उत्तराखंडः लेखानुदान पर हाईकोर्ट ने केंद्र से पांच अप्रैल तक मांगा जवाब
केंद्र सरकार के उत्तराखंड के लिए लेखानुदान अध्यादेश को निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत व निवर्तमान मंत्री इंदिरा हृदयेश ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश केएम जोजफ व न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से पांच अप्रैल तक जवाब मांगा है।
नैनीताल। केंद्र सरकार के उत्तराखंड के लिए लेखानुदान अध्यादेश को निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत व निवर्तमान मंत्री इंदिरा हृदयेश ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश केएम जोजफ व न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस देकर पांच अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही उत्तराखंड विधानसभा में विनियोग विधेयक पारित होने के संबंध में खंडपीठ ने तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के अधिवक्ता से भी पांच अप्रैल तक जवाब मांगा है। इन सभी मामले में अगली सुनवाई छह अप्रैल को होगी।
उधर, कांग्रेस नौ बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त करने संबंधित आदेश को चुनौती देती याचिका पर हाई कोर्ट में न्यामूर्ति यूसी ध्यानी की एकलपीठ ने 11 अप्रैल तक सुनवाई टाल दी। वहीं, निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग मामले में हाई कोर्ट की संयुक्त पीठ ने याचिका को पेंडिंग में डाल दिया।
लेखानुदान अध्यादेश पर हरीश रावत के अधिवक्ता की दलील सुनने के बाद खंडपीठ ने केंद्र सरकार से पांच अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा। इस पर केंद्र की ओर से असिस्टेंट सालिसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने जवाब दाखिल करने की अवधी को बढ़ाने की मांग की। इस पर कोर्ट ने जवाब दाखिल करने की अवधी बढ़ाने से इन्कार कर दिया।
इससे पहले हरीश रावत की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि 18 मार्च को सदन में विनियोग विधेयक पारित हो गया था। 19 मार्च को राज्यपाल ने हरीश रावत को 28 मार्च तक बहुमत साबित करने को कहा। 26 मार्च की रात को केंद्रीय केबिनेट की बैठक हुई। जैसे ही 27 मार्च को नौ बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी गई, राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
उन्होंने कहा कि राज्यपाल पारित विनियोग विधेयक को वापस नहीं भेज सकते हैं। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि विधानसभा अध्यक्ष ही इस मामले में सुप्रीम हैं। विधानसभा की कार्यवाही की स्क्रूटनी दूसरा तंत्र नहीं कर सकता है।
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हरीश रावत के अधिवक्ता ने कहा कि राज्यपाल सदन के सदस्य नहीं हैं। ऐसे में वह सदन में पारित बिल पर हस्तक्षेप नहीं कर सकते। केंद्र सरकार का लेखानुदान अध्यादेश अंबेडकर के संविधान का घोर उलंघन है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में 18 मार्च को बजट पारित होने को लेकर बने गतिरोध के बीच केंद्र सरकार ने राज्यपाल की रिपोर्ट पर राज्य के लिए लेखा अनुदान पारित किया। इस मसले पर निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह सवाल उठाया कि जब राज्य का बजट पारित हो चुका है तो लेखा अनुदान केंद्र सरकार कैसे पारित कर सकती है। इसी मसले पर हरिश रावत ने आज हाई कोर्ट में केंद्र सरकार को चुनौती दी थी।
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