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    किडनी ट्रांसप्लांट मामला: धर्मार्थ अस्पताल में हो रहा था अधर्म

    By raksha.panthariEdited By:
    Updated: Tue, 12 Sep 2017 10:43 PM (IST)

    उत्तराखंड में सिर्फ दो ही अस्पतालों के पास किडनी ट्रांसप्लांट का लाइसेंस है। इसके बावजूद गंगोत्री चैरिटेबल हॉस्पिटल में किडनी का ट्रांसप्लांट अवैध रूप से चल रहा था।

    किडनी ट्रांसप्लांट मामला: धर्मार्थ अस्पताल में हो रहा था अधर्म

    देहरादून, [जेएनएन]: हरिद्वार और देहरादून की सीमा पर चल रहे धर्मार्थ अस्पताल में अधर्म चल रहा था। कहने के लिए डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है, लेकिन यहां के डॉक्टर जो कुछ कर रहे थे वह किसी हैवानियत से कम नहीं। अस्पताल में संगठित रूप से किडनी की खरीद-फरोख्त का धंधा चल रहा था। स्वास्थ्य विभाग की जांच में यहां गुर्दा प्रत्यारोपण के सारे संसाधन मौजूद मिले। जबकि अस्पताल इसके लिए अधिकृत ही नहीं है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि प्रदेश में गुर्दा प्रत्यारोपण का लाइसेंस मात्र दो ही अस्पताल के पास है। एक श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल और दूसरा हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट। 

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    दरअसल, किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया इतनी भी सरल नहीं है। इसके लिए बाकायदा नियम बनाए गए हैं। जिसके तहत अधिकृत अस्पताल के पास एक अधिकारिक कमेटी होती है जो डोनेशन की इजाजत देती है। जीवित व्यक्ति द्वारा किडनी दान करने के मामले में दानदाता के पास मरीज से पारिवारिक संबंध का सुबूत होना जरूरी है। हर माह होने वाले किडनी ट्रांसप्लांट की जानकारी मूल्यांकन के लिए स्वास्थ्य विभाग को भेजना अनिवार्य है। किडनी ट्रांसप्लांट की पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाती है। किडनी देने के समय डॉक्टरों का एक पैनल दानकर्ता से इस बात की पड़ताल करता है कि कहीं उससे अवैध तरीके से तो किडनी नहीं ली जा रही है या फिर किसी दवाब में उससे किडनी ली जा रही हो। इसके लिए चिकित्सकों के एक पैनल का गठन किया जाता है। उसके आधार पर ही अंतिम फैसला होता है। 

    गंगोत्री चैरिटेबल अस्पताल में किडनी रैकेट का भंडाफोड़ होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने टीन सदस्य जांच टीम जांच के लिए अस्पताल भेजी। जिसमें नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. हरीश बसेरा, सर्जन डॉ. कुश ऐरन व एनेस्थेटिक डॉ. एसके वर्मा शामिल रहे। जिनकी जांच में इस बात की तस्दीक हुई है कि अस्पताल में लंबे वक्त से अवैध तरीके से गुर्दा प्रत्यारोपण किया जा रहा है। 

    अस्पतालों तक फैला ब्रोकरों का जाल 

    किडनी फेल होने वाले या किडनी की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को नियमित रूप से डायलिसिस के लिए अस्पताल जाना पड़ता है। जहां ब्रोकरों ने अपना जाल फैलाया हुआ है। वह इस किडनी रैकेट में एजेंट के तौर पर काम करते हैं। वह मरीज अस्पताल, और सबसे महत्वपूर्ण डोनर के बीच की कड़ी हैं। ब्रोकर न सिर्फ एक उपयुक्त ब्लड ग्रुप के डोनर की व्यवस्था करता है, बल्कि कानून की खामियों का फायदा उठाकर गलत ढंग से मरीज की फाइल बनाता है। अगर डोनर मरीज का नजदीकी रिश्तेदार दिखा दिया जाए तो फाइल को सिर्फ आंतरिक कमेटी से स्वीकृति की जरूरत होती है। ऐसे में पुलिस की अब इस नेटवर्क पर भी निगाह है। 

    किडनी के लिए मुंहमांगी रकम 

    पुलिस सूत्रों के मुताबिक किडनी की रकम ग्राहकों की हैसियत पर तय होती है। व्यापारिक घराने से ताल्लुक रखने वाले और विदेशों में नौकरी करने वाले कई रोगी अपनी जान बचाने के लिए किडनी के लिए मुंहमांगी रकम देने को तैयार हो जाते हैं। पुलिस अब उन रोगियों से भी संपर्क साध रही है जिन्हें बीते कुछ वक्त में किडनी उपलब्ध कराने का भरोसा दिया गया है। 

    ये हैं अंग प्रत्यारोपण के नियम 

    - अंग प्रत्यारोपण के लिए अस्पताल में दो तरह की कमेटियां होती हैं। 

    - नजदीकी रिश्तेदारों से अंगदान के लिए इंटरनल असेस्मेंट कमेटी होती है, जिसमें डॉक्टरों के अलावा सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं। 

    - दूर के रिश्तेदारों या परिचितों से अंगदान प्रत्यारोपण के लिए बाहरी कमेटी होती है। इस कमेटी में सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं। 

    - अंगदान प्रक्रिया के लिए लीगल दस्तावेजों के अलावा नोटरी से शपथ पत्र भी देना पड़ता है।

    - अंगदान प्रत्यारोपण में अस्पताल की कमेटी मरीज और डोनर का सत्यापन करने के बाद ट्रांसप्लांट की स्वीकृति देती है। 

    - कमेटी की स्वीकृति के  बिना डॅाक्टर प्रत्यारोपण नहीं कर सकते हैं। 

    तीन से दस साल सजा, 30 लाख से 1 करोड़ जुर्माना 

    अंगदान प्रत्यारोपण के लिए मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 बना हुआ है। वर्ष 2014 में इस अधिनियम में संशोधन के जरिए नई अधिसूचना जारी की गई। इस कानून के तहत अंगों की खरीद-फरोख्त करना गैरकानूनी धंधा है। इस नियम की अवहेलना व अंगों की खरीद-फरोख्त करने पर तीन साल से लेकर 10 साल तक की सजा और 30 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। 

    आसान नहीं है प्रत्यारोपण 

    - जब डॉक्टर स्पष्ट करता है कि गुर्दे ने काम करना बंद कर दिया है। 

    - कानूनी तौर पर रिश्तेदारों को दाता के रूप में चुना जाता है। या कोई अन्य सहमति से दान कर सकता है। 

    - दाता की जांच कर पता लगाया जाता है कि गुर्दा मरीज के अनुरूप है कि नहीं। 

    - पहले दाता की लैप्रोस्कोपी की जाती है। गुर्दे को बाहर निकालकर उसे संभालकर रखा जाता है। 

    - मरीज की ओपन सर्जरी की जाती है। इसके लिए रोशनी के साथ हवादार वातावरण की आवश्यकता होती है। 

    - ट्रांसप्लांट योग्य डॉक्टर, सर्जन, और यूरोलॉजिस्ट की मौजूदगी में होता है। 

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