उत्तराखंडः सियासी दलों में विश्वास का संकट, बहुमत की उम्मीद
एक पखवाड़े से देवभूमि उत्तराखंड में मौसम की तरह राजनीति भी करवट बदल रही है। अपने और पराए की पहचान का संकट बना हुआ है। कभी गलबहियां रहे नेता अब एक-दूसरे पर विश्वास करने को तैयार नहीं है।
देहरादून। एक पखवाड़े से देवभूमि उत्तराखंड में मौसम की तरह राजनीति भी करवट बदल रही है। अपने और पराए की पहचान का संकट बना हुआ है। कभी गलबहियां रहे नेता अब एक-दूसरे पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि कांग्रेस सतपाल महाराज के खेमें के चार विधायकों को पड़ोसी राज्य हिमाचल में सुरक्षित स्थानों पर भेजा है, वहीं अन्य विधायक देहरादून में ही जमे हुए हैं।
इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि कांग्रेस शासित राज्यों में ही रहकर कांग्रेस विधायक विपक्षी दलों की चिकनी चुपड़ी बातों से दूर रह सकते हैं। यही हाल भाजपा व कांग्रेस के बागी विधायकों का है।
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भाजपा के विधायक एकजुटता का दावा करते हुए भाजपा शासित राज्य राजस्थान के जयपुर में डेरा डाले रहे तो बागी विधायक दिल्ली में एकसाथ केवल इसलिए रहे कि कहीं उनके बीच कोई टूट न हो जाए। स्थिति यह रही कि होली जैसे त्योहार में भी कांग्रेस, भाजपा व बागी विधायकों ने एक-दूसरे पर विश्वास नहीं किया और एक ही स्थान पर जमे रहे।
(उत्तराखंड में इन दिनों चल रहे सियासी तूफान के बीच शुक्रवार को जॉलीग्रांट स्थित एसएचआरयू के दीक्षांत समारोह में निवर्तमान सीएम हरीश रावत, पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी और पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक कुछ इस अंदाज में मिले।)
सियासत की खूबसूरती देखिए कि जिस विश्वास का दावा करते आला से लेकर संगठन के नेता नहीं थक रहे हैं, उसी विश्वास का संकट उन्हें दौड़ाने पर लगा हुआ है। अब हाई कोर्ट के फैसले पर सभी दलों की नजरे हैं और कहीं न कहीं यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि कहीं दोबारा फ्लोर टेस्ट की स्थिति बनी तो उसके लिए अभी से इतनी पुख्ता तैयारी कर ली जाए, ताकी ऐन मौके पर कोई कोर कसर न रह जाए।
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उत्तराखंड के सियासी संकट का मौजूद परिदृश्य यह है कि तमाम आशंकाओं व आशाओं के बीच सभी उसी दावे पर कायम हैं जो एक पखवाड़े पहले उनकी रणनीति का हिस्सा था। निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत बहुमत साबित करने का दावा कर रहे हैं तो भाजपा सरकार को इस आधार पर अल्पमत मान रही है कि बागी विधायकों ने स्पष्ट तौर पर कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है।
भविष्य की रणनीति के लिए कांग्रेस ने अपने विधायकों के साथ ही पीडीएफ और बसपा के विधायकों की घेराबंदी को और मजबूत किया है। इस खेल में रावत के करीबी विधायक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस के विभीषणी सूत्रों की माने तो जिस भी विधायक पर रावत को संदेह है उसके संपर्क में हरीश रावत ने अपने सबसे करीबी विधायक को रखा है। ताकि उस विधायक के मूवमेंट के हर पल की जानकारी उन्हें मिलती रहे।
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भाजपा की रणनीति अपने विधायकों को लगातार आक्रमक बनाए रखने की है। यह सर्वविदित है कि भाजपा के घनसाली के विधायक भीमलाल आर्य इस खेल में हरीश रावत के सबसे बड़े सिपाहसलार बने हैं और खुल तौर पर कांग्रेस की पैरवी कर रहे हैं। ऐसे हालात में भाजपा उन सभी विधायकों पर कड़ी नजरें जमाए हैं जो पिछले दो वर्षों में कहीं न कहीं ढुलमुल नजर आते रहे।
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बागी पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में केवल यही रणनीति बनाई जा रही है कि किसी भी हालत में हरीश रावत दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। 14 दिन बाद एक दिन के लिए देहरादून लौटे कांग्रेस के नौ बागी विधायकों ने पहले विजय बहुगुणा के घर और उसके हरक सिंह रावत के घर बैठक की।
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सूत्रों की माने तो बैठक में बागियों ने सभी विकल्प खुले रखने की बात पर सहमति जताई। यही कारण है कि बागी यह कह रह हैं कि उनका विरोध केवल हरीश रावत से है। इससे बागियों ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि कांग्रेस से बागियों का कोई दुराव नहीं है। यह अलग बात है कि कांग्रेस प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी बागियों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी कर चुकी हैं।
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इस समय बागी दिल्ली में अपने सियासी संपर्कों का इस्तेमाल कर सरकार गठन की उलझी गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में जुटे हैं। उन्हें यह भी पता है कि सरकार बनाने और बिगाड़ने की चाबी उन्हीं के पास है।
कुल मिलाकर उत्तराखंड की जनता इस सियासी नाटक या नौटंकी को मूकदर्शक बनकर देख रही है और किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। जनता समझ रही है कि पूरी लड़ाई उनकी भलाई की नहीं, बल्कि नेताओं के अपने हितों की है।
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