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    पहाड़ सा दर्द देख पिघला चिकित्सक, 24 साल से लगे हुए हैं लोगों की सेवा में

    By sunil negiEdited By:
    Updated: Wed, 24 Aug 2016 07:00 AM (IST)

    चमोली जनपद के कर्णप्रयाग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात एक डॉक्‍टर ने पहाड़ के लोगों का दर्द समझा। पिछले 24 साल से वह लोगों की सेवा कर रहे हैं।

    गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: एक तरफ चिकित्सकों को पहाड़ चढ़ाने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं, दूसरी ओर डॉ. राजीव शर्मा पहाड़ से उतरने को तैयार नहीं। कर्णप्रयाग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सर्जन के तौर पर तैनात डॉ. शर्मा का 24 वर्षों में दो बार तबादला हो चुका है। एक बार बदायूं (उत्तर प्रदेश) और एक बार ऋषिकेश, लेकिन हर बार उन्होंने आग्रह कर तबादला निरस्त करा दिया। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों बार जब-जब उनका स्थानांतरण हुआ तो कर्णप्रयाग के लोग सड़कों पर उतर आए।

    लोगों के सड़कों पर उतरने की वजह भी है। उत्तराखंड में चिकित्सकों के कुल 2690 पद हैं और इनमें से आधे से ज्यादा 1588 पद रिक्त चल रहे हैं। गढ़वाल मंडल के पांच पहाडी जिलों पौड़ी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, टिहरी और चमोली पर नजर डालें तो तस्वीर और साफ हो जाती है। इन पांचों जिलों में चिकित्सकों के 987 पदों के सापेक्ष महज 301 डॉक्टर ही तैनात हैं। चमोली जिले की हालत और खराब है। यहां चिकित्सकों के 173 पद मंजूर हैं, लेकिन कार्यरत हैं सिर्फ 60 डॉक्टर। आलम यह है जिले में सर्जन के नौ पद हैं, मगर डॉ. शर्मा यहां एकमात्र सर्जन हैं।

    उत्तर प्रदेश कैडर के इस चिकित्सक की चमोली आने की कहानी भी कम रोचक नहीं है। डॉ. शर्मा के ही शब्दों में '1991 में एमएस करने के बाद मैं अपना क्लीनिक खोलने पर विचार कर रहा था। इस बीच एक बार मैं निजी यात्रा पर चमोली आया। इस दौरान मेरी मुलाकात स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त निदेशक डॉ. आइएस पाल से हुई।'

    डॉ. पाल ने डॉ. शर्मा को पहाड़ में स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत से रूबरू कराया। डॉ. शर्मा बताते हैं कि डॉ. पाल ने यहां की बदहाली का जो दृश्य खींचा उसने मेरे दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला। बस उन्होंने तय कर लिया कि वह यहीं रहकर काम करेंगे। वर्ष 1992 में उन्हें कर्णप्रयाग में तैनाती मिल गई। वह बताते हैं कि कर्णप्रयाग तक का सफर आसान नहीं था। बस में कई बार उल्टियां हुईं। स्वस्थ होने में लंबा समय लगा। वह कहते हैं 'जैसे-जैसे समय बीतता गया मैं पहाड़ का दर्द महसूस करने लगा।'

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    ज्वाइंनिंग के बाद महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. उमारानी शर्मा से उनका विवाह हुआ। उस वक्त डॉ. उमा रामपुर (उत्तर प्रदेश) जिला अस्पताल में तैनात थी। डॉ. शर्मा ने उन्हें भी पहाड़ की जरूरतों का अहसास कराया और कर्णप्रयाग आने को राजी कर लिया। तब से उमा भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सेवाएं दे रही हैं। डॉ. शर्मा बताते हैं कि वह माह में दस दिन नियमित तौर पर दूर-दराज के क्षेत्रों में शिविर लगाते हैं ताकि मजबूरों को कर्णप्रयाग तक न आना पड़े। इसके अलावा गांवों में जाकर ग्रामीणों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी किया जाता है।

    एक परिचय : डॉ. राजीव शर्मा
    मेरठ जिले के ग्राम घसौली गोविंदपुरी के रहने वाले डा. राजीव शर्मा ने 1979 में बीडी बाजोरिया इंटर कालेज सहारनपुर हाईस्कूल व 1981 में एचडी इंटर कालेज इंटर किया। वर्ष 1982 में उनका चयन सीपीएमटी में हुआ और वर्ष 1988 में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज झांसी से एमबीबीएस आरै 1991 में इसी कालेज से एमएस की डिग्री ली।

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