवान शिव को मिली थी ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति
    पुराणों में उल्लेख मिलता है कि एक बार ब्रह्मा जी अपनी मानस पुत्री संध्या पर काम-मोहित हो गए। उनके इस कृत्य को देखकर उनके मानस पुत्र मरीचि और अन्य ऋषियों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से ब्रह्मा जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया। तभी से ब्रह्मा चतुर्मुखी कहलाने लगे, क्योंकि इस घटना से पहले उनके पांच सिर थे। तभी एक दिव्य घटना हुई। ब्रह्मा जी का वह पांचवां सिर भगवान शिव के हाथ से जा चिपका और भगवान महादेव को ब्रह्म हत्या का दोष लगा।

    भगवान शिव इस पाप से मुक्ति पान के लिए अनेक तीर्थ स्थानों पर गए, लेकिन पाप से मुक्ति नहीं मिली। अपने धाम कैलास जाते समय उन्होंने बद्रीकाश्रम में अलकापुरी कुबेर नगरी से आ रही मां अलकनंदा में स्नान किया और बद्रीनाथ धाम की ओर बढ़ने लगे। तभी एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं नीचे गिर गया। बद्रीनाथ धाम के समीप जिस स्थान पर वह सिर (कपाल) गिरा वह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और भगवान देवाधिदेवमहादेव को इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।

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    पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें
    पितृपक्ष में सूर्य दक्षिणायन होता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है। कहा जाता है कि इसीलिए पितर अपने दिवंगत होने की तिथि के दिन, पुत्र-पौत्रों से उम्मीद रखते हैं कि कोई श्रद्धापूर्वक उनके उद्धार के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध करे लेकिन ऐसा करते हुए बहुत सी बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है। जैसे श्राद्ध का समय तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे। यानी दोपहर के बाद ही श्राद्ध करना चाहिए। सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। तैत्रीय संहिता के अनुसार पूर्वजों की पूजा हमेशा, दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करनी चाहिए। माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में दिशाएं देवताओं, मनुष्यों और रुद्रों में बंट गई थीं, इसमें दक्षिण दिशा पितरों के हिस्से में आई थी।

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    श्राद्ध पक्ष में पितरों के श्राद्ध के समय कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग और निषेध बताया गया है।

    1-श्राद्ध में सात पदार्थ- गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल महत्वपूर्ण हैं।
    2- तुलसी से पितृगण प्रलयकाल तक प्रसन्न और संतुष्ट रहते हैं। मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं।
    3-श्राद्ध सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र से या पत्तल के प्रयोग से करना चाहिए।
    4-आसन में लोहे का आसन इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
    5-केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।

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