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    'दलाल राज' में चल रहा देहरादून का हाईटेक आरटीओ दफ्तर

    By Gaurav KalaEdited By:
    Updated: Sun, 11 Dec 2016 06:15 AM (IST)

    हां, अगर आपने जेब से चंद नोट की 'पत्तियां' निकाल ली तो फिर कोई टेंशन नहीं। महज चंद मिनट में काम पूरा। टेंशन दूर करने के लिए मौजूद हैं दलाल।

    देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: कहने को तो यहां सबकुछ कायदे और कानून के मुताबिक होता है मगर ये कायदे भी आम इंसान के लिए हैं और कानून भी। ड्राइविंग लाइसेंस बनाना, रजिस्ट्रेशन कराना हो या परमिट, टैक्स प्रक्रिया। इधर से उधर बस धक्के खाते रहो। मदद करना तो बहुत दूर, कोई अधिकारी या कर्मचारी सीधे मुंह बात तक नहीं करेगा। चाहे धक्के खाते हुए आपको एक दिन हो जाए या हफ्ताभर।
    हां, अगर आपने जेब से चंद नोट की 'पत्तियां' निकाल ली तो फिर कोई टेंशन नहीं। महज चंद मिनट में काम पूरा। टेंशन दूर करने के लिए मौजूद हैं दलाल। दलाल ही चपरासी का काम संभाल रहे और यही बाबू का भी काम। संभागीय परिवहन कार्यालय दून का हाल तो ऐसा ही है। लाइसेंस व टैक्स की प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बाद भी दफ्तर में 'दलाल राज' हावी है।

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    सरकार के मुखिया हरीश रावत भले ही लाख दावे करें कि, सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगा, पर आरटीओ कार्यालय की तरफ शायद उनका ध्यान ही नहीं जाता। मुख्यमंत्री तो दूर खुद परिवहन मंत्री तक अपने विभाग में झांकने को राजी नहीं। अगर ऐसा होता तो शायद यहां चल रहे 'खेल' की कुछ परतें तो उधड़ती।
    तीन साल पूर्व यहां का सच परिवहन मंत्री के छापे में सामने आ चुका है, पर इसके बाद मंत्री ने भी यहां से आंखे फेर ली। ऐसे में यहां सबकुछ फिर पुराने ढर्रे पर आ गया। सुबह दफ्तर बाद में खुलता है, दलालों का काम दफ्तर के बाहर पहले शुरू हो जाता है। हाथ में कागजों की फाइल लिए दलाल दफ्तर खुलते ही फाइलें टेबल पर पहुंचानी शुरू कर देते हैं। इनकी 'हनक' सिर्फ इसी बात से लगाई जा सकती है, अफसर कोई भी हो, ये बेधड़क उनके कक्ष में घुसकर फाइल टेबल पर रख देते हैं।
    आम इंसान घंटों बाहर बैठकर अधिकारी से मिलने का इंतजार करता रहता है, लेकिन दलालों को 'मे-आइ-कम-इन' तक पूछने की जरूरत नहीं। अपने धंधे के साथ सरकारी कामों में भी दलालों का बोलबाला है। अफसरों के कमरों से सरकारी फाइलें दूसरे कक्षों में ले जाना हो या लिपिकीय कार्य में कर्मियों की मदद। दलाल हर जगह मौजूद दिखेंगे। जहां दलालों का ही बोलबाला हो तो आप खुद समझ लिजिए कि बगैर चढ़ावा चढ़ाए आपका काम कैसे होगा।

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    पूर्व अधिकारी का रिश्तेदार भी दलाल
    एक पूर्व अधिकारी ऐसे हैं, जिन्होंने अपने ही एक नजदीकी रिश्तेदार को यहां दलाल का काम सौंपा हुआ है। यह शख्स हर काम की सेटिंग करता है। बाकायदा रजिस्टर लिए दूसरे अधिकारियों के साथ चलता है और वाहन का पूरा ब्योरा नोट करता रहता है। इस शख्स को आरटीओ में 'बकरी' के नाम से जाना जाता है।

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    पूरा सिंडिकेट होता है पीछे
    दलालों के पीछे पूरा सिंडिकेट है। इनकी मौजूदगी सिर्फ आरटीओ कार्यालय तक ही नहीं रहती बल्कि पूरे जनपद में इनके एजेंट फैले रहते हैं। एजेंट हर सुबह जगह-जगह से फाइलें लाकर दलाल को देते हैं व शाम तक 'चढ़ावे' के 'खेल' से फाइलें पास हो जाती हैं।
    संभागीय परिवहन अधिकारी सुधांशु गर्ग के मुताबिक, कंप्यूटराइजेशन की वजह से पहले की अपेक्षा कार्यालय में दलाल प्रवृत्ति पर बड़े पैमाने पर अंकुश लगा है मगर यह अंकुश पूरी तरह तभी संभव होगा जब आम इंसान को कर्मचारी पूरा सहयोग करें। आम इंसान को जागरूक किया जाए और उन्हें यह भी समझाया जाए कि आपको किसी को रुपये देने की जरूरत नहीं। इसके बावजूद जो भी खामियां हैं, उन्हें जल्द दूर किया जाएगा।

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