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केदारनाथ आपदा के तीन साल बाद सरकार भूल गई 'विधवाओं' से किए वादे

केदारनाथ आपदा के तीन साल बाद राज्‍य सरकार विधवाओं से किए अपना वादा भूल गई। यह अपनी जिंदगी जैसे तैसेे गुजर कर रही हैं।

By sunil negiEdited By: Published: Fri, 17 Jun 2016 12:27 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jun 2016 09:03 PM (IST)

देहरादून। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद, रुद्रप्रयाग जनपद के दिउली-भानीग्राम ग्रामसभा का गांव 'विधवाओं का गांव' कहलाने लगा। मंदिर में पुजारी का काम करने वाले गांव के सभी 57 पुरूषों की बाढ़ में मौत हो गई। वे अपने पीछे अपनी औरतें छोड़ गए।
इनमें से 35 विधवाएं 15-16 जून की भयानक रात के बारे में बताते हुए गमगीन हो गईं, जब घातक बारिश ने केदारनाथ घाटी को तबाह कर दिया था। कई लोग यहां से चले गए, लेकिन जो विधवाएं बचीं हैं वे जैसे-तैसे अनिश्चितओं में खुद और अपने बच्चों का निर्वाह कर रही हैं। राज्य सरकार का रोजगार देने का वादा पूरा न होने का उन्हें सबसे ज्यादा दुख है।

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टाइम ऑफ इंडिया के अनुसार, अनुजा तिवारी, लोगों के खेतों में काम कर अपनी दो बेटियों को पढ़ रही है। उसने बताया कि मुआवजे के रूप में राज्य सरकार ने उन्हें सात लाख रुपये दिए। इसमें अधिकतर मैंने अपनी दोनों बेटियों की पढ़ाई पर खर्च कर दिए। सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। अनुजा ने कहा कि सीएम को अपना वादा पूरा करना चाहिए, क्योंकि हमारे पास आय का नियमित स्रोत नहीं है।
एक और विधवा सावित्री ने बताया कि क्षेत्र के गांवों में हस्तशिल्प जैसे लघु उद्योग विकसित करने की संभावनाएं हैं। मैं कंप्यूटर साक्षर हूं और किसी भी विभाग में आपरेटर के रूप में काम कर सकती हूं। राज्य सरकार को हमें अस्थायी कर्मचारियों के रूप में काम करने का मौका देना चाहिए।

लीला देवी ने कहा कि सबसे ज्यादा निराशा इसलिए होती की राज्य सरकार हमें भूल गई। हर साल मेरे पति पुजारी के रूप में केदारनाथ में काम करने जाते थे, जिससे हमारे घर का खर्च चलता था। हमारी आय नियमित हो, इसके लिए राज्य सरकार और जिला प्रशासन को केदारनाथ रूट पर हमें अस्थाई दुकान चलाने के लिए शेड देना चाहिए।


उसने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि केदारनाथ के पुनर्विकास की योजना बनाते समय सरकार विधवाओं और उनके परिवारों को भूल गई। अगर सभी विधवाओं को दुकान या खोके दिए जाते तो हम अपने परिवार पाल सकते। अन्यथा हमरी पूरी जिंदगी दरिद्रता में ही गुजरेगी।
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ग्रामीणों ने बताया कि दो एनजीओ (सुलभ और मंदाकिनी) हमें आर्थिक मदद कर रही हैं, लेकिन उन्हें स्थायी और नियमित रूप से आय के स्रोत चाहिए।
लीला के बेटे विपिन ने कहा कि एनजीओ हमें वित्तीय सहायता करती है, जो अच्छा भी है, लेकिन इससे हमारी स्थित सालों तक अनिश्चित बनी रहेगी। इसका स्थाई हल यह है कि हमें केदारनाथ में दुकान का आवंटन हो, जिससे हमारी मदद हो सके।



दिउली के प्रधान हरि प्रसाद ने कहा कि ये औरतें घरों और खेतों में काम करती हैं। कुछ गैर सरकारी संगठनों को छोड़ दें, तो कोई भी हमारी बहनों की मदद नहीं करता। अब दो औरतों ने अपने परिवार की मदद के लिए केदारनाथ में काम करना शुरू कर दिया है।
प्रधान ने कहा कि परंपरागत रूप से गांव के लोग मंदिर में पुजारी का काम करते रहे हैं। कुछ रस्में और सामान्य पूजा अभी भी पुजारियों द्वारा की जा रही है। लेकिन ये दो औरतों ने भी मंदिर में काम शुरू किया, जिसे लोगों की ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि लंबे समय तक जीवित रहने के लिए यह पर्याप्त नहीं है।

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