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    फ्लैश बैक - 2016 : कई कद्दावर नेताओं ने छोड़ा बहुजन समाज पार्टी का साथ

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Fri, 23 Dec 2016 10:10 AM (IST)

    बहुजन समाज पार्टी के लिए बीता साल काफी कड़वे अनुभव वाला रहा। इसके बीच भी पार्टी की मुखिया मायावती ने मोर्चा संभाला, लगातार पीएम मोदी के साथ सीएम अखिलेश यादव को अपने निशाने पर रखा।

    लखनऊ (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में धमाकेदार प्रदर्शन की तैयारी कर रही बहुजन समाज पार्टी के लिए बीता साल काफी कड़वे अनुभव वाला रहा। इसके बीच भी पार्टी की मुखिया मायावती ने मोर्चा संभाला और लगातार पीएम मोदी के साथ सीएम अखिलेश यादव को अपने निशाने पर रखा।

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    बहुजन समाज पार्टी ने गुजरते साल में जहां अपने कई कद्दावर नेताओं को पार्टी को मंझदार में छोड़ते देखा वहीं नोटबंदी ने पार्टी को एक ऐसा मुद्दा दे दिया जिससे वह भारतीय जनता पार्टी पर सीधे निशाना साध सकी। पार्टी का दामन छोडऩे वाले नेताओं को भी बसपा ने लगातार अपने निशाने पर रखा। बहुजन समाज पार्टी इस वर्ष भाजपा के निकाले गए नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी और बेटी पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी की विवादास्पद टिप्पणी के लिए भी काफी चर्चित रही।

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    पार्टी को विश्वास है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में जीत उसके ही हाथ लगेगी। पार्टी की मुखिया मायावती को यह भी विश्वास है कि इस बार अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान उनके साथ होंगे।

    कई कद्दावर नेताओं ने किया किनारा

    बहुजन समाज पार्टी से इस वर्ष कई कद्दावर नेताओं ने किनारा कर लिया। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ ब्रजेश पाठक व पूर्व मंत्री आरके चौधरी वह प्रमुख नाम हैं। मौर्या तथा पाठक भाजपा में शामिल हो गए हैं। अक्सर धन लेकर टिकट देने के आरोपों का सामना करने वाली मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी देश में एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसके पास गलत तरीके से अर्जित धन नहीं है। उन्होंने माना कि टिकट चाहने वाले आर्थिक योगदान करते हैं और इस राशि का उपयोग पार्टी संगठन को मजबूत करने एवं चुनाव लडऩे में किया जाता है।

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    नोटबंदी मायावती के लिए संजीवनी

    नोटबंदी पर मायावती के तेवर काफी कड़े हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर देश में अघोषित 'आर्थिक इमरजेंसीÓ लगाने का आरोप मढ़ा। मायावती ने कहा कि इतना बडा फैसला लेने से पहले गरीबों के बारे में नहीं सोचा गया। पूंजीपतियों को बड़े पैमाने पर लाभ पहुंचाया गया। बसपा का बीएसपी का मानना है कि नोटबंदी का यह फैसला बीजेपी के लिये विनाशकारी साबित होगा और लोग बीएसपी पर आस टिकायेंगे।

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    साल भर मायावती के निशाने पर एक ओर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार रही तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की एसपी सरकार पर भी उन्होंने जमकर हमला बोला। कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर मायावती ने एसपी सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाकाम होने का दावा करते हुए कहा कि एसपी सरकार की नीतियां ढुलमुल हैं और उसकी भाजपा से मिलीभगत है। सपा की सरकार बनने के बाद से ही कानून का राज समाप्त हो गया। मुसलमानों को अगले विधानसभा चुनाव में बीएसपी की ओर आकषिर्त करने की कवायद में मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश के सर्वसमाज विशेषकर मुसलमानों को यह समझना बहुत जरूरी है कि सपा में उनके हित सुरक्षित नहीं हैं। अब दो खेमों (अखिलेश-शिवपाल) में बंटी एसपी को वोट देने का मतलब बीजेपी को जिताना है।

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    मायावती एक ओर मुसलमानों से खुलकर वोट मांग रही हैं तो उन्हीं की पार्टी के नेता महासचिव सतीश मिश्र भाईचारा सम्मेलनों के जरिए समाज के अन्य तबकों खासकर ब्राहमणों को जोडऩे की कवायद में लगे हुए हैं। 'नोटों की माला' वाली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी पर भी मायावती ने पलटवार करते हुए कहा कि दलित की बेटी माला पहने, यह बात प्रधानमंत्री को हजम नहीं होती। मोदी खुद अपने गिरेबान में झांककर देखें कि वह दूध के कितने धुले हैं। मूर्तियों और पार्कों के निर्माण के लिए विरोधियों के निशाने पर रहने वाली मायावती ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस बार बीएसपी की सरकार बनी तो उनका पूरा ध्यान कानून व्यवस्था दुरूस्त करने और विकास की ओर होगा।

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