सिर्फ अखिलेश ही नहीं और भी कई सीएम रहते पार्टी से बाहर हुए
गौरतलब है कि हालिया दौर में वह देश में ऐसे तीसरे नेता हैं, जिनको मुख्यमंत्री रहने के दौरान पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।

लखनऊ (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहले ऐसे शख्स नहीं हैं, जिनको मुख्यमंत्री रहते हुए पार्टी ने निकाल दिया गया है। अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज ही समाजवादी पार्टी (सपा) से निकाले जाने के साथ ही पार्टी टूटटने की कगार पर पहुंच गई है। पिछले काफी समय से पार्टी में घमासान मचा हुआ था और पल-पल यही लगता था कि पार्टी जल्द ही टूट जाएगी।
सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सांसद रामगोपाल यादव को छह वर्ष के लिए पार्टी से निकाल दिया है। गौरतलब है कि हालिया दौर में वह देश में ऐसे तीसरे नेता हैं, जिनको मुख्यमंत्री रहने के दौरान पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।
मुलायम का धोबी पछाड़ - अखिलेश और रामगोपाल सपा से बाहर
पेमा खांडू
अखिलेश यादव को सपा से निकाले जाने के लगभग 24 घंटे पहले ही अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू को उनकी ही पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) से सस्पेंड कर दिया गया था। अब उनकी जगह पार्टी दूसरे नेता को चुनने जा रही है। असल में पिछले एक साल से ही अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। इस अवधि में अब चौथा मुख्यमंत्री चुना जाएगा।
दरअसल पिछले साल दिसंबर तक नबाम तुकी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन तुकी के खिलाफ पार्टी के भीतर बगावत हो गई। गर्वनर की भूमिका के चलते मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। इस बीच कलिखो पुल के नेतृत्व में बगावती खेमे ने विपक्षी भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने तुकी के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन कलिखो पुल समेत कांग्रेस के बागी धड़े ने नबाम तुकी को समर्थन देने से इंकार कर दिया। नतीजतन पेमा खांडू को मुख्यमंत्री बनाया गया। बाद में खांडू ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस से निकलकर पीपीए बना ली। अब खांडू को पीपीए ने पार्टी से सस्पेंड कर दिया है और उनकी जगह पार्टी नया नेता चुनने जा रही है।
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जीतन राम मांझी
पिछले साल नौ फरवरी को बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को जदयू ने इसी तरह पार्टी से बाहर कर दिया था। दरअसल 2014 में लोकसभा चुनाव में बिहार में जदयू की करारी पराजय के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद मंत्रिमंडल में उनके वरिष्ठ सहयोगी जीतन राम मांझी की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी हुई। लेकिन कुछ समय बाद ही जदयू में उनके खिलाफ माहौल बन गया और बाद में उन पर आरोप लगाया जाने लगा कि वह बिहार में विपक्षी बीजेपी के साथ पींगे बढ़ा रहे हैं। इन सबसे खफा नीतीश ने 2015 के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर फिर से एक बार पार्टी की कमान संभालने का फैसला किया, लेकिन मांझी ने इस्तीफा देने से साफ इंकार कर दिया। काफी मान-मनौवल के बाद भी जब वह नहीं माने और बीजेपी ने विश्वासमत में उनको परोक्ष रूप से समर्थन देने का एलान किया तो जदयू ने फरवरी 2015 में जीतन राम मांझी को पार्टी से बाहर निकाल दिया।
हालांकि इसके बाद जिस दिन जीतन राम मांझी को विश्वासमत हासिल करना था, उसी दिन सुबह राज्यपाल के पास जाकर उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया। दरअसल बहुमत के लिए अपेक्षित संख्या बल नहीं उपलब्ध होने के कारण उनको इस्तीफा देना पड़ा।

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